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    Mushroom Farming: 200 से 300 रुपये प्रति किलो बिक रहा है ये खास तरह का मशरूम, खेती से चमक गई कई महिलाओं की किस्मत

    Updated: Mon, 19 May 2025 09:32 AM (IST)

    गोड्डा जिले में मिल्की मशरूम की खेती ने 200 से अधिक महिलाओं की जिंदगी बदल दी है। प्रशिक्षण के बाद मोतिया रंगनियां जैसे गांवों की महिलाएं मशरूम उत्पादन से हर महीने 8 से 10 हजार रुपये कमा रही हैं। कम लागत और बाजार में अच्छी कीमत के कारण यह महिलाओं के लिए सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    विधु विनोद, गोड्डा। मिल्की मशरूम के उत्पादन से गोड्डा की 200 से अधिक महिलाओं ने अपनी दशा और दिशा बदल ली है।

    तकनीकी प्रशिक्षण के बाद सदर प्रखंड के मोतिया, रंगनियां, बिरनियां, पटवा, गंगटा आदि गांवों की 200 महिलाएं इन दिनों मिल्की मशरूम के उत्पादन में रम गई हैं। इन महिलाओं को गोड्डा में ही बाजार मिल गया है।

    मशरूम उत्पादन की लागत 20 रुपये प्रति किलो है। वहीं बाजार में यह 200 से 300 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। सदर प्रखंड के आधा दर्जन गांवों की 200 से अधिक महिलाएं इस कारोबार में शामिल हैं।

    मशरूम उत्पादन से उनकी प्रति माह आमदनी आठ से दस हजार रुपए हो रही है। गोड्डा में बाजार उपलब्ध होने से मशरूम की खपत भी अधिक हो रही है।

    40 डिग्री तापमान में भी होता मशरूम का उत्पादन

    गर्मी में खेती करना बड़ी चुनौती है लेकिन गोड्डा की महिलाएं मिल्की मशरूम का उत्पादन कर मौसम को मात दे रही हैं।

    विशेषज्ञों का कहना है कि मशरूम का उत्पादन तो 45 डिग्री तापमान में भी संभव है। मिल्की मशरूम की यहीं खासियत है कि इसे 40 से 45 डिग्री तापमान में भी आसानी से उगाया जा सकता है।

    मशरूम 90 प्रतिशत नमी और बंद कमरे के वातावरण में तेजी से विकसित होता है। इसके लिए महिलाओं को ट्रेनिंग के साथ साथ मशरूम उत्पादन के लिए जरूरी सामान भी मुहैया कराया जा रहा है।

    सदर प्रखंड के मोतिया, डुमरिया, पटवा, रंगनिया, बक्सरा, नयाबाद, गंगटा आदि गांवों की महिलाएं अदाणी फाउंडेशन की ओर से कालांतर में प्रशिक्षण दिया गया।

    इससे उनकी सामाजिक और आर्थिक तस्वीर बदली। अदाणी फाउंडेशन की उक्त पहल नारी सशक्तीकरण के साथ गरीबी उन्मूलन का बेहतरीन उदाहरण है।

    ऐसे तैयार होता मशरूम

    महिलाएं सबसे पहले भूसे को फार्मलीन और दवाओं से उपचारित करती हैं। फिर बीज मिलाकर पालिथीन थैलियों में भरकर उसे अंधेरे कमरे में रखती हैं।

    20 दिन बाद केसिंग होती है, जिसमें मिट्टी और खाद मिलाकर हल्की सिंचाई की जाती है। लगभग 15 दिन में मशरूम उगने लगते हैं। मशरूम का स्वाद और पौष्टिकता अव्वल है ही।

    यह अपने औषधीय गुणों के चलते भी काफी फायदेमंद है। कई बीमारियों में मिल्की मशरूम खाने की सलाह डॉक्टर देते हैं।

    पटवा सहित आसपास के गांवों की महिलाएं पहले सिर्फ घर के कामों तक सीमित थीं, लेकिन अदाणी फाउंडेशन से ट्रेनिंग के बाद अब मशरूम उत्पादन करके हर महीने आठ से दस हजार रुपये तक कमा रही हैं। पहले लगता था कि खेती सिर्फ पुरुषों का काम है, लेकिन अब मशरूम उत्पादन में यहां की महिलाओं ने अपनी पहचान बना ली है।-बिन्दु देवी, मशरूम उत्पादक किसान, पटवा, गोड्डा।

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