मां-बाप को गर्व तो बेटा, बेटी भी देश सेवा में जाने को तैयार
बसिया (गुमला): बसिया खंड के फरसामा में लोगों का तांता लगा हुआ है। प्रखंड प्रशासन की पूर
बसिया (गुमला):
बसिया खंड के फरसामा में लोगों का तांता लगा हुआ है। प्रखंड प्रशासन की पूरी मंडली सुबह से सुरक्षा बलों के साथ कैंप किए हुए है।
जम्मू के पुलवामा में आतंकी हमले में फरसामा का बेटा और सीआरपीएफ की 82 वीं बटालियन हेड कांस्टेबल शहीद हो गया है। आने वाली हर आंखें नम हैं, सांत्वना के शब्द हैं। आस-पड़ोस, गांव का हर आदमी आकर अपनी भावना जाहिर कर जाना चाहता है। पाकिस्तान और आतंकियों के खिलाफ गुस्से का इजहार करता है। विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव भी आए थे। सांत्वना देने के दौरान बार-बार अपनी आंखें पोछते रहे। शहीद विजय के गुरूजी भी आए थे। अब लोगों को शहीद के पार्थिव शरीर आने का इंतजार है।
बेटे की शहादत पर मां-बाप को है गर्व घर में मातम का माहौल है। शहीद विजय के पिता वृष भी सेना के जवान थे। विजय उनके बड़े पुत्र थे। शहादत से पिता और मां लक्ष्मी देवी का मन चीत्कार कर रहा है। बेटे के गंवाने का दर्द नहीं दबा पा रहे हैं। मगर नम आंखों से बेटे की शहादत पर गर्व करते हैं। कि देश की सेवा के दौरान शहीद हुआ। मां अपने बेटे की याद में रह रहकर पछाड़ मार रही है। आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा।
रात में फोन के बाद उड़ गई नींद गुरूवार की देर रात जैसे ही फोन से वृष सोरेंग को उनके पुत्र की शहीद होने की सूचना किसी ने दी गई उसके बाद से उनके और पड़ोसियों के आंखों की नींद उड़ गई। टीवी पर भी खबरें आ रही थीं। हर पल बेचैनी भरा था मगर इंतजार था तो पुष्टि का। बाप-मां का कलेजा कह रहा था सच नहीं हो सूचना। रात पलकों में ही कटी।
----------- निभाया पिता होने और देश का सपूत होने का धर्म
शहीद विजय सोरेंग का पुत्र अरुण सोरेंग अपने पिता के शहीद होने से आहत है। मन में आतंकियों के खिलाफ गुस्सा भी। फफकते हुए कहा कि एक माह पहले पिताजी अवकाश में आए थे। उनसे मिला था। 24 जनवरी को फोन पर उनसे बातचीत हुई थी। उन्होंने पढ़ाई के बारे में पूछताछ की थी। ठीक से पढ़ने की सलाह दी थी। उन्होंने अपने पिता का धर्म तो निभाया ही। देश के सपूत होने का धर्म भी पूरा किया। वह आक्रोश व्यक्त करते हुए कहता है कि सरकार खून का बदला खून से ले। वह भी देश सेवा के लिए सेना में जाने को तैयार है। पिता के कार्यों को आगे बढ़ाने का प्रण लेता है। शहीद विजय की बेटी रेखा सोरेंग सिमडेगा में आठवी कक्षा की छात्रा है। उसका भी वही हाल है। गर्व, गुस्सा और नफरत और पिता के गंवाने का दुख रह-कर कर चेहरे का रंग बदलता है। आतंकी और पड़ोसी देश के प्रति नफरत और गुस्से का भाव। कहती है कि उसके पिता ने देश के लिए शहादत दी है। इसकी खुशी तो है लेकिन उनके नहीं रहने का गम भी है। सेना में शामिल हो वह भी अपने पिता की देश की सेवा करना चाहती है। मौत के कुछ घंटे पहले हुई थी पत्नी से बात पति के गंवाने का गम विमला के चेहरे पर साफ दिख रहा है। दूसरी पत्नी विमला देवी कहती है कि गुरुवार को बारह बजे के करीब दिन में उनसे मोबाइल से बात हुई थी। क्या पता था अंतिम बात होगी। कहा था कि तुम हमेशा बीमार रहती हो। ज्यादा काम मत करना। बच्चों की देखभाल करना। दो माह बाद छुट्टी लेकर आऊंगा कुरडेग के अधूरे घर को पूरा कराउंगा।
