17 बालू घाटों कि बंदोबस्ती समाप्त
गोड्डा: जिले में लगभग तीन साल पूर्व हुए अधिकांश बालू घाट कि बंदोबस्ती समाप्त हो गई है। जिले
गोड्डा: जिले में लगभग तीन साल पूर्व हुए अधिकांश बालू घाट कि बंदोबस्ती समाप्त हो गई है। जिले के 38 बालू घाटों में से बिहार - झारखंड राज्य की सीमा पर स्थित गेरूवा नदी के 17 बालू घाटों की बंदोबस्ती पहले ही रद हो गई थी। शेष 21 बालू घाटों में से 17 बालू घाटों की बंदोबस्ती की समय सीमा समाप्त हो गई है। अब इन घाटों से संबंधित एजेंसी बालू का उठाव नहीं कर सकेंगे। जिन घाटों की बंदोबस्ती समाप्त हुई है उन घाटों में सदर प्रखंड का जमनी पहाड़पुर घाट, पंदाहा घाट, लक्ष्मी घाट, सरौतिया घाट, दरघट्टी घाट, कनभारा घाट, ढाड़ाचक घाट, पथरगामा का रूफुचक घाट व अन्य प्रखंडों का ¨पडरा, सांखपुर साखी,रूपनी, परसिया, कैथपुरा बालू घाट आदि शामिल है। जबकि, एक घाट नीलकंठपुर कि अवधि अगले वर्ष समाप्त होगी। वहीं ढोढरी बालू घाट का पर्यावरण स्वीकृति अब तक नहीं मिल पाई है। इधर विभाग से मिली जानकारी के अनुसार अब बालू घाटों कि बंदोबस्ती नहीं होगी। राज्य सरकार की खनिज निगम बालू का उठाव करेगी। इस दिशा में तेजी से काम चल रहा है। घाटों को भी चिन्हित कर लिया गया है। इस संदर्भ में जिला खनन पदाधिकारी मेघनाथ टूडू ने बताया कि तीन साल पूर्व जिन बालू घाटों कि बंदोबस्ती हुई थी समय सीमा समाप्त हो गई है। राज्य सरकार कि एजेंसी खनिज निगम बालू का उठाव करेगी। हालांकि, अभी 15 अक्टूबर तक बालू उठाव पर रोक है।
बालू उठाव से नदियों की बदली सूरत: जिले के विभिन्न बालू घाटों की हुई बंदोबस्ती में अधिकांश बालू घाट का पट्टा दूसरे राज्य के लोगों को मिला नतीजन कझिया, चीर, हरना, लिलझी, गेरूवा का बालू हाइवा और ट्रक से बिहार बंगाल यूपी तक पहुंच गया। जिस अनुपात में नदी से बालू का दोहन किया गया। उस अनुपात से नदी में बालू आया नहीं। जिस कारण नदी गहरी होती चली गई। और अब स्थानीय स्तर पर ¨सचाई और पेयजल की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है।
किसानों के हित रखें ध्यान: माकपा नेता डा. राधेश्याम चौधरी, किसान नेता अरूण सहाय, मनोज कुशवाहा, ऋषिकेश भारद्वाज ने सरकार व प्रशासन ने मांग कि है नदी के बालू उठाव के लिए किसानों कि ¨सचाई सुविधा सहित वाटरलेबल को ध्यान में रखकर ही बालू उठाव कि योजना बनाई जाए। ताकि जिले के लोगों को सबसे पहले बालू जरूरत पूरी हो और किसानों के खेतों तक पानी पहुंचे। बालू के व्यापक दोहन के कारण कझिया हरना सहित अन्य नदी का अस्तित्व खतरे में है।