इंकैब चलाने को चाहिए 150 करोड़, कोर्ट से की अपील Jamshedpur News
इंकैब इंडस्ट्रीज (केबुल कंपनी) के मसले पर नेशनल कंपनी ऑफ लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की ओर से सात फरवरी 2020 को परिसमापन आदेश के खिलाफ दिल्ली स्थित अपीलीय न्यायाधीकरण में कंपनी के मजदूरों द्वारा दायर अपील पिटीशन पर सुनवाई हुई।
जमशेदपुर, जासं। इंकैब इंडस्ट्रीज (केबुल कंपनी) के मसले पर नेशनल कंपनी ऑफ लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की ओर से सात फरवरी 2020 को परिसमापन आदेश के खिलाफ दिल्ली स्थित अपीलीय न्यायाधीकरण में कंपनी के मजदूरों द्वारा दायर अपील पिटीशन पर सुनवाई हुई। बहस की शुरुआत करते हुए कोलकाता के मजदूरों के अधिवक्ता ऋृषभ बनर्जी ने कहा कि एडजुडिकेटिंग अथारिटी को दिवाला और दिवालिया कानून के तहत दिवालिया कंपनियों को पुनर्जीवित करने का अधिकार है परिसमापन का नहीं।
परिसमापन किसी दिवालिया कंपनी की अंतिम गति होती है, जब उसके पुनर्जीवित करने के सारे उपाय असफल सिद्ध होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि कमला मिल्स के मालिक और निदेशक रमेश घमंडीराम गोवानी इंकैब इंडस्ट्रीज के भी निदेशक रहे हैं। कमला मिल्स और फस्का इन्वेस्टमेंट कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स के सदस्य नहीं हो सकते। इस दृष्टिकोण से न केवल कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स का गठन गलत हुआ है बल्कि कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स ने रिजोल्यूशन प्रोफेशनल के साथ साजिश कर इंकैब कंपनी के परिसमापन का रिजोल्यूशन पारित कर लिया और एडजुडिकेटिंग अथारिटी ने स्थापित कानूनों की अवहेलना कर कंपनी का गैरवाजिब परिसमापन आदेश पारित कर दिया।
आदेश रद करने की मांग
उन्होंने अपीलीय न्यायाधीकरण से उक्त आदेश को रद करने की मांग की।उन्होंने यह भी कहा कि बैंकों का अपनी देनदारियों को प्राइवेट कंपनियों को बेचना गलत है। कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स की तरफ की तरफ से जिरह करते हुए अधिवक्ता रूद्रेश्वर सिंह ने कोलकाता उच्च न्यायालय में किये गये अपने जिरह को ही आगे बढ़ाया और कहा कि बैंकों ने कमला मिल्स, फस्का इनवेस्टमेंट और पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों को इंकैब इन्डस्ट्रीज लिमिटेड की अपनी लेनदारियों (गैरनिष्पादित परिसंपत्तियां) को ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्टए 1882 की धारा 130 (एक्शनेबल क्लेम्स)के तहत हस्तांतरित किया।इसके बाद अधिवक्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन द्वारा कमला मिल्स के उपर दायर अदालत की अवमानना के एक मामले में दिये एक फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने उक्त लेनदारियों के हस्तनांतरण को सही ठहराया था। उन्होंने यह भी कहा कि रमेश घमंडीराम गोवानी इंकैब के निदेशक 2009 के बाद नहीं रहे हैं। रमेश गोवानी ने इंकैब कंपनी का कोई भी पैसा नहीं हड़पा है।
मजदूरों के वकील ने रखे ये तर्क
वहीं मजदूरों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि मोराटोरियम आदेश पारित करने बाद निदेशक मंडल निलंबित हो जाती है यह अनिवार्य है पर एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी को यह पता ही नहीं है कि इंकैब के निदेशक मंडल में कौन निदेशक हैं। एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी का इंकैब के खिलाफ मोराटोरियम आदेश भी गलत है। उन्होंने कहा कि रिजोल्यूशन प्रोफेशनल ने परिचालन देनदारियों को बिना कोलेट किये केवल कमला मिल्स, फस्का और पेगासस की फर्जी लेनदारियों के आधार पर कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स बना कर उनसे परिसमापन का रिजोल्यूशन पारित करा लिया और एडजुडिकेटिंग ऑथोरिटी को गुमराह कर परिसमापन आदेश पारित करवा लिया।
अदालत को गुमराह करने का आरोप
उन्होंने कहा कि कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स के अधिवक्ता अदालत को गुमराह कर रहे है, क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष यह मसला था ही नहीं कि बैंक अपनी देनदारियों को प्राईवेट कंपनियां जो बैंक या एनबीएफसी नहीं हैं को हस्तांतरित कर सकती है या नहीं। कहा कि मजदूरों को किसी निवेशक की जरूरत नहीं है, कंपनी के पास 1600 करोड़ की संपत्ति है और रमेश घमंडीराम गोवानी ने 100 करोड़ का फर्जीवाड़ा किया है जबकि कंपनी फिर से चलाने के लिए सिर्फ 150 करोड़ रूपये चाहिए। उन्होंने अदालत से प्रार्थना की कि कंपनी को फिर से चालू करने का आदेश देना चाहिए । अंत में अगली कार्यवाही की तारीख 25 जनवरी मुकर्रर की गई। इंकैब कर्मचारियों की तरफ से उक्त सुनवाई में अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, संजीव मोहंती, चन्द्रलेखा और आकाश शर्मा ने हिस्सा लिया।