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महिला सशक्तीकरण की मिसाल है चंपा, पुरुषों के पेशे में रखती है मजबूत दखल

जमशेदपुर के परसूडीह की चंपा महिला सशक्तीकरण की मिसाल है। पुरुषों के पेशे में मजबूत दखल रखनेवाली चंपा साइकिल मरम्मत की दुकान चलाती है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 13 Jul 2019 01:41 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jul 2019 01:41 PM (IST)
महिला सशक्तीकरण की मिसाल है चंपा, पुरुषों के पेशे में रखती है मजबूत दखल
महिला सशक्तीकरण की मिसाल है चंपा, पुरुषों के पेशे में रखती है मजबूत दखल

जमशेदपुर, पूजा कुमारी सिंह। आते-जाते लोगों की नजर जब उसपर एकबार पड़ती है तो अनायास चौंक उठते हैं। कुछ घूरते हुए निकल जाते हैं तो कुछ इस युवती को पूरी तन्मयता के साथ साइकिल की मरम्मत करते देख अचंभित होते हैं। कई लोग आपस में बात करते हैं- देखो, लड़कों का काम लड़की कर रही है। इस युवती का नाम चंपा है। पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर से सटे परसुडीह में एक छोटी सी दुकान में रोज उसे साइकिल की मरम्मत करते देखा जाता है। लोगों की बातों से बेपरवाह अपने काम में जुटी रहती है।

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बच्चों की पढ़ाई पर रहता है ध्यान

साइकिल मरम्मत से होनेवाली कमाई से घर चलाने के अलावा वह अपने दो बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देती है। एक की उम्र 12 तथा दूसरे की उम्र 10 साल है। दोनों बच्चों की पढाई का खर्च वह खुद उठाती है। अब उसका सपना है कि बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़कर बड़े होने के बाद अच्छी नौकरी करें।

नौवीं तक की पढ़ाई, पुलिस में नौकरी की चाहत रह गई अधूरी

परसुडीह तिलका गड्ढा निवासी चंपा बचपन से ही पुलिस की नौकरी करना चाहती थी। परसुडीह बगान टोला स्थित सिदो-कान्हू मेमोरियल उड़िया स्कूल से नौवीं तक पढ़ाई की। परिस्थितियां कुछ ऐसी आईं की वह आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। उसका पुलिस की नौकरी का सपना पूरा नहीं हो सका, लेकिन जिंदगी में कभी निराश नहीं हुई। इसी बीच उसकी मुलाकात परसुडीह के ही तिलकागढ़ निवासी अखिल से हुई। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी और दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया।

पति से सीखा साइकिल मरम्मत का काम

चंपा का पति अखिल साइकिल मरम्मत का काम करता था। उसके साथ-साथ उसने भी इस काम में कुशलता प्राप्त कर ली। अब अकेले भी अक्सर पूरा काम संभाल लेती है। उसने बताया कि शुरू-शुरू में लोगों की बात और तानों से कुछ परेशानी हुई लेकिन मेहनत से अपना काम करती रही। अब तो आदत हो गई है। उसने कहा, समाज में महिलाओं को हमेशा एक अलग नजरिए से देखा जाता है। बातों को अनसुना करना पड़ता है।

शौक बन गई जरूरत

साइकिल मरम्मत का काम उसने शौकिया तौर पर सीखा। सीखने के लिए जब भी वह दुकान जाती थी तो उसे और उसके पति को अक्सर लोगों के व्यंग्य का सामना करना पड़ता। अब पूरे दिन में 200 से 400 रुपये की कमाई हो जाती है।


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