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बिकरामपुर में बिटिया नहीं ब्याहना चाहते बाबुल

संवाद सहयोगी हनवारा घड़ी की सुई टिकटिक करती हुई साढ़े नौ पर पहुंची है। महागामा प्रखण्ड मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर परसा पंचायत अंतर्गत बि़करामपुर गांव घने कोहरे में लिपटा हुआ है। मेढ़ो व पगडंडी के सहारे मोटरसाइकिल से आदर्श ग्राम बि़करामपुर का सफर भी काफी दुरुह रहा। सात वर्ष पूर्व तत्कालीन विधायक राजेश रंजन ने इस सड़क विहीन गांव को गोद लेकर आदर्श ग्राम का दर्जा दिलाया था। इस गांव में आदर्श ग्राम योजना मद से करीब 43 लाख 66 हजार की लागत से सामुदायिक भवन का

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 08:09 PM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 06:19 AM (IST)
बिकरामपुर में बिटिया नहीं ब्याहना चाहते बाबुल
बिकरामपुर में बिटिया नहीं ब्याहना चाहते बाबुल

हनवारा: घड़ी की सुई टिकटिक करती हुई साढ़े नौ पर पहुंची है। महागामा प्रखण्ड मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर परसा पंचायत अंतर्गत बिकरामपुर गांव घने कोहरे में लिपटा हुआ है। मेढ़ो व पगडंडी के सहारे मोटरसाइकिल से आदर्श ग्राम बिकरामपुर का सफर भी काफी अच्छा रहा। सात वर्ष पूर्व तत्कालीन विधायक राजेश रंजन ने इस सड़क विहीन गांव को गोद लेकर आदर्श ग्राम का दर्जा दिलाया था। इस गांव में आदर्श ग्राम योजना मद से करीब 43 लाख 66 हजार की लागत से सामुदायिक भवन का निर्माण हुआ है। इसके अलावा इस आदर्श ग्राम में सरकार की कोई उल्लेखनीय कार्य नजर नहीं आते हैं। गांव में प्रवेश के साथ ही कुछ युवा वोटर बताते हैं कि बीते पांच सालों में कोई काम नहीं हुआ। विधायक-सांसद जीत कर यहां कभी नहीं आते। गांव की सबसे बड़ी समस्या सड़क की है। गांव के दो तरफ( पश्चिम व पूर्व) में नदी से घिरा है। बरसात के दिन में गांव से निकलना दुर्लभ हो जाता है। गांव के स्कूल के समीप तीन चार बच्चे खेल रहे हैं। शिक्षक बायोमेट्रिक में अपनी हाजिरी बनाने में व्यस्त हैं। इसी बीच स्कूल के सामने में एक एम्बुलेंस लावारिस की तरह पड़ी है। वहां एक व्यक्ति ने बताया कि देखो नी ई एम्बुलेंस हमरो गांव में तीन साल पहिले देले छै, लेकिन सड़क ही नाय छै ते इन गाड़ी कहियो नाय गांव से बाहर होलो छै। उसने अपना नाम इकबाल बताया। स्कूल के सामने बीबी खैतून निशा का घर है। दरवा•ो पर तीन बुजुर्ग चारपाई पर बैठे हुए थे। आपस मे कुछ बातें कर रहे थे। बीबी खैतून निशा घर से पानी लेकर आती है। इस बीच कहती है कि साहब आपने हमरो गांव कैसे आइलो। यहां तो कोई साधन नहीं छै। इधर बुजुर्ग खुर्शीद, मो कलीम व मो सईद बताते हैं कि उनलोगों को न तो आवास मिला और नहीं अन्य कोई सरकारी लाभ। उज्ज्वला , आयुष्मान योजना, शौचालय, वृद्धा पेंशन योजना से भी सभी वंचित हैं। बुजुर्गों ने कहा कि उनके बच्चे दिल्ली-पंजाब में मजदूरी करते हैं। उन्हीं के पैसे से किसी तरह कच्चा मकान बना कर रहते हैं। गांव में सड़क नहीं है। बरसात के दिन में यह गांव टापू बन जाता है। पक्की सड़क की तो बात दूर है, कच्ची सड़क भी नहीं है। ग्रामीण जमीन देने को तैयार हैं, बावजूद सड़क नहीं बन रही है। जाति बिरादरी के लोग इस गांव में शादी करने से भी कतराने लगे हैं। मुश्किल से किसी युवा की शादी होती है तो इस शर्त पर कि शादी के बाद वह अपना परिवार कहीं बाहर रखेगा। आदर्श ग्राम में निर्मित सामुदायिक भवन भी लावारिस स्थिति में पड़ा हुआ है। आफताब आलम ने बताया कि इस गांव की आबादी 1200 है, जिसमें 900 वोटर हैं। खेती कार्य खत्म होने के बाद खेतों में बनी पगडंडी के सहारे लोग पैदल और बाइक से आवागमन करते हैं। गांव सड़क विहीन होने के कारण इस गांव के कई संपन्न लोग यहां से पलायन कर चुके है। गांव की मैमूना खातून ने बताया कि गैस की बात तो दूर राशन कार्ड तक नहीं बना है। सद्दाम आलम ने कहा गांव के सभी युवा पढ़ लिखकर बेरोजगार बैठे हैं।

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