दुश्मनों ने पूरा नहीं होने दिया संतोष का घर बसाने का सपना
जागरण संवाददाता गुमला शहीद संतोष गोप के घर रविवार को मातम पसरा था। मां-बाप भाई के
जागरण संवाददाता, गुमला : शहीद संतोष गोप के घर रविवार को मातम पसरा था। मां-बाप, भाई के साथ ही ग्रामीण भी सिसक रहे थे। मां सारो देवी बेटा को खोने के गम में अपने दरवाजे पर बैठी चुपचाप कभी धरती को निहारती तो कभी आने-जाने वालों को। आंखें डबडबायी हुई है। परिवार और गांव की महिलाएं उन्हें घेरे हुए है। मां सारो देवी कहती है कि उनके परिवार के उम्मीद का एकमात्र तारा टूट गया। वह कमा कर सबको खिलाता था। उसकी शादी करने की बात सोच रही थी। घर परिवार बसाने की चाहत पाले हुई थी लेकिन दुश्मनों ने उसे पूरा नहीं होने दिया। लेकिन मेरा बेटा देश के काम आया। इससे मुझे गर्व है। भाई नीलांबर गोप कहते हैं कि वह कम पढ़ा लिखा है। भाई जब आता था तो मेरा हाल चाल पूछा करता था। घर परिवार चलाने में मदद करता था। शहीद के पिता जीतू गोप मध्यम दर्जे के किसान हैं। उनके दो पुत्रों में संतोष छोटा था। बड़ा भाई नीलांबर गोप है।
खेती किसानी ही परिवार के सदस्यों का मुख्य धंधा है। उसका भाई नीलांबर और पिता जीतू गोप गांव में रहकर खेती बारी करते हैं। शहीद का गांव सिसई बसिया रोड में पाकरटोली चौक से लगभग तीन किलोमीटर दूर है। शहीद संतोष गोप के परिजन एक ही जगह रहते हैं। संतोष इसी गांव से पढ़ लिखकर 2012 में सेना में बहाल हुआ था। कर्नल ने पूछा क्या गुमला से बोल रहे हैं..
शनिवार रात लगभग दस बजे मोबाइल पर फोन की घंटी बजी.. उस समय परिजन सोने की तैयारी में थे। फोन बड़े भाई नीलांबर ने उठाया। फोन करने वालों ने पूछा कि क्या आप झारखंड के गुमला जिला के बसिया प्रखंड के टेंगरा गांव से बोल रहे हैं। हां में जवाब देने पर फोन करने वाले ने अपने को सेना का कर्नल बताते हुए पूछा कि क्या आप संतोष गोप को जानते हैं। हां में जवाब देने पर बताया कि संतोष गोप सीज फायर के उल्लंघन में घायल हुआ था। अस्पताल में चिकित्सकों ने उसे बचाने की हर संभव कोशिश की लेकिन नहीं बच सका। ममरला व गुमला में हुई थी शिक्षा दीक्षा
गांव के लोग बताते हैं कि संतोष गोप काफी मेधावी था। उसके बड़े भाई ने पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन संतोष ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। वर्ष 2009 में वह ममरला के निर्मला उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इंटर की पढ़ाई के लिए उसने गुमला के कार्तिक उरांव महाविद्यालय में नामांकन कराया था। वह गुमला प्रखंड के कोयंजारा गांव में अपने मामा लक्ष्मण गोप के घर में रहकर इंटर की पढ़ाई करने प्रतिदिन लगभग बीस किलोमीटर की दूरी तय कर आया जाया करता था। पढ़ने में अभिरूचि होने के कारण वह नियमित कक्षा में उपस्थित रहता था। वर्ष 2011 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सेना में बहाल होने के लिए दौड़ने और खेलने का अभ्यास आरंभ कर दिया था। उससे दो कक्षा नीचे पढ़ने वाली उसकी चचेरी बहन जयश्री कुमारी बताती है कि विद्यालय के टीम में शामिल होकर वह फुटबाल खेला करता था। अहले सुबह वह गांव से दौड़ते हुए कोयल नदी के तट पर जाता था और दौड़ते हुए वहां से वापस घर आता था। संतोष नियमित यह अभ्यास करता था और सेना में उसकी बहाली वर्ष 2012 में हुई थी। अवकाश में आने पर परिवार से घुल मिल कर रहता था सेना में नौकरी मिलने के बाद वह जब भी अवकाश में घर आता था तब वह परिवार के सदस्यों से मिल जुल कर रहा करता था। लोगों से बातचीत करना, हंसी ठिठौली करना और विनम्र भाव से सबके साथ व्यवहार करना उसकी खासियत थी जो आज परिवार और समाज के लोगों को अखर रहा है। उसकी हंसी ठिठौली को याद कर उसके समकालीन युवाओं के आंखों मे आंसू भर आते हैं। क्या कहती है मुखिया चुमानी उरांव ओकबा पंचायत की मुखिया चुमानी उरांव कहती है कि वह बच्ची से मिलने बसिया जाने वाली थी लेकिन सोशल मीडिया पर शहीद संतोष के बारे में जानकारी मिली तो वह यहां आयी है। उन्होंने कहा कि बाबा रे बाबा यह तो मेरे ही पंचायत का लाल है। वह शहीद हो गया। ऐसा नहीं होना चाहिए था। हम अपेक्षा करते हैं कि हमारी सरकार शहीद संतोष का बदला दुश्मन देश पाकिस्तान से लेकर रहेगी। देश सेवा में संतोष का शहीद होना गर्व की बात है। क्या कहते हैं प्रखंड प्रमुख विनोद भगत संतोष गोप शहीद हुए हैं। उनका शहीद होना भले ही देश के लिए गर्व की बात हैं लेकिन परिवार और समाज के लिए अच्छा नहीं है। इससे पहले लुंगटु पंचायत के अजय कुजूर और फरसामा के विजय सोरेंग शहीद हुए थे। बसिया शहीदों की वीर भूमि है। हम अपने वीर सपूत संतोष गोप को नमन करते हैं श्रद्धांजलि देते हैं। पाक हमेशा पीठ के पीछे हमला करता है। हमें एक के बदला एक हजार से लेना होगा। गांव का आदर्श युवा था संतोष गोप : ओरियानी बाड़ा
देश की सीमा पर शहीद हुआ गांव का लाल संतोष गोप वाकई में हमारे गांव के लिए आदर्श युवा था। उसका आचार व्यवहार काफी अच्छा था। नशा से दूर था। वह खैनी गुटका भी नहीं खाता था। मेहमानी जाना भी पंसद नहीं करता था। घर और गांव में रहकर सबसे मिलते जुलते रहता था। उसका मिलनसार स्वभाव हमेशा याद रहेगा।