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जिस दिन सेवा निवृत्त हुआ बेटा सेना में आ गया
परिजनों स्मृति विजय सोरेंग की शहादत के बाद परिजनों के लिए उनकी स्मृति शेष बच गई है। उनके पिता वृष सोरेंग कहते हैं कि मैं सेना का जवान था। बेटा भी सेना बनना चाहता था। बचपन से ही उसमें देशभक्ति का भाव था। उसकी शहादत पर मुझे गर्व है। मैं जब तक ¨जदा रहूंगा अपने बेटा के व्यवहार और संस्कार को भूल नहीं पाउंगा। उसकी देशभक्ति के भाव को हमेशा दिल में संजोकर रखूंगा। जिस साल मैंने सेना से सेवानिवृत्त हुआ, संयोग की बात है कि उसी साल उनका बेटा देश की सेवा के लिए चला गया।
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1993 में आए सेवा में, राष्ट्रपति के परिवार के साथ भी रहे
विजय सोरेंग हॉकी के अच्छे खिलाड़ी थे, उसी के बूते उन्हें सेना में नौकरी मिली थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के आरसी मिशन प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। कुम्हारी से हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी। 1990 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। इंटर की पढ़ाई रांची के गोस्सनर कॉलेज से की। 1993 में विजय सेना में बहाल हुए। 1995 में एसपीजी में कमांडो दस्ता में शामिल हुए। कमांडों के रुप में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा की बेटी दामाद के अंग रक्षक के रुप में सेवा देना आरंभ किया। 16 वर्षों तक झारखंड में तैनात रहे। वर्ष 2018 में उनका पदस्थापन जम्मू में कर दिया गया था। 14 फरवरी को वे शहीद हुए।
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शहीद होने का नहीं हो रहा है विश्वास
हंसमुख इंसान और व्यवहार कुशल संतान विजय सोरेंग के व्यक्तित्व की विशेषता थी। सेवा काल के दौरान वे अपने ग्रामीणों और मित्रों को परिवार से भी बढ़कर चाहते थे। जब वे अवकाश में घर आते थे तो पहले मित्र के घर जाया करते थे। हाल चाल लेते थे गप सड़ाका करते थे। हंसते और हंसाते थे। उसके बाद ही वे अपने पैतृक घर जाते थे। और परिवार के सदस्यों से मिलते। उनकी यही याद उनके शहीद होने पर लोगों के दिल को कचोट रहा है। उनके परिजनों और मित्रों ने बताया कि जम्मू में पदस्थापित होने के बाद पिछले पांच फरवरी को वे अपने घर फरसामा आए थे। मां पिताजी से मिले थे। उनका हाल चाल लिया। खेती बारी के बारे में चर्चा की और सेहत पर ध्यान देने की नसीहत दी थी। दो दिनों तक घर और मित्रों से मिल जुलकर सात फरवरी को सिमडेगा गए थे। आठ फरवरी को राउरकेला मे जम्मू के लिए ट्रेन पकड़े थे। 14 फरवरी को दिन के 12 बजे उन्होंने घर पर फोन किया था। परिवार के लोगों से हाल चाल लिया था और अपने जम्मू जाने की जानकारी दी थी। माता -पिता परिजन और मित्र कहते हैं कि बात तो कल की ही थी। पर कल ही उनका शहीद हो जाना देश भक्ति के भाव को मन मे जागाता तो है। परिवार के सदस्य व मित्र होने का गर्व महसूस कराता है। लेकिन इंसान का इतना जल्दी विदा हो जाना विश्वास नहीं दिलाता है।
