मन के भटकाव को रोकने का माध्यम है संस्कार
हजारीबाग : संस्कार संस्कृति के मूर्त रूप है। सम्यता उसी संस्कृति का परिणाम है। जब संस्कृति म
हजारीबाग : संस्कार संस्कृति के मूर्त रूप है। सम्यता उसी संस्कृति का परिणाम है। जब संस्कृति मन के भावों को परिष्कृत करता है तब इसमें परोपकार, सहिष्णुता तथा धैर्य का समावेश होता है।
यदि किसी देश की युवाशक्ति सकारात्मक है तो उस देश का विकास कोई नहीं रोक सकता। शिशु विद्या मंदिर, कुम्हरटोली, हजारीबाग की शिक्षक पूनम ¨सह बताती हैं कि वर्तमान में युवा वर्ग की दिशाहीनता और उसके असंतोष के कई कारण हैं। मूल कारण है शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा का पूरी तरह से अभाव, जिसके कारण वे भ्रमित हो रहे हैं। इन्हीं भ्रम जाल से निकालने का एक प्रयास संस्कारशाला के माध्यम से किया जा रहा है। उसके मन के भटकाव को रोकने को व्यापक साधन है संस्कार। संस्कार युवा वर्ग में व्याप्त हो इसके लिए संस्कृति को जानना तथा इससे जुड़ना होगा क्योंकि संस्कृति के बिना संस्कार का होना नामुमकिन है। संस्कारशाला का एक सफल तथा सहज प्रयास है। युवा वर्ग में नैतिकता का विकास करना, क्योंकि नैतिक गुणों के बल पर ही व्यक्ति वंदनीय हो पाता है। इसमें महापुरुषों के जीवन तथा उनके उत्तम चरित्र की चर्चा की गई है। इसका अध्ययन कर छात्र संस्कारी बन सकते हैं तथा छात्रों के उत्तम चरित्र का नैतिक गुणों का विकास होगा। युवा उर्जावान शक्ति अत: इस उर्जावान शक्ति को नकारात्मक बनने से बचाने का सार्थक प्रयास संस्कारशाला द्वारा किया जा रहा है।
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विद्यामंदिर में संस्कार पहली प्राथमिकता
सरस्वती विद्या मंदिर कुम्हारटोली में संस्कार का ज्ञान बच्चों के लिए प्राथमिकता होती है। प्रार्थना से लेकर प्रत्येक कक्षा तक संस्कार से जुड़ी बातों को ध्यान दिया जाता है। यहां तक विद्यालय में इससे जुड़ी दादा-दानी, नाना-नानी पूजन कार्यक्रम तक प्रत्येक वर्ष कराए जाते हैं। ताकि बच्चे अभिभावकों व बुजुर्गों का सम्मान कर सकें।