काश! गंभीरता से लिया होता कागज पर लिखा मजमून
केंदुआ (पोड़ैयाहाट) :काश ! बाघमारा पंचायत के केंदुआ गांव के लोगों ने कोरे कागज पर
केंदुआ (पोड़ैयाहाट) :काश ! बाघमारा पंचायत के केंदुआ गांव के लोगों ने कोरे कागज पर लिखे अंचलाधिकारी के पत्र के मजमून को गंभीरता से लिया होता तो आज यह नौबत न आती। दरअसल, गांव में गोचर भूमि में बनाए गए 14 आदिवासियों के घरों को 19 सितंबर को जेसीबी की सहायता से प्रशासन ने तुड़वा दिया था। इससे अधिकतर परिवार खुले आसमान के नीचे आ गए हैं। सभी बगल में ही स्थित एक बंद स्कूल में शरण लिए हुए हैं। अगले वर्ष होनेवाले लोकसभा व विधानसभा चुनाव को देखते हुए वहां राजनीति भी शुरू हो गई है। हर दिन यहां नेता पहुंच रहे हैं और अपने को आदिवासियों को सच्चा मसीहा साबित करने में जुटे हुए हैं।
इस गांव में कुल 45 घर हैं जहां की आबादी 250-300 के बीच है। गांव में दो व्यक्ति सरकारी नौकरी करते थे। कालीचरण टुडू शिक्षक पद से हाल ही में सेवानिवृत हुए हैं। सुलेमान टुडू पुलिस में हैं तथा दुमका में रहते हैं। कभी-कभार गांव आते हैं। गांव में पढ़े लिखे लोगों की संख्या कम ही है फिर भी बाबूराम टुडू प्रशासन द्वारा जमीन खाली करने के लिए नोटिस मिलने की बात स्वीकार करते हैं। वे कहते हैं कि नोटिस मिलने के बाद वे लोग ब्लॉक में गए थे और जमीन खाली करने के लिए कुछ समय की मांग की जो उनलोगों को मिली भी। राजेश टुडू दूसरी बार व तीसरी बार भी नोटिस मिलने की बात स्वीकार करते हैं। वे कहते हैं कि इसके बाद कुछ लोगों ने अपनी जमीन में घर का निर्माण किया। यहां के अधिकतर लोग मजदूरी करते हैं। कई लोग तो काम की खोज में बाहर भी हैं। इसलिए घर बनाने में विलंब हुआ। हालांकि, सभी लोगों ने अपने घरों से खपड़ा हटा लिये थे इसके बाद घर तोड़े गये। बकौल राजेश हमलोगों ने पत्र को गंभीरता से नहीं लिया। पूर्व में मिले नोटिस के कोई कार्रवाई नहीं होने से लगा कि यहां कुछ नहीं होगा।
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मुख्यमंत्री जनसंवाद में हुई शिकायत : प्रशासन ने घर तोड़ने की कार्रवाई मुख्यमंत्री जनसंवाद केंद्र झारखंड की शिकायत संख्या 2007-1907 दिनांक 14 जनवरी 2017 के आलोक में की है। डीसी को रिपोर्ट में सीओ ने लिखा है कि 30 नवंबर 2017 की सुनवाई में अतिक्रमण हटाने के लिए छह माह का समय मांगा गया था। 19 जुलाई 2018 को 15 दिनों का समय दिया गया। 3 अगस्त 2018 को पुन: एक माह का समय दिया गया। तब घरों पर नोटिस चिपकाया गया। परिणामस्वरूप अधिकतर लोगों ने अपने घरों से सामान आदि हटा लिया। 19 सितंबर अतिक्रमण हटाया।
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हमारे दर्द से किसी को वास्ता नहीं : गांव के सनुज टुडू से ने बताया कि स्थानीय विधायक प्रदीप यादव दो दिन पहले आए थे। घर टूटने से पहले वे कभी आए हैं या नहीं तो बताया कि याद नहीं। स्थानीय सांसद के बारे में बताया कि वह उन्हें पहचानता नहीं है। जिला मुख्यालय से गांव की दूरी करीब 23 किलोमीटर है। 18 साल से प्रदीप यादव स्थानीय विधायक हैं लेकिन आज तक गांव में सड़क नहीं बनी है। बाघमारा से करीब डेढ़ किलोमीटर कच्ची सड़क पर चलना पड़ता है तब जाकर यह गांव आता है। हालांकि, 14वें वित्त आयोग से गांव में सीमेंट की सड़क बनाई गई है। पूर्व विधायक प्रशांत मंडल भी आदिवासियों का दुख-दर्द बांटने पहुंच रहे हैं लेकिन करीब 12 वर्ष तक विधायक रहने के बाद भी वे यहां पक्की सड़क नहीं बनवा सके। कहा कि हमारे दर्द से किसी नेता को वास्ता नहीं है।
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सबसे पहले पहुंचे मुखिया फिर गरमाती गई राजनीति :
आदिवासियों का घर टूटने की जानकारी मिलने के बाद सर्वप्रथम लाठीबाड़ी पंचायत के मुखिया व आदिवासी एवैन वैसी के अध्यक्ष सिमोन मरांडी वहां पहुंचे थे। आदिवासियों की कुछ आर्थिक सहायता की। चूंकि सिमोन विधानसभा क्षेत्र में इन दिनों अच्छी सक्रियता है। नतीजा अन्य नेता भी पहुंचने लगे। अगले दिन स्थानीय विधायक प्रदीप यादव पहुंचे। आदिवासियों के भोजन की व्यवस्था कराई। सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने सभी बेघर हुए परिवारों को दस-दस हजार रुपये देने की घोषणा कर दी है। फेसबुक पर लिखा कि भाजपा कार्यकर्ता बेघर हुए लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिलाएंगे। सिमोन कहते हैं कि गांव वालों ने नोटिस के बारे में बताया होता तो सीओ से मिलकर प्रशासन से बात करते। जमीन के बदले जमीन दिलाते। तो यह नौबत नहीं आती।
वर्जन ::::
केंदुआ में जिन आदिवासियों का घर तोड़ा गया है उनमें कोई भूमिहीन नहीं है। मुख्यमंत्री जनसंवाद में शिकायत आई थी जिसके आधार पर यह कार्रवाई की गई है। घर खाली करने के लिए सभी को पर्याप्त समय भी दिया गया था। उसके बाद भी अतिक्रमण न हटने पर प्रशासन ने उसे हटाया।
किरण कुमारी पासी, उपायुक्त, गोड्डा