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ससुर- दामाद की लड़ाई में तीसरे ने मारी थी बाजी

ससूर- दामाद की लड़ाई में तीसरे ने मारी बाजी

By JagranEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 06:23 PM (IST)Updated: Wed, 04 Dec 2019 06:23 PM (IST)
ससुर- दामाद की लड़ाई में तीसरे ने मारी थी बाजी
ससुर- दामाद की लड़ाई में तीसरे ने मारी थी बाजी

संवाद सहयोगी , गोड्डा : गोड्डा विधानसभा सीट में वर्ष 1957 में रोचक चुनावी मुकाबला हुआ था। तत्कालीन बिहार विधानसभा के दूसरे आम चुनाव में गोड्डा में ससुर-दामाद की चुनावी भिडंत की चर्चा आज भी होती है। यहां के पहले विधायक बुद्धिनाथ झा कैरव के विरुद्ध उनके ही दामाद सह महेशपुर निवासी बररुचि झा ने मोर्चा खोल दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि ससुर-दामाद की लड़ाई में तीसरे ने बाजी मार ली। जी हां, यहां तब नया चेहरा जेएनपी प्रत्याशी मणिलाल यादव ने चुनाव फतह हासिल की थी। यादव के निकटतम प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय प्रत्याशी चुनका हेम्ब्रम थे। चुनाव में बुद्धिनाथ झा कैरव और उनके दामाद बररुचि झा मुख्य लड़ाई से आउट हो गए थे।

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बता दें कि तब कैरव जी कांग्रेस के प्रत्याशी हुआ करते थे वहीं बररुचि झा ने सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा था। बुद्धिनाथ झा कैरव एवं बररुचि झा दोनों ही प्रखर स्वतंत्रता सेनानी रहे थे। बररुचि झा संतालपरगना क्षेत्र के पहले एमए पास व्यक्ति थे। छात्र जीवन में ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका अदा की थी। जानकारों का कहना है कि आजादी के बाद भी बररूचि झा ने ग्राम स्वराज की स्थापना को लेकर जयप्रकाश नारायण सहित अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ साथ गांव- गांव जाकर भ्रमण किया। इसी दौरान उन्हें चुनाव लड़ने की प्रेरणा मिली और वे सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर मैदान में अपने ससुर के खिलाफ ही कूद पड़े। कहा जाता है कि ससुर- दामाद में कभी किसी बात को लेकर विवाद भी नहीं हुआ था। दोनों काफी सुलझे व्यक्तित्व वाले थे। प्रचार का माध्यम पैदल यात्रा थी। कभी कभार दोनों बैलगाड़ी का उपयोग दुर्गम जगह जाने में किया करते थे। ससुर- दामाद की चुनावी जंग में कैरव तीसरे स्थान पर आ गए थे वहीं जबकि बररूचि झा को चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा। इसके बाद भी बररुचि झा ने दोबारा कभी चुनाव मैदान में कदम नहीं रखा। बररुचि झा भागलपुर में बरारी हाईस्कूल में प्राचार्य पद पर कार्यरत थे और वहीं से सेवानिवृत्त भी हुए। वहीं कैरव जी ने भी बाद में राजनीति से संन्यास ले लिया। 1970 में कैरव जी का निधन हुआ। उनका पैतृत गांव बसंतराय के सनौर था। वहीं बररुचि झा का निधन 2004 में इलाज के दौरान भागलपुर में हुआ था। ससुर-दामाद की चुनावी जंग की चर्चा आज भी गोड्डा में होती है।


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