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ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन की दरकार

समय दिन के 1000 बज रहे थे। मेरी मोटरसाइकिल हंसडीहा देवघर सपाट रोड पर फर्राटे भर रहा था । अभी हंसडीहा से तकरीबन तीन साढे 3 किलोमीटर की दूरी तय की थी कि मड़कुरा के पास कानों में खटखट की आवाज और आंखों में आग की लपटें दिखाई देने लगी

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 06:57 PM (IST)Updated: Sat, 07 Dec 2019 06:19 AM (IST)
ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन की दरकार
ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन की दरकार

पोड़ैयाहाट : समय दिन के 10:00 बज रहे थे। मेरी मोटरसाइकिल हंसडीहा देवघर सपाट रोड पर फर्राटे भर रहा था। अभी हंसडीहा से तकरीबन तीन साढे 3 किलोमीटर की दूरी तय की थी कि मड़कुरा के पास कानों में खटखट की आवाज और आंखों में आग की लपटें दिखाई देने लगी। एकाएक मुझे याद आया कि बागवानी के लिए मुझे खुरपी खरीदनी है और इससे बेहतर जगह और कुछ नहीं हो सकता है। मैंने गाड़ी को साइड कर रोक दिया। सड़क किनारे लगे भट्टी में लोहे गल रहे थे और कुछ मजदूर लाल लोहे को पीट रहे थे। मैं बोला मुझे खुरपी चाहिए। एक बुजुर्ग आदमी ने कहा खुरपी तो बना हुआ नहीं है कुछ देर इंतजार कीजिए बस तुरंत बनाकर दे देता हूं। मैंने उनका नाम पूछा उन्होंने बताया नागेश्वर मिस्त्री। मैने गप को आगे बढ़ाया क्योंकि मैं देखा कि उस समय वहां पर दो भट्टी चल रहा था जिसमें 4 कारीगर लगे हुए थे और दो कारीगर वहां पर अलग से काम कर रहे थे। मैंने कहा धंधा तो अच्छा है। अच्छा चल रहा है। मिस्त्री ने कहा हां देवघर जिला में बुढ़ई में बड़ा मेला लगता है उसी के लिए सामान की तैयारी कर रहे हैं। कुछ कारीगर लोहे को गला कर उसको कत्ता, डाभा, कतरनी आदि का आकार देने में लगा हुआ था । मैंने कहा कि ठीक है गांव घर का यह बहुत अच्छा धंधा है। कितना कमा लेते हैं एक दिन में। शर्मा जी ने कहा धंधा तो ठीक है एक दिन काम होता है तो 15000 खर्च होते हैं और इतना पूंजी नहीं कि महीना भर हम लोग काम कर सकें । मेला वगैरह देखते हैं या फिर कि जब बाजार से मांग आता है तब हम लोग बनाते हैं। मुझे लगा कि विगत सरकार बैंक के द्वारा छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए ,ग्रामीणों को स्वरोजगार उत्पन्न करने के लिए आसान किस्तों पर बैंक से ऋण का काफी प्रचार-प्रसार किया है । मैंने उनसे पूछ ही लिया कि आखिर बैक से आप लोग लोन क्यों नहीं लिए, सरकार तो आसानी से कर्ज दे रही है। इतना सुनना था कि एक कारीगर जो भांति चला रहा था उसने कहा क्या बोलते हैं सर कर्ज लेने में टायर और चप्पल दोनों ही खिया ( घिस) गया है। लेकिन आज तक कर्ज नहीं मिला कहीं 10 परसेंट तो कहीं 15 परसेंट मांगा जाता है। मुझे लगा कि यह कुछ ज्यादा बोल रहा है। मैंने कहा ऐसा नहीं हो सकता है जरूर लोन मिला होगा। भले ही आपको नहीं मिला हो। उसी समय नागेश्वर मिस्त्री ने कहा कि लोन तो मिला है सर लेकिन जिनको पैरवी और पैसा है उन्हीं को लोन मिला है। ऐसे कई लोगों के द्वारा बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है और काफी तरक्की कर रहा है। हम लोग तो कारीगर हैं हम लोग को लोन कौन देगा और इतना पैसा है नहीं जो हम लोग घूस दे सकते हैं क्योंकि घूस भी देंगे सूद भी देंगे तो कमाई क्या खाक होगा। इसी बीच एक कारीगर ने कहा कि सर पीएम जीपी को लेकर दुमका तक दौड़े लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ बस सिर्फ घर से खर्चा हुआ और समय की बर्बादी और कुछ नहीं।

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- इनसेट

- कुछ पंचायत के लोगों को आसानी से मिल जाता लोन

संवाद सहयोगी, पोड़ैयाहाट: नागेश्वर शर्मा ने बताया कि सर इस इलाके में पोड़ैयाहाट विधानसभा के सरैयाहाट प्रखंड में कोठिया चौक, ककनी , मंडलडीह, मड़कुरा, पेछखार भरकुंडी आदि गांव में तकरीबन 200 से ज्यादा विश्वकर्मा परिवार रहता है। सिर्फ एक ककनी गांव में 110 से ज्यादा परिवार रहता है । इसी बीच कोठिया चौक के पास दुकान के मोहित शर्मा भी आ पहुंचते हैं। कहने लगते हैं काफी परेशानियों का सामना हम लोगों करना पड़ता है । आज लोहा का रेट कम है अगर पूंजी रहता तो आज लोहा खरीद कर हम लोग रख लेते और सामान बनाकर जमा कर लेते तो आने वाले दिनों में काफी मुनाफा होता लेकिन यह सिर्फ सोच कर ही रह जाना पड़ता है। कुछ पंचायत को लोन तो मिल जाता है लेकिन बहुतों को नहीं मिल पाता है । राम लखन शर्मा जो बैल का नाल बना रहा था बोलता है पूंजी रहेगा तब ना कोई काम होगा । बस जितना घर में उसी से किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं। नागेश्वर मिस्त्री ने कहा कि यह क्षेत्र संथाल परगना का चाइना है जहां हर घर में कुछ ना कुछ लोहे की सामग्री बनती है। किसी घर में सिर्फ कचिया बन रहा है तो किसी घर में डिबिया तो किसी घर में कुछ और सब बड़े पैमाने पर बनता है । अंतर सिर्फ यह है कि चीन में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के लिए प्रसिद्ध है और मेरा यह छोटा सा जगह लोहे की सामान को लेकर। बस अंतर है तू सिर्फ व्यवस्था के मार का। गप में समय कुछ ज्यादा ही लग गया था। मुझे जाना भी था। मैंने देखा कब का मेरा खुरपी बनकर तैयार है। वह भी नक्काशी दार लकड़ी के बैट के साथ । मैं पैसा देने लगा तो नागेश्वर शर्मा ने हाथ जोड़कर बोला पैसा लेकर क्या करेंगे यह आपको एक निशानी देता हूं। मुझे लगा यह तो अन्याय है मैंने उन्हे 50 का नोट थमाया और चलते बना वह पुकारते रह गया पैसा लौटाने को लेकर मैं उनकी बात अनसुनी कर के अपनी गाड़ी स्टार्ट कर चलते बना। रास्ते में दर्जनों जगह भट्टी और लोहे पर काम करते हुए कारीगरों को अपने कामों में लगे हुए थे मुझे लगा कि नागेश्वर जी ने सच ही कहा यह क्षेत्र संथाल परगना का चाइना है। लेकिन यह चाइना धीरे-धीरे उजड़ते जा रहा है।


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