पशुधन के प्रति प्रेम व श्रद्धा का पर्व है सोहराय
- कार्तिक अमावस्या को सरैया बांधना से शुरू होता पर्व, पर्यावरण संकट से उबरने
- कार्तिक अमावस्या को सरैया बांधना से शुरू होता पर्व, पर्यावरण संकट से उबरने के लिए लिया जाता है संकल्प
संवाद सहयोगी गोड्डा: कार्तिक अमावस्या के मौके पर संपूर्ण झारखंड के साथ पश्चिम संताल के ग्राम अंचल में सरैया बांधना से सोहराय पर्व शुरू होता है। इस बाबत कुड़माली साहित्यकार, पर्यावरणविद व पूर्व मौसम वैज्ञानिक रतन कुमार महतो ने बताया कि गोड्डा सहित झारखंड, उड़ीसा व आसाम के कुर्मी एवं अन्य जनजातीय क्षेत्र में भी इसे परंपरागत तरीके से मनाने की प्रथा रही है। यह प्रथा वैदिक कालीन संस्कृति का अंग है। कृषि जीवन पद्धति में पशुधन ही असली धन है। इसी पर पूरी अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। सोहराय या बांधना विशुद्ध कुरमाली शब्द है। बताया कि सोहराय घास की महत्ता के कारण इस पर्व का नाम सोहराय पड़ा है। जबकि बांदा प्रक्रिया के लिए इसे बांधना कहा जाता है। पशुधन स्वस्थ रहें इसलिए इस पर्व को पशुधन की सलामती के लिए मनाया जाता है। मौके पर मवेशी के सिंह में तेल लगाना, उसे नहलाना, चौक पुरकर गुहाल में प्रवेश कराना, पैरों का प्रक्षालन व चूमावन करना, सूप में धान प्रवचन और ताजा घास खिलाना, रंगों से सजा कर गीत वह गाजा बाजा के साथ उसे नचाना आदि इसकी विशेषताएं हैं। पशुधन संरक्षण का विशेष संदेश इस पर्व में है। पशुधन की सलामती वृद्धि इस पर्व का अभिष्ट संदेश है। गोवंश के साथ पूरे पशुधन की रक्षा का संदेश इस पर्व से ग्रहण किया जा सकता है। पर्यावरण संकट से उबरने के लिए पशुधन को बचाने का संकल्प लिया जाता है।