दीपंकर भट्टाचार्य के चक्रव्यूह में फंसे झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी, कोडरमा सीट बनेगी फांस
पिछले लोकसभा चुनाव में माले यहां भाजपा की निकटतम प्रतिद्वंद्वी थी जबकि झाविमो प्रत्याशी प्रणव वर्मा काफी पीछे रह गए थे। इस बार पार्टी चाहती है कि बाबूलाल मरांडी खुद यहां से चुनाव लड़ें।
गिरिडीह, दिलीप सिन्हा। 2019 में मोदी लहर को रोकने के लिए पूरा विपक्ष भाजपा के खिलाफ एकजुट है। महागठबंधन बनाकर विपक्ष मोदी लहर को रोकने की रणनीति पर काम कर रहा है। इस महागठबंधन में कांग्रेस, झामुमो, झाविमो, राजद, भाकपा पहले से ही शामिल है। धुर वामपंथी पार्टी भाकपा माले भी अब महागठबंधन में दस्तक दे रहा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक संशोधन को लेकर विपक्ष के साथ मिलकर भाकपा माले भी मोदी व रघुवर सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है।
महागठबंधन में माले की इंट्री से सबसे अधिक परेशान झारखंड विकास मोर्चा है। कारण, माले के शामिल होने से झाविमो प्रमुख व पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी के लिए कोडरमा