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सूखी नदियां दिखा रहीं कमाल, मछलियां बना रहीं मालामाल

खास बात यह है कि मछली बीज के उत्पादन का पूरा काम उसी पांच महीने की अवधि में कर लिया जाता है जिस दौरान ये नदियां पानी से लबालब होती हैं।

By BabitaEdited By: Published: Thu, 01 Feb 2018 10:31 AM (IST)Updated: Thu, 01 Feb 2018 03:53 PM (IST)
सूखी नदियां दिखा रहीं कमाल, मछलियां बना रहीं मालामाल
सूखी नदियां दिखा रहीं कमाल, मछलियां बना रहीं मालामाल

हजारीबाग, अरविंद राणा। कभी बरसात के बाद सूख जानेवाली जिले की नदियां अब बालू उगलने तक सीमित नहीं रहीं। पिछले दो सालों में ये नदियां नीली क्रांति का केंद्र बन सोना उगलने वाली बन गई हैं। जिले की छोटी-बड़ी मिलाकर कुल 44 नदियों में मत्स्य विभाग ने मछली के बीज (जीरा) का उत्पादन शुरू कर मछली पालकों को खुशहाली की सौगात दी है।

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खास बात यह है कि मछली बीज के उत्पादन का पूरा काम उसी पांच महीने की अवधि में कर लिया जाता है जिस दौरान ये नदियां पानी से लबालब होती हैं। जहां सूखी नदी में मछली पालन कर ग्रामीण अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं वहीं मत्स्य विभाग की इस पहल ने अब मछली बीज के लिए जिले की बंगाल पर निर्भरता खत्म कर दी है। इस इलाके में ग्रामीणों की जीविका का यह महत्वपूर्ण साधन बनता जा रहा है।

ये नदियां बनी हैं मछली प्रजनन का केंद्र

मछली पालन करने वाली नदियों में सेवाने, कोनार, बोकारो नदी, बराकर, तिलैया जलाशय, कोनार जलाशय, चौपारण का लेरिया नदी सहित बड़कागांव, केरेडारी, विष्णुगढु, टाटीझरिया, बरकटठा सहित अन्य इलाकों की 44 नदियां शामिल हैं। पिछले दो सालों में मत्स्य विभाग ने केवल पांच माह चलने वाले इस कारोबार ने मछली जीरा से फिगर बीज उत्पादन में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

साढ़े चार सौ युवक लगे हैं मछली पालन में पिछले दो सालों में 10-10 की संख्या में 45 समूहों में बंटकर साढ़े चार सौ युवक मछली उत्पादन से संपन्नता की नई कहानी लिख रहे है। विभाग की ओर से इसके लिए नदी किनारे के ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया गया है कि नदी में 100 मीटर के क्षेत्रफल में पांच फुट की गहराई तक मछली पालन किया जा सकता है। 

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