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Lok Sabha Election 2019 : नामांकन के दिन हुआ था चाईबासा में खूनी संघर्ष

28 वर्ष पूर्व लोकसभा चुनाव में नामांकन के दिन ही चाईबासा की सड़कों पर ऐसा खूनी संघर्ष हुआ कि हर चुनाव में उस खौफ की यादें ताजा हो जाया करती हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 01:52 PM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 01:52 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019 : नामांकन के दिन हुआ था चाईबासा में खूनी संघर्ष
Lok Sabha Election 2019 : नामांकन के दिन हुआ था चाईबासा में खूनी संघर्ष

चक्रधरपुर (दिनेश शर्मा)। 28 वर्ष पूर्व लोकसभा चुनाव में नामांकन के दिन ही चाईबासा की सड़कों पर ऐसा खूनी संघर्ष हुआ कि हर चुनाव में उस खौफ की यादें ताजा हो जाया करती हैं। आज के गठबंधन के साथी कांग्रेस व झामुमो 91 में एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए थे। करीबन तीन दशक पूर्व दो बाहुबली प्रत्याशियों के हरवे हथियारों से लैस हजारों समर्थकों के बीच भीड़ भरी सड़क पर यह खूनी मुठभेड़ हुई थी। दस अप्रैल 1991 को खरसांवा के बाहुबली विधायक विजय सिंह सोय ने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी अपने नामांकन की तिथि मुकर्रर कर रखी थी।

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चक्रधरपुर के दिलीप साव उर्फ दिलीप मिर्चा समेत सोय के तमाम साथियों ने नामांकन के दिन आम अवाम को अपनी ताकत दिखाने के लिए जोरदार तैयारियां की। दिलीप साव चक्रधरपुर से 120 कार व छह बसों में भरकर अपने समर्थकों के साथ चाईबासा पहुंचे। जमशेदपुर से मलखान सिंह, हिदायत खान, दारा शर्मा, राजू गिरी भी अपने समर्थकों के साथ सोय की हौसला आफजाई के लिए करीबन पैंसठ गाड़ियों के काफिले के साथ चाईबासा आए। कांग्रेस कार्यालय से लगभग पांच हजार कार्यकर्ता जुलूस की शक्ल में नामांकन के लिए उपायुक्त कार्यालय जाने को निकले। उपायुक्त कार्यालय में सोय व उनके साथियों के मुख्य द्वार से प्रवेश के वक्त झामुमो प्रत्याशी कृष्णा मार्डी, शैलेंद्र महतो, चंपई सोरेन, बिनोद बिहारी महतो आदि नामांकन कर बाहर निकल रहे थे। आमने-सामने होने पर दोनों ओर से जोरदार नारेबाजी होने लगी। हल्के टकराव के बाद झामुमो नेता अपने समर्थकों के साथ निकल गए।

सोय के नामांकन का कार्य होने के बाद सोय समर्थक भी वापस कांग्रेस कार्यालय पहुंचे। जमशेदपुर से आए मलखान, हिदायत, राजू गिरी आदि जेएमपी टाकिज के रास्ते वापस लौटने लगे। करीबन साढ़े तीन से चार हजार झामुमो कार्यकर्ताओं की भीड़ मार्ग को बाधित कर पैदल गुजर रही थी। थोड़ी बकझक के बाद दोनों ओर से सरेआम गोलियां चलने लगी। कहते हैं कि सोय समर्थकों के पास तो हथियारों का जखीरा था ही, झामुमो नेताओं के पास भी पांच राइफलें थीं। लेकिन मुकाबले में सोय समर्थक भारी पड़ रहे थे।

जानकार बताते हैं कि कम से कम दो सौ राउंड गोलियां चलीं। किलो नामक एक झामुमो कार्यकर्ता की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि आठ-दस अन्य कार्यकर्ता घायल हुए। जमशेदपुर से आए सोय समर्थक नेता तो मार्ग बदलकर सरायकेला होते हुए चले गए, लेकिन आक्रोशित झामुमो नेताओं-कार्यकर्ताओं की भीड़ कांग्रेस कार्यालय पहुंच गई। यहां सोय, दिलीप व अन्य नेता-कार्यकर्ता कार्यालय में ही मौजूद थे। झामुमो के कार्यकर्ताओं ने कार्यालय के समक्ष मौजूद वाहनों को तोड़फोड़ दिया।

दिलीप व सोय ने अपने समर्थकों के साथ मोर्चा संभाल कर फायरिंग शुरू कर दी। खूनी मुठभेड़ के बाद कई झामुमो व कांग्रेस के कार्यकर्ता घायल हुए। कहते हैं एक झामुमो व दो कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मौत भी हुई। चाईबासा पुलिस छावनी में तब्दील हो गया। कांग्रेस कार्यालय से पचास-साठ हथियार जब्त किए गए। सोय समेत चालीस-पचास कार्यकर्ता, जिनमें अधिकतर दिलीप के साथी थे, गिरफ्तार कर चाईबासा जेल में रखे गए। जबकि कृष्णा मार्डी भी तीस-चालीस साथियों के साथ गिरफ्तार कर सरायकेला जेल में रखे गए। दिलीप इस मामले से साफ बच निकले। उन्होंने चुनावी तैयारियों का पूरा जिम्मा संभाल लिया। लेकिन लोकसभा चुनाव के ऐन पहले 12 मई को वार्ड नंबर दो संतोषी मंदिर के पास बम मारकर दिलीप की हत्या कर दी गई। अंतत: सोय यह चुनाव हार गए। सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव के वक्त लोगों के जेहन में 1991 के खूनी नामांकन की यादें एक बार फिर ताजा हो चलीं हैं। हालांकि आदर्श आचार संहिता के कारण अब वैसे हालात पैदा होने की उम्मीद तो नहीं रहती है, लेकिन नामांकन के दिनों में लोग शंका-आशंकाओं के भंवर में डूबते-उतराते रहते हैं।


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