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भुला नहीं पा रहा दोस्त के खोने का गम शहीद विजय सोरेंगे के बचपन के दोस्त जगतपाल साहु अपने मित्र के खो देने का गम नहीं भुला पा रहे। बचपन की यादें और साथ की चूहलबाजी बरबस उन्हें याद दिला देती है। कहते हैं कि जब बच्चा था तो दोनों मित्र एक साथ बैल बकरी चराने जाते थे। खेलते कूदते और उछलते नाचते थे। 1993 में जब मेरा दोस्त विजय देश की सेवा करने चला गया उसके बाद भी उसमें बदलाव नहीं आया था। वह हमेशा मुझे पत्र लिखता था। हाल चाल लेते रहता था। मैं भी पत्राचार करता था। कैसा आत्मीय संबंध था हमदोनों में कि वह देश के लिए शहीद हो गया और मुझे आंसू बहानी पड़ रही है। 16 वर्षों तक झारखंड में सेवा देने के दौरान वह हमेशा मेरे पास आता था , अपने घर जाने से पहले मेरे घर आता था। परिवार के सदस्यों से ज्यादा मुझे मानता था। अंतिम बार जब वह अवकाश में आया था तो वह मुझसे मिले बिना नहीं रह सका। अपने आंसूओं को रोकने की कोशिश करते हुए जगतपाल साहु कहते हैं कि कल जब टीवी में समाचार देख रहा था तो उसे फोन किया , फोन नहीं लगा। पूरे गांव के लिए वह एक हंसमुख इंसान और व्यवहार कुशल इंसान ही नहीं देख के लिए मर मिटने वाला सच्चा जवान भी था। वह सभी के सुख दुख में भाग लेता था । मदद करता था। इसलिए वह वीर शहीद हम सबों के लिए मसीहा था। ---------
सोरेंग का गांव
फरसामा गांव देश सेवकों का गांव है। शहीद विजय सोरेंग का गांव। देश के जवानों का गांव रहा है। उनके पिता सेना से निवृत जवान है। हीरा साहु आर्मी में है। ¨वदेश्वर टोप्पो झारखंड पुलिस में सेवा देते हुए सेवानिवृत्त हुए हैं। वहीं गोस्सनर टोप्पो , जोगेश उरांव, ब्लासियुस सोरेंग और लाजरुस बा भी सेना में योगदान दे चुके हैं। वहीं लालू टोप्पो, सीआरपीएफ से सेवानिवृत हुए हैं।
------------- शहीद विजय का जीवन परिचय
शहीद विजय सोंरेंग का जन्म 1974 में हुआ था। घर में पुत्र रत्न की प्राप्ति की सूचना वृष सोरेंग को सिकंदराबाद में प्रशिक्षण लेने के दौरान मिली थी। वृष सोरेंग दो भाई थे उनकी दो बहनें हैं। उनके छोटे भाई का नाम संजय सोरेंग है। जबकि बहन का नाम सुधा देवी व गीता देवी है। विजय सोरेंग दो शादियां की थी। एक कारमेल बा झारखंड सैन्य पुलिस में रांची में पदस्थापित हैं। कारमेल को एक पुत्र अरुण सोंरेंग है। वह खूंटी के बिरसा कॉलेज में पढ़ाई करता है। दूसरी पत्नी विमला देवी से तीन संतानें हैं। विमला सिमडेगा जिला के कोचेडेगा में रहती है। दूसरी पत्नी से पुत्री रेखा कुमारी व बर्खा कुमारी व पुत्र राहुल कुमार हैं। जो सिमडेगा में रहकर पढ़ाई करते हैं।