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जानिए, इन युवाओं ने कैसे दूर की तंगहाली; बंजर जमीन पर टमाटर की लाली

हजारीबाग के इन युवाओं के पसीने से बंजर भूमि लहलहा रही है। खरीदार खुद ही खेत में आकर फसल ले जाते हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 15 Dec 2017 12:59 PM (IST)Updated: Fri, 15 Dec 2017 05:29 PM (IST)
जानिए, इन युवाओं ने कैसे दूर की तंगहाली; बंजर जमीन पर टमाटर की लाली
जानिए, इन युवाओं ने कैसे दूर की तंगहाली; बंजर जमीन पर टमाटर की लाली

हजारीबाग, विकास कुमार। इन युवाओं ने दशकों से बेकार और बंजर पड़ी जमीन को अपने पसीने से सींचा और उसे उर्वर बना दिया। झारखंड में हजारीबाग जिले के ये वो युवा हैं, जिनके पास अपनी कोई जमीन नहीं थी और न उच्च शिक्षा। ग्रामीण क्षेत्रों में किसी तरह स्कूल की सूरत देखने वाले इन युवकों की टोली ने प्रति एकड़ पांच हजार रुपये की दर से पांच साल पूर्व जमीन लीज पर लेकर टमाटर की खेती शुरू की थी।

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धीरे-धीरे इन युवाओं ने कुल 58 एकड़ जमीन लीज पर ले ली। यहां ये मौसम के हिसाब से पिछले पांच साल से टमाटर, बैगन, मटर, गोभी का उत्पादन कर रहे हैं। 10 हजार रुपये से प्रारंभ टमाटर की खेती आज 20 लाख रुपये तक जा पहुंची है। प्रत्येक सदस्य एक सीजन में करीब तीन लाख रुपये का मुनाफा कमाते हैं। इन युवाओं में गांव के ही रंजीत कुमार, दीपक कुमार राणा, सुखेदव राणा, छेदी महतो व उनकी टीम काम कर रही है। यह देश भर के उन युवाओं के लिए संदेश भी है, जो बेरोजगार संघ जैसे संगठन बनाकर सरकार और दूसरों को कोसते हैं।

ऐसे युवकों को हजारीबाग सदर प्रखंड की सखिया पंचायत के इन एक दर्जन युवाओं से प्रेरणा लेनी होगी। जिन्‍होंने बिना सरकारी सहायता लिए आधुनिक तकनीक से दशकों से बेकार और बंजर पड़ी जमीन पर खेती की। फायरिंग रेंज होने के कारण यहां गोलियों और बमों की बौछार होते रहती है, इसलिए इस बंजर जमीन पर लोग आते भी नहीं थे।

सरकारी सहायता के नाम पर केवल मिट्टी जांच
दशकों से बेकार पड़ी जमीन पर कर्ज लेकर टमाटर उगाने की योजना बनाने वाले युवकों ने बताया कि पांच साल पहले उन्होंने सरकारी सहायता के नाम पर केवल मिट्टी टेस्ट कराकर उसमें होने वाली खेती के बारे में कृषि वैज्ञानिकों से जानकारी ली थी। इसके बाद उन्‍होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इनके मुताबिक फसल होने के बाद खरीदार खुद ही खेत में आकर फसल ले जाते हैं।

फायरिंग के समय बंद करना पड़ता है काम
युवकों के मुताबिक जुलाई के अंतिम सप्ताह से लेकर अप्रैल के अंत तक वे खेती करते हैं। इस दौरान उनके खेतों में लगातार 50 - 70 मजदूर काम करते हैं। सबसे ज्यादा परेशानी फायरिंग के समय होती है, जब हमें काम छोड़ कर खेतों के बाहर बैठना पड़ता है। बताया कि इसके अलावा विकल्प के तौर पर हमारे यहां मजदूर सुबह और शाम काम करते हैं। दोपहर में बीएसएफ के निदेश पर हमें काम रोकना पड़ता है।

हर प्रकार की सहायता उपलब्ध करा रहे है सखिया मुखिया
सखिया पंचायत के मुखिया अरुण यादव टमाटर सहित अन्य फसलों की खेती करने वाले युवकों को हर प्रकार की सहायता उपलब्ध करा रहे है। इनके मुताबिक इनके क्षेत्र के 60 प्रतिशत युवा इस कार्य में अब लग गए है। सीतागढ़ा जूलजूल का क्षेत्र युवाओं के लिए आदर्श है। जहां युवकों की टोली ने असंभव जैसे कार्य को संभव कर दिखाया है।

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