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आदिवासियों की मदद करने का डीएफओ ने उठाया बीड़ा

डीएफओ राजेन्द्र नायडु ने आदिवासी समुदाय के लोगों को वन में मौजूद संपदाओं से ही मदद करने का बीड़ा उठाया है। आंध्रप्रदेश के रहने वाले 2008 बैच के आइएफएस अधिकारी राजेन्द्र नायडु ने बताया कि सुंदरपहाड़ी व बोआरीजोर प्रखंड के जंगलों के

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 06:44 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 05:08 AM (IST)
आदिवासियों की मदद करने का डीएफओ ने उठाया बीड़ा
आदिवासियों की मदद करने का डीएफओ ने उठाया बीड़ा

जागरण संवाददाता, गोड्डा : डीएफओ राजेन्द्र नायडु ने आदिवासी समुदाय के लोगों को वन में मौजूद संपदाओं से ही मदद करने का बीड़ा उठाया है। आंध्रप्रदेश के रहने वाले 2008 बैच के आइएफएस अधिकारी राजेन्द्र नायडु ने बताया कि सुंदरपहाड़ी व बोआरीजोर प्रखंड के जंगलों के नजदीक रहने वाले लोग पत्ता, फल, बीज आदि बेचकर गुजारा करते हैं। इनकी जिदगी गरीबी तथा तंगहाली में गुजरती है। वन से ही इन आदिवासियों को रोजगार मिले, इसके लिए कई प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया है। प्रस्ताव पर स्वीकृति मिलने के बाद इन वनवासियों को रोजगार का साधन मिल जायेगा। इसके लिए डमरूहाट के पास पत्ते से बनने वाले थाली और प्लेट के लिए बड़ी मशीन लगाने की योजना है। जहां प्रति दिन 50 हजार थाली व प्लेट बन सके।

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औषधीय पौधों के उपयोग की मिलेगी जानकारी : सुंदरपहाड़ी तथा बोआरीजोर के जंगलों में औषधीय पौधे बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं। जंगल के आस-पास रहने वाले आदिवासियों को इसके उपयोग की पूरी जानकारी नहीं है। सफेद मूसली, अश्वगंधा, नीम, तुलसी, गिलोय आदि के पौधे जंगलों में भरे पड़े हैं। जानकारी के अभाव में बाहर से आकर लोग इन औषधीय पौधों को कम कीमत पर खरीद कर ले जाते हैं। इसलिए औषधीय पौधे की सही जानकारी, उपयोग तथा इसे नए तरीके से लगाने के लिए आदिवासियों को प्रशिक्षण देने की भी योजना है। जिससे इन लोगों की आय में वृद्धि होगी। वन विभाग की योजना है कि जंगलों में कोकुन उत्पादन आदिवासियों द्वारा स्वंय सहायता समूह के माध्यम से कराया जाए। इससे होने वाले लाभ को उन्ही लोगों के बीच वितरित किया जाए। इसके अलावा आदिवासियों को कोकुन सस्ते दामों पर इनको मिले इसके लिए भी वन विभाग प्रयासरत है। कुओं के पानी से बोतल बंद जल निर्माण : सुंदरपहाड़ी के जंगलों में कई जगह कुओं से स्वत: पानी बाहर निकलते रहता है। यह जल मिनरल वाटर से भी ज्यादा शुद्ध व स्वादिष्ट है। इस जल को बोतल में बंद कर इसका व्यापार कराया जाय तो आदिवासियों को इससे काफी आमदनी होगी। इस जल का नाम आरण्य जल रखने का प्रस्ताव है।


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