महागामा दुर्गा मंदिर में छह सौ वर्ष से नवरात्र की धूम
महागामा : महागामा में स्थित दुर्गा मंदिर खेतोरी वंश के राजा मोलब्रह्म के वंशजों के द्वारा द्वारा स्थ
महागामा : महागामा में स्थित दुर्गा मंदिर खेतोरी वंश के राजा मोलब्रह्म के वंशजों के द्वारा द्वारा स्थापित की गई है। यह उनकी कुलदेवी का मंदिर है। आज से करीब छह सौ वर्ष पहले तांत्रिक पद्धति से स्थापित की गई थी। आश्विन महिने क शुक्ल पक्ष में माता की तांत्रिक पद्धति से पूजा-अर्चना होती है। प्रथम पूजा की पूर्व रात्रि सैकड़ों की संख्या में स्थानीय श्रद्धालु महागामा से कहलगांव गंगा स्नान के लिए जाते हैं। श्रद्धालुगण कललगांव के गंगाघाट से गंगाजल भर कर करीब 45 किलोमीटर की दूरी पैदल व वाहन द्वारा लाते हैं। पूरे नवरात्र इसी पवित्र गंगाजल से पूजा-पाठ का सारा काम होता है। इस बारे में राज मोलब्रह्म के वंशज दयाशंकर ब्रह्म ने बताया कि यह परंपरा करीब छह सौ वर्ष से चली आ रही है। गांगा नदी में स्नान कर भक्तिभाव से पवित्र जल लाकर पूरे नवरात्र में विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्र के छठे दिन शाम महागामा दुर्गा मंदिर के करीब चार सौ मीटर दूरी पर स्थित बृल्ब वृक्ष के जुड़वा बिल्ब (माता बेलभ्रण) की पूजा की जाती है। इसके बाद में गाजे बाजे के साथ विधि-विधान पूर्वक पंडित एवं राज परिवार के सदस्य के द्वारा माता बेलभ्रण को पूजन कर आमंत्रित किया जाता है। सप्तमी पूजा के तड़के सुबह माता बेलभ्रण को पूजन विधि विधान के साथ मंदिर परिसर लाया जाता है। बेल के वृक्ष से माता बेलभ्रण को लेकर राज परिवार के लोग व पंडितगण खड़े रहते हैं। माता बेलभ्रण को प्रणाम कर हजारों हजार की संख्या में भक्तजन रास्ते की साफ सफाई करते हुए माता के मंदिर तक पहुंचते हैं। इस दौरान दर्जनों श्रद्धालु माता को दंडवत पूजा भी करते हैं। मार्ग की साफ सफाइ के बाद स्थानीय महिला श्रद्धालुओं के द्वारा छर्रा दिया जाता है। इस दौरान महिलाएं हाथों मं कुल्हड़ लिए रहती हैं। कुल्हड़ में दूध, पुष्प भरा होता है। महिलाएं बेलभ्रण माता को चरण स्पर्श कर पूरे रास्ते में दूध पुष्प से रास्ते पांवड़ा बिछाते हुए मंदिर प्रांगण तक जाती हैं। राज परिवार के लोगों व पंडितों के द्वारा मां बेजभ्रण को मंदिर प्रांगण में ले जाया जाता है। जहां नवपत्रिका द्वारा उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। सर्वप्रथम बेलभ्रण मां को मंदिर में प्रवेश कराया जाता है। उनके बाद में माता की मूíत को गर्भ गृह में स्थापित किया जाता है। सप्तमी की रात्रि माता को 56 प्रकार के भोग लगते हैं। अष्टमी की रात्रि 12 बजे के बाद भगवती का तांत्रिक पद्धति से पूजन होता है। पूरे नवरात्र मंदिर में अखंड दीप प्रज्वलित किया जाता है। अष्टमी की रात मंत्र-तंत्र सिद्धि करने वाले अधोरियों का जमावड़ा लगता है। वे अपने सिद्धि प्राप्ति का प्रयास करते हैं। नवमी के दिन सरकारी/राज्य पूजन के बाद आम लोगों की ओर से करीब तीन हजार बकरे की बली दी जाती है।