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मंदिर के खुले पट, शारीरिक दूरी के साथ श्रद्धालुओं ने किया पूजन

जिला मुख्यालय सहित सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के दुर्गा मंदिरों व पूजा पंडालों के पट शुक्रवार को खोल दिये गये। इसके पूर्व मां की अगुवानी को लेकर जगह- जगह छर्रा दी गयी। इस बार कोरोना संकट के कारण प्रशासन के दिशा निर्देश के कारण छर्रा

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 07:22 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 05:08 AM (IST)
मंदिर के खुले पट, शारीरिक दूरी के साथ श्रद्धालुओं ने किया पूजन
मंदिर के खुले पट, शारीरिक दूरी के साथ श्रद्धालुओं ने किया पूजन

जागरण टीम, गोड्डा : जिला मुख्यालय सहित सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के दुर्गा मंदिरों व पूजा पंडालों के पट शुक्रवार को खोल दिये गये। इसके पूर्व मां की अगुवानी को लेकर जगह- जगह छर्रा दी गयी। इस बार कोरोना संकट के कारण प्रशासन के दिशा निर्देश के कारण छर्रा देने वालों की भीड़ कम रही। खासकर पारंपरिक दुर्गा मंदिरों यथा बारकोप व महागामा में तो छर्रा देने की प्राचीन परंपरा है। इधर सभी मंदिरों में देवी दर्शन व पूजन को लेकर श्रद्धालुओं की भीड़ लगने लगी है। सभी अपने-अपने अंदाज से पूजा करने के लिए घर से निकल रही हैं। वहीं आसपास क्षेत्र में मेला नहीं लगने से पूजा स्थल सूना-सूना लगा रहा है। इस बार मंदिर परिसर सहित आसपास क्षेत्रों में अध्यात्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गयी है। भीड़ के मद्देनजर प्रशासन द्वारा लगातार निगरानी की जा रही है। महेशपुर व मोतिया में केला थंब की प्रतिमा :

