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स्कूल प्रबंधन पर लगा धर्म परिवर्तन कराने का आरोप

संसू टाटीझरिया प्रखंड के जेरुवाडीह आदिवासी टोला के कुछ लोगों ने ग्राम पिपचो में संचालित आ

By JagranEdited By: Published: Tue, 17 Mar 2020 09:30 PM (IST)Updated: Wed, 18 Mar 2020 06:14 AM (IST)
स्कूल प्रबंधन पर लगा धर्म परिवर्तन कराने का आरोप
स्कूल प्रबंधन पर लगा धर्म परिवर्तन कराने का आरोप

संसू, टाटीझरिया : प्रखंड के जेरुवाडीह आदिवासी टोला के कुछ लोगों ने ग्राम पिपचो में संचालित आइएमएसएम एमएम स्कूल प्रबंधन पर लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया है। इस बात का खुलासा प्रखंड के धरमपुर पंचायत के जेरुवाडीह निवासी हरखू मुर्मू की बहु व जरीलाल मुर्मू की पत्‍‌नी बसंती देवी का अंतिम संस्कार के दौरान हुआ। महिला की मौत के बाद मुर्मू परिवार ने विद्यालय के कुछ कर्मचारियों को बुला लिया और इसाई धर्म के अनुसार शव का अंतिम संस्कार करने की तैयारी में जुट गए। इसका गाववालों ने विरोध किया। गाव वालों का कहना था कि अगर इसाई धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार करना है तो करो, हम गाव वाले इसमें मदद नहीं करेंगे। गाव के परिस्थिति को देखते हुए विद्यालय से आये कर्मचारी चुपके से वहा से खिसक गए। बाद में उसका पूरा परिवार गाव वालों की बात को मानकर हिन्दू धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार को तैयार हुआ तब जाकर अंतिम संस्कार में गाव वालों ने मदद किया। उक्त घटना 12 मार्च की बताई जा रही है। इस संबंध में ग्रामीण जरीलाल ने बताया कि वह गरीबी से तंग आ चुका था। वह अंग्रेजी विद्यालय में पढ़ना चाहता था। उसके पिता किसी प्रकार पिपचो में उसका नामाकन तो करवा दिया। पर फी नहीं दे पा रहा था। तभी विद्यालय प्रबंधक ने उसका फीस माफ कर दिया। उसके अभिभावक को इसाई धर्म के पालन की शर्त पर उसके कपड़े और किताबें भी मुफ्त उपलब्ध करवा दिया। वर्ष 1996 में वह एलकेजी में दाखिला लिया उसके बाद पाचवी कक्षा तक उसका सब कुछ फ्री हो गया। बाद में उसे किताब का रुपये लगने लगे। उसने मैट्रिक की परीक्षा उसी विद्यालय से 2008 में द्वितीय श्रेणी से पास किया। तब से वह इसाई धर्म का पालन कर रहा था। अब वह हिन्दू धर्म मे पुन: वापसी किया। इसी प्रकार पिपचो के विद्यालय वाली संस्था लगातार इस क्षेत्र में कार्य कर रही है।

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क्या कहते हैं ग्रामीण ..

स्थानीय विद्यालय में प्रधानाध्यापक सह सचिव धर्मेन्द्र सोरेन ने कहा कि धर्म परिवर्तन के पीछे कई कारण है। गरीब लोगों के पास खर्च करने की औकात नहीं होती है। अभी बसंती के मृत्यु के बाद उसके परिजन को दसवा, एकादशा वगैरह करना पड़ेगा। इसमें 40 से 50 हजार रुपये लग जाते। इसी वजह से वह इसाई धर्म अपनाते हैं।


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