Hazaribagh News: लोकल से ग्लोबल बनी हजारीबाग की सोहराय और कोहबर कला, रूस के राष्ट्रपति तक ऐसे पहुंची पेंटिंग
हजारीबाग की सोहराय और कोहबर कला ने स्थानीय सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने के साथ-साथ इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी पहचान दिलाई। यह कला लोकल से ग्लोबल बन गई और अब यह हजारीबाग के सरकारी भवनों से लेकर नए संसद भवन तक अपनी छाप छोड़ चुकी है। अक्टूबर 2024 में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सोहराय कला की पेंटिंग भेंट की।

विकास कुमार, हजारीबाग। Hazaribagh News: हजारीबाग के गांव की गलियों से निकलकर सोहराय और कोहबर कला ने न सिर्फ स्थानीय सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी पहचान दिलाई। इस कारण यह क्षेत्रीय कला लोकल से ग्लोबल बन गई।
शुरुआत में सोहराय और कोहबर की पेंटिंग्स ने हजारीबाग को अपने खास रंगों और डिजाइनों के लिए पहचान दिलाई। अब तो यह हजारीबाग के सरकारी भवनों से लेकर नए संसद भवन तक अपनी छाप छोड़ चुकी है।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन का की जा चुकी भेंट
अक्टूबर 2024 में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सोहराय कला की पेंटिंग भेंट की। यह पेंटिंग न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर को दुनिया के सामने लाई, बल्कि सोहराय कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
हालांकि, प्रधानमंत्री के मन की बात तक यह कला 2015 में ही पहुंच गई थी, तब हजारीबाग स्टेशन पर उकेरी गई कला का जिक्र उन्होंने अपने मन की बात कार्यक्रम में किया था। उस समय हजारीबाग में सोहराय व कोहबर को लेकर ‘पेंट माई सिटी’ अभियान की शुरुआत तत्कालीन उपायुक्त मुकेश कुमार के द्वारा की गई थी।
जीआइ टैग मिलने से बढ़े रोजगार के अवसर
यह कला अब न केवल हजारीबाग, बल्कि देश और विदेशों में भी चर्चित हो चुकी है और इसके पीछे कला को प्रोत्साहित करने में सबसे बड़ा योगदान बुलू इमाम और उनके परिवार का रहा है। बुलू इमाम को उनके इस काम के लिए पद्मश्री से नवाजा गया।
बुलू इमाम के साथ ही उनके बेटे जस्टिन इमाम व बहू अलका इमाम ने कला को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया है। 2018-19 में सोहराय और कोहबर कला को जियोग्राफिकल इंडिकेशंस (जीआइ) दिलाने में अलका ने अहम भूमिका निभाई।
अलका की कोशिशों से कला बनी ग्लोबल
अलका की कोशिशों से सोहराय और कोहबर कला अब केवल कला प्रेमियों तक ही सीमित नहीं रह गई, बल्कि यह मुख्यधारा के फैशन और डिजाइन में भी अपनी जगह बना चुकी है। साड़ी, दुपट्टा, स्ट्राल, बेडशीट सभी जगह इसकी छाप दिखती है। उन्होंने इसके लिए 2018 में सोहराय महिला कला विकास समिति का गठन किया। यहां अब भी कक्षाएं लग रही हैं।
बच्चे प्राकृतिक रंगों को उकेरना सीख रहे हैं। हजारीबाग की 100 से अधिक महिलाओं के जीवन का यह हिस्सा बन चुकी है। इन महिलाओं ने इस कला के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने में सफलता पाई है। प्राकृतिक रंगों से बनाई जाने वाली इन पेंटिंग्स ने न केवल महिलाओं को एक नया रोजगार दिया, बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ाया है।
हजारीबाग के चार गांव जोराकाट, विष्णुगढ़ का भेलवारा, चुरचू का केंदुआ और टाटीझरिया का लुकुइया की पहचान ही इस कला से है। मिट्टी के घरों में उकेरी गई यह कला देखते ही बनती है।
क्या है सोहराय व कोहबर
कोहबर और सोहराय झारखंड की दो प्रमुख लोक कला है। यह लोक कला मानव सभ्यता के विकास को दर्शाता है। मूल रूप में दोनों चित्रकला में नैसर्गिक रंगों का प्रयोग होता है। मसलन लाल, काला, पीला, सफेद रंग के साथ पेड़ की छाल से बने रंगों का प्रयोग होता है। इसमें सफेद रंग के लिए दुधी मिट्टी का उपयोग होता है। पेंटिंग ब्रश भी प्राकृतिक ही होते हैं। उंगलियां, लकड़ी की कंघी (अब प्लास्टिक वाली) दातून से चित्र उकेरे जाते हैं।
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