मदर्स डे: आसमान से भी ऊंचा इस मां का कद, लोगों ने उड़ाया उपहास तो काम से ऊंचा किया नाम
Mothers day. 165 बच्चियों को सरिता के रूप में एक ऐसी मां का आंचल मिला है जो खुद अविवाहित है।
हजारीबाग, विकास कुमार। मां दिव्य है। अलौकिक है और अप्रतिम है। उसके गुणों की व्याख्या नहीं हो सकती है। मां की इस छवि में हजारीबाग की एक 40 साल की युवती पिछले कई सालों से न सिर्फ लगातार रंग भर रही है बल्कि समाज की वंचित, गरीब और अनाथ बच्चियों को भी संस्कार युक्त शिक्षा देकर सबल बना रही है। अनाथ बच्चियों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करनेवाली सरिता प्रसाद की खुद की कहानी भी दर्दभरी है, लेकिन इन बच्चियों का भविष्य गढ़ने में अब वह अपना दुख भूल चुकी है। हजारीबाग के तकिया मजार रोड में आर्य समाज की ओर से संचालित आर्ष कन्या आवासीय आश्रम में रहने वाली 165 बच्चियों को सरिता के रूप में एक ऐसी मां का आंचल मिला है जो खुद अविवाहित है।
पूरा विद्यालय सरिता को दीदी मां के नाम से जानता है। सरिता की ऊंचाई महज तीन फीट है, लेकिन उसका काम उसे इतना ऊंचा दर्जा देता है, जिसके बारे में जानकर अब हर किसी का सिर उसके लिए श्रद्धा से नत हो जाता है।
गूंजती हैं वैदिक ऋचाएं
आर्ष कन्या पाठशाला के परिसर में आप प्रवेश करेंगे तो पूरा माहौल वैदिक मंत्रोच्चार और पुरातन भारतीय संस्कारों में रचा-बसा नजर आएगा। यहां रहनेवाली लड़कियां संस्कृत के धाराप्रवाह श्लोकों का पाठ करती नजर आएंगी तो कहीं अनुशासन, संस्कार, सत्कार, आदर, शिष्टाचार, विनम्रता और भारतीय संस्कृति के पाठ पढ़ते हुए और कहीं योगाभ्यास करते हुए।
परिसर में होम, हवन, यज्ञ और विधि-विधान पूर्वक अनुष्ठान करती-कराती छात्राएं आपको अचंभित भी कर सकती हैं। खास बात यह है कि ये बच्चियां उस अनाथ तबके से हैं जिन्हें फुटपाथ से या गली-कूचों से उठाकर यहां उनका जीवन बदलने के लिए लाया गया है। पिछले कई वर्षो से 40 वर्षीय सरिता प्रसाद इसी काम में जुटी हैं।
लोगों ने उड़ाया छोटे कद का उपहास
सरिता अपनी निजी जिंदगी के बारे में ज्यादा बताना नहीं चाहतीं, फिर भी इतना बताती हैं कि वह मूल रूप से बोकारो की रहनेवाली हैं और उसके पिता बीएसएल में इंजीनियर थे। छोटी कद-काठी के कारण उसे हमेशा लोगों के उपहास का सामना करना पड़ा और समाज के साथ अपने परिवार ने भी उसे दुत्कारा। छोटे कद के कारण शादी भी नहीं हो सकी। ऐसे में उसने अनाथ और गरीब लड़कियों के जीवन में रंग भरने की ठानी। परिवार आर्य समाज से जुड़ा था। इस कारण आश्रम में उसकी पसंद का सेवाकार्य भी मिल गया। अब सरिता, उसका संघर्ष और उसकी सेवा ही इस आश्रम की पहचान है।
दूसरे के घरों में करती थी काम
विद्यालय में पढ़ने वाली अधिकांश बच्चियां दूसरे के घरों में बर्तन मांजने, गाय-बकरी चराने, कचरा बीनने का काम करती थीं। अब ये बच्चियों यहां वेद का पाठ पढ़ रही हैं। विद्यालय की मूल भाषा ही संस्कृत है और बच्चियां फर्राटे से संस्कृत का श्लोक बोल रही हैं। बच्चियों का स्कूल में दिनचर्या सुबह 4 बजे ही शुरूहो जाती है। विद्यालय में झारखंड के अलावा बिहार, असम, मणिपुर, त्रिपुरा व ओडि़शा की भी बच्चियां हैं।
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