Move to Jagran APP

Jal Jagran जल संकट से उबरने को विकास की अवधारणा पर विचार जरूरी:सरयू राय

झारखंड सरकार में मंत्री सरयू राय का मानना है कि सिर्फ नारे से कुछ नहीं होगा निष्ठा जरूरी है। विकास की अवधारणा पर विचार करना जरूरी है तभी जल संकट से हम उबर सकते हैं।

By Edited By: Published: Mon, 15 Jul 2019 09:00 AM (IST)Updated: Mon, 15 Jul 2019 12:22 PM (IST)
Jal Jagran  जल संकट से उबरने को विकास की अवधारणा पर विचार जरूरी:सरयू राय
Jal Jagran जल संकट से उबरने को विकास की अवधारणा पर विचार जरूरी:सरयू राय

जमशेदपुर, जागरण संवाददाता।  पानी, खासकर शुद्ध पेयजल का जो संकट आज उत्पन्न हुआ है, वह एक दिन का परिणाम नहीं है। यह वाकई चिंता की बात है। दैनिक जागरण काफी पहले से जलसंकट को लेकर चिंतित दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे स्वच्छता अभियान की तरह मिशन के रूप में लिया है। इसकी वजह से सारा सिस्टम सक्रिय हो गया है। हालांकि समझदार लोग पहले से ही सक्रिय थे। इसके बावजूद मेरा मानना है कि सिर्फ नारे से कुछ नहीं होगा, निष्ठा जरूरी है। विकास की अवधारणा पर विचार करना जरूरी है, तभी जल संकट से हम उबर सकते हैं। ये बातें झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति मंत्री व जमशेदपुर पश्चिम के विधायक सरयू राय ने कहीं। यहां प्रस्तुत है दैनिक जागरण के अभियान 'कितना-कितना पानी' पर उनके विचार..।

loksabha election banner

सवाल : आप जलसंकट की स्थिति और जल संचयन के अभियान को किस नजर से देखते हैं।

जवाब : जलसंकट क्यों हुआ, क्योंकि हम विकास और तेजी से विकास करना चाहते हैं। विकास का हर पहलू जल की कीमत पर हो रहा है। यह स्वाभाविक भी है। इसलिए हमें यह देखना होगा कि विकास कैसे करें। विकास का ढांचा ऐसा बनना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधन अक्षुण्ण रहे।

सवाल : भूगर्भ जल का स्तर बढ़ाने या बचाने के लिए क्या करना चाहिए।

जवाब : पृथ्वी पर दो माध्यम से जल उपलब्ध है, एक सतही जल और दूसरा भूगर्भ जल। सतही जल हमें नदी, तालाब, समुद्र, झरनों आदि से मिलता है, जबकि भूगर्भ जल कुआं से मिलता था। आज कुआं समाप्त हो गया है। तालाब भरकर भवन बना दिए गए हैं। इसलिए हमें इन दोनों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास करना चाहिए।

सवाल : डोभा, सोख्ता आदि कितने उपयोगी सिद्ध होंगे।

जवाब : सरकार ने तो बेशुमार डोभा बनाए, लेकिन उसकी उपयोगिता कहां दिखी। बाबूलाल (मरांडी) जी के समय इसी तरह नदियों में चेकडैम बनाए गए थे। इंच-इंच पर चेकडैम था, लेकिन आज कहीं दिखाई नहीं देते। यही हाल डोभा का हुआ। अब बात रही सोख्ता की, तो यह गांवों में पहले से रहा है। शहर में इसकी उपयोगिता कितनी होगी, संदेह है। शहर तो कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गए हैं। यहां चाहकर भी सोख्ता नहीं बना सकते।

सवाल : शहर में रेनवाटर हार्वेस्टिंग से क्या बदलाव होगा।

जवाब : रेनवाटर हार्वेस्टिंग ठीक है, लेकिन उससे जल संचय सीमित मात्रा में होगी। वह भी यदि इमानदारी से किया जाए तो। इसमें सावधानी बरतने की जरूरत भी है, वरना रेनवाटर हार्वेस्टिंग के पिट में दूषित जल चला गया तो उसे सुधारने में कई पीढि़यां लग जाएंगी।

सवाल : आप अपने क्षेत्र में जल संरक्षण या जल संचयन के लिए क्या कर रहे हैं।

जवाब : हमारे क्षेत्र में कई तालाब थे, जो आज नहीं हैं। एक-दो बचे हैं, जिसके सौंदर्यीकरण के लिए काम कर रहा हूं। लेकिन इसमें भी सरकार के डीपीआर के मुताबिक काम हो रहा है, जैसा हम चाहते हैं, नहीं हो सकता। सवाल : आखिर मौजूदा स्थिति में जल संचय का बेहतर उपाय क्या है।

जवाब : बेहतर उपाय यही है कि हम कृत्रिम संसाधनों का उपभोग कम करें। टाइल्स-कंक्रीट की सड़क भी बनाएंगे और पानी भी खोजेंगे, दोनों एक साथ नहीं हो सकता है। पानी का उपयोग पारंपरिक तरीके से ही करें, तो वही काफी है। ब्रश या शेविंग करने के लिए नल खोलकर ना रखें, स्नान शावर की बजाय बाल्टी में पानी रखकर करें। यही पर्याप्त है।

जेपी ने खोदवाया था तालाब

सरयू राय बताते हैं कि 1966 में जब अकाल पड़ा था, तो जयप्रकाश नारायण पलामू आए थे। उन्होंने वहां भविष्य में जलसंकट ना हो, इसके लिए तालाब खोदवाया था। वह तालाब आज भी बेहतर स्थिति में है। अनुपम मिश्र की किताब है 'आज भी खरे हैं तालाब', उसमें यही संदेश है कि तालाब आज भी प्रासंगिक हैं। प. बंगाल तालाब की उपयोगिता का बेहतर उदाहरण है। वहां कभी जलसंकट नहीं हुआ।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.