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अंग्रेजों के ताना से नाम पड़ा था जतरा टाना भगत

By Edited By: Published: Thu, 15 Aug 2013 12:14 AM (IST)Updated: Thu, 15 Aug 2013 12:15 AM (IST)
अंग्रेजों के ताना से नाम पड़ा था जतरा टाना भगत

गुमला :आजादी के 33 वर्ष पहले की बात है, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। एक ओर अंग्रेज देश वासियों पर हुकूमत चला रहे थे वहीं दूसरी ओर अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन भी आरंभ हो गया था। इस आंदोलन में गुमला जिला भी पीछे नहीं था।

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राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भूमि पुत्रों ने अपने-अपने स्तर से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सामाजिक आंदोलन की शुरूआत की दी थी। उन्हीं सामाजिक आंदोलन की एक चिंगारी थे जतरा टाना भगत जिन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ सत्य और अहिंसा का मार्ग चुना और लोगों को संगठित कर अंग्रेजी शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का बिगूल फूंका। जतरा का जन्म बिशुनपुर प्रखंड के चिंगरी गांव में एक गरीब घर में हुआ था। उसका स्वभाव बचपन से ही कुछ अलग था। वह इतना दयालु थे कि वे किसी का कष्ट नहीं देखना चाहते थे। समाज में कभी कभी होने वाले रोग दुख में लोगों की मदद करने की इच्छा से वे अपने गांव के कुछ दूरी स्थित हेसराग गांव में भंगा भगत से झाड़ फूंक का ज्ञान हासिल करने लगा।

एक दिन की बात है जब जतरा ने एक पेड़ पर चड़कर चिड़िया के घोंसला से अंडा उतार रहा था। तभी अंडा हाथ से गिर गया और अंडा में पल रहे चूजा की मृत्यु हो गई। अफसोस जाहिर करते हुए वह ऐसा गलती कभी नहीं करने का संकल्प लिया और तालाब में स्नान करने लगा। तालाब में स्नान करना जतरा के जीवन में एक नया मोड़ ले आया। मानो झाड़ फूंक का ज्ञान उस पर प्रभावी हो गया। तालाब में ही अचानक वह बोलने लगा-

टाना बाबा टाना भूतनी के टाना, कोना कोची भूतनी के टाना

टाना बाबा टाना टुन टाना कासा पीतर मना ढकनी में खाना

मांस मदिरा मना दोना पतनी खाना टाना बाबा टाना

जतरा भगत के अजीबो गरीब आवाज सुनकर गांव के लोग वहां जुट गए और उसे घटना के बारे में पूछताछ किया। जतरा भगत ने कहा कि उसे धर्मेश का दर्शन हुआ है। यह उसी का दिया हुआ मंत्र है। इस बात से गांव के लोग उसका सम्मान करने लगे। जतरा भगत के ज्ञान की जादुई प्रभाव से लोग उसके साथ जुड़ते गए। जतरा के बढ़ते जनाधार को देखते हुए अंग्रेजों ने उसे ताना मारने लगे। अंग्रेजों का ताना उसके नाम पर जुड़ गया और वह जतरा टाना भगत के नाम से जाना जाने लगा। वर्ष 1914 के आस पास गांव में गरीबी थी। वह गरीबी के कारण काफी चिंतित रहते थे। ऊपर से जमीदारों का शोषण भी कष्ट दे रहा था। जतरा ने गांव-गांव में बैठक आरंभ कर लोगों में मांस मदिरा के खिलाफ सामाजिक चेतना जागरूक करने लगे। अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन का विगूल फूंका। गांव में सभा बुलाकर आह्वान किया कि जल जंगल जमीन हमारा है। इस पर हम मेहनत करते हैं इसलिए इस जल जंगल जमीन पर हमारा अधिकार है। जतरा टाना भगत का यह बात अंग्रेजों तक जंगल में आग की तरह फैल गया। धीरे-धीरे जतरा के आंदोलन में उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। वर्ष 1916 में अंग्रेज शासन ने उसके खिलाफ भड़काने के आरोप में उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और डेढ़ वर्ष की सजा सुनाई गई। जतरा की गिरफ्तारी के बावजूद उसके आंदोलन में विराम नहीं लगा लेकिन जेल में उसे इतनी यातनाएं दी गई थी कि जेल से छूटने के कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। जतरा टाना भगत के मृत्यु के बाद टाना भगतों का आंदोलन और तेज हो गया। समाज सुधार का वह टाना आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ हो गया और इसका मुख्य हथियार बना अहिंसा। इसी दौरान टाना भगतों की मुलाकात रांची में हुई। टाना भगत के अहिंसक आंदोलन से महात्मा गांधी काफी प्रभावित हुए। टाना भगत भी गांधी जी के साथ जुड़ गए और उनके भक्त हो गए। टाना भगतों के जीवन में गांधी जी का प्रभाव पड़ा जो आज भी प्रासंगिक है। खादी कपड़ा और गांधी टोपी उनका मुख्य पोशाक बन गया और पूरे देश में इनकी पहचान बन गई। देश आजाद हो गया लेकिन अब भी वे अपने अधिकार के लिए संघर्षरत हैं। आज भी टाना भगत तिरंगा को भगवान की तरह पूजा करते हैं।

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