घरों में मना मुहर्रम, नहीं निकला ताजिया जुलूस
गोड्डा जिले में रविवार को मुहर्रम पर्व मनाया गया। कोरोना महामारी ने मुहर्रम पर्व के उत्स
गोड्डा : जिले में रविवार को मुहर्रम पर्व मनाया गया। कोरोना महामारी ने मुहर्रम पर्व के उत्साह पर ग्रहण लगा दिया। इस बार किसी भी तरह का कोई ढोल, तासा या ताजिया निशान जुलूस नहीं निकला। जिला प्रशासन की ओर से जगह जगह पुलिस बलों के साथ दंडाधिकारी प्रतिनियुक्त किया गया था। पूरे क्षेत्र में कहीं भी रविवार को मुहर्रम को लेकर निशान जुलूस नहीं निकाला गया। जिला मुख्यालय के असनबनी, नहर चौक, गुलजार बाग, कारगिल चौक, हटिया सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के संवेदनशील स्थानों में पुलिस की गश्ती सुबह से ही होती रही। पूरे जिले में मुहर्रम को लेकर कहीं से भी कोई अप्रिय घटना की सूचना नहीं है। जिले के सर्वाधिक संवेदनशील मेहरमा के सुरनी गांव में भी पुलिस की कड़ी निगहबानी से शांति और सौहार्द के साथ लोगों ने मुहर्रम का त्योहार अपने घरों में ही मनाया।
कोरोना महामारी ने लोगों के चेहरों पर त्योहार के दिन की खुशी छिन ली है। सबों के अरमानों पर पानी फिरा। लोगों ने सरकार के निर्देशों का सख्ती से पालन करते हुए मुहर्रम मुहर्रम अपने घरों में ही मनाया। इस दौरान जिला मुख्यालय में अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अरविद्र कुमार सिंह, नगर थाना प्रभारी सह निरीक्षक अशोक कुमार सिंह, मुफस्सिल थाना प्रभारी जेके जायसवाल आदि जगह जगह गश्त करते नजर आए।
-----------------------------------------------
मुहर्रम के साथ शुरू होता इस्लामिक कैलेंडर
हनवारा : इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक (अरबी /उर्दू / फ़ारसी) इस्लामी वर्ष यानी हिजरी वर्ष का मुहर्रम पहला महीना है। हिजरी वर्ष का आरंभ इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। साथ ही इस मास में रोजा रखने की खास अहमियत है। मुख्तलिफ हदीसों, यानी हजरत मुहम्मद के कथन व कर्म से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है।
हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम में रखे जाते हैं। इस्लामी हिजरी सन्का पहला महीना मुहर्रम है। मुहर्रम का यह पहलू आमजन की नजरों से ओझल है। पैगंबरे इस्लाम ने इस माह में खूब रोजे रखे और अपने साथियों को भी आकर्षित किया था। इस बारे में कई प्रमण हदीस में मौजूद हैं। मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादतों का भी बड़ा सवाब बताया गया है। हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का सवाब (फल) 30 रोजों के बराबर मिलता है। गोया यह कि मुहर्रम के महीने में खूब रोजे रखे जाने चाहिए। यह रोजे अनिवार्य यानी जरूरी नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत सवाब है। अलबत्ता यह जरूर कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह के नबी हजरत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था। इसके साथ ही आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था। कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी वीभत्स और निदनीय है। बुजुर्ग कहते हैं कि इसे याद करते हुए भी हमें हजरत मुहम्मद का तरीका अपनाना चाहिए। जबकि आज आमजन को दीन की जानकारी नहीं के बराबर है। अल्लाह के रसूल वाले तरीकों से लोग वाकिफ नहीं हैं।