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प्राचीन परंपरा के तहत बसंतराय प्रखंड के महेशपुर गांव स्थित बड़ी व छोटी दुर्गा मंदिरों में केला के थंब की प्रतिमा स्थापित की गयी है। जहां पूजन को लेकर आसपास क्षेत्र में उत्साह का माहौल है। मंदिर के आचार्य मदन कुमार झा ने बताया कि यहां प्राचीन परंपरा के तहत केला थंब की नवपत्रिका प्रवेश करायी जाती है। उसकी का सप्तमी से लेकर नवमी तक विधिवत पूजन होता है। यह मां दुर्गा पुत्रदायिनी माता के रूप से विख्यात है। यहां तो भी आता है खाली हाथ नहीं लौटता है। इसी प्रकार मोतिया में भी केला थंब का नवपत्रिका प्रवेश कराकर पूजा का विधान संवाद सूत्र, महागामा : महागामा पुरानी दुर्गा मंदिर में तांत्रिक विधि व निर्धारित समय पर पर देवी की नवपत्रिका स्थापित की गयी। इसके पूर्व मां बेलभरणी का पूजन कर गर्भगृह तक लाया गया इसके बाद प्रतिमा को प्राण प्रतिष्ठा देकर स्थापित किया गया। इस दौरान प्राचीन परंपरा को कायम रखते हुए अरहर के पौधे से झाड़ू, दंड व फावड़ा दिया गया। कोरोना के मद्देनजर गाइडलाइन के अनुसार फावड़ा में इस बार अन्य महिलाओं को इजाजत नहीं दी गयी। इससे श्रद्धालुओं में काफी नाराजगी देखी गयी। दुर्गा मंदिर के पुजारी कहते हैं कि बेलबरन मां दुर्गा की ननंद है जिन्हें सर्वप्रथम निमंत्रण देकर विधि विधान से गर्भ गृह में स्थापित किया जाता हैं। मंदिर में माता की गुप्त पूजा भी होती हैं। मंदिर में मां दुर्गा की पूजा तीन रूपों में की जाती हैं। दुर्गामंदिर के समिति के अध्यक्ष दयाशंकर ब्रह्म ने मां की आराधना को लेकर कहा कि इनकी आराधना दुर्गा, लक्ष्मी व सरस्वती तीनों रूपों में की जाती है। माता की सबसे बड़ी कृपा मंदिर पर बरसती है और श्रद्धालु सालों भर दुर्गा मंदिर पहुंचकर माता के चरणों में अपना शीश झुकाते हैं। दुर्गा स्थापना के साथ ही देवी दर्शन को लेकर श्रद्धालुओं के आने- जाने का सिलसिला शुरू हो गया। इस बार आसपास क्षेत्र में मेला व किसी भी प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयेाजन नहीं होने से रंग फीका हो गया है। बावजूद श्रद्धालुओं में उत्साह की कोई कमी नहीं पड़ रही है। संवाद सहयोगी, पथरगामा : प्रखंड मुख्यालय सहित विभिन्न क्षेत्रों के दुर्गा मंदिरों सहित पूजा पंडालों में मां दुर्गा की स्थापना के साथ ही मंदिर के कपाट खुल गये। इसके साथ ही मंदिर में माथा टेकने को लेकर श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। प्रखंड मुख्यालय के बड़ी दुर्गा मंदिर, राजघराने का प्राचीन मंदिर बारकोप, रजौन मोड़ बिसाहा, लौगाय आदि दुर्गा मंदिरों में शुक्रवार को बेलभरन पूजा एवं मां जगदंबा की अगुवानी को लेकर 21 बालाओं द्वारा सापिन नदी से कलश शोभा यात्रा निकाली गयी। कलश शोभा यात्रा की आगुवाई आचार्य ललन जी महाराज ने किया। सापीन नदी में बेलभरणी की पूजा विधि विधान से की गयी। इसके उपरांत 21 संकल्पित बालिकाओं ने सापीन नदी से जल भरकर बड़ी दुर्गा मंदिर लाया। इसके बाद देवी दुर्गा सहित अन्य प्रतिमा को प्राण प्रतिष्ठा देने के उपरांत मंदिर के कपाट को खोल दिया गया। फोटो संवाद सहयोगी, पोडै़याहाट : पोडै़याहाट बाजार समेत ग्रामीण क्षेत्रों में शनिवार को सप्तमी तिथि पर वैदिक ऋचाओं एवं दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ माता रानी का पट खोल दिया गया है। माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ आम बरसों से काफी कम रही रही है। माता रानी का दरवाजा तकरीबन बंद रखा गया। श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बाहर से खुला हुआ था। पूजा-पाठ गेट के बाहर ही लोगों ने किया। इसके पूर्व जलाशयों के पवित्र जल में स्नान के साथ ही बेलभरणी को लाकर मंदिरों में स्थापित किया गया। प्रखंड मुख्यालय के पुराना बाजार, बंगाली टोला, बांझी रोड के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों के डांड़ै, देवडांड़, रघुनाथपुर ,लाठीबाड़ी, बक्सरा, पूर्वेडीह, बिरनिया ,हरियारी, मानिकपुर सहित दर्जनों गांव में पूजा पंडालों में माता की पूजा आरती के साथ ही श्रद्धालु ने माता रानी का दर्शन किए।

संवाद सहयोगी, बोआरीजोर : प्रखंड के विभिन्न दुर्गा मंदिरों में माता सहित अन्य प्रतिमाओं के पूजन के साथ ही मंदिर के कपाट खोल दिये गये। सप्तमी पूजा को देवी के सातवे स्वरूप कालरात्री की पूजा अर्चना की गयी। हालांकि कोरोना को लेकर प्रशासनिक रोक की वजह से श्रद्धालुओं की संख्या कम रही। वही दर्शन दूर से की करते देखे गए। कालरात्रि के पूजा अर्चना के बाद मंदिर व बाजार में लोगों की भीड़ जुटी। इससे पहले सीमित संख्या में श्रद्धालु पुरुष महिला सरोवर तट से जल व बेलभद्रन का आगमन को लेकर छर्रा देते हुए अक्षत पुष्प, दूध, जल, सेनवार के पत्ते से पवित्र किए गए रास्ते से मां को मंदिर में प्रवेश कराया। तत्पश्चात प्रतिमाओं की विधिवत पूजा अर्चना की गई। आचार्य अंकेश उपाध्याय ने बताया कि मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक है लेकिन यह सदैव फल देने वाली माता है। इसलिए इसका नाम शास्त्रों में सुंभकरी भी कहा गया है। इसके पूजा से दुष्टों का दलन और ग्रह बाधा टल जाती हैं। संवाद सहयोगी, ललमटिया : ललमटिया स्थित पुरानी दुर्गा मंदिर एवं राजमहल परियोजना द्वारा निर्मित दुर्गा मंदिर में विधि विधान के साथ मां के सातवें स्वरूप की पूजा अर्चना की गई। बाबा शालिग्राम पांडेय ने बताया कि नवरात्र के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी-काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। मां के इस स्वरूप की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति पर आने वाले आकस्मिक संकटों से रक्षा होती है। मां का यह स्वरूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक शक्तिओं का नाश होता है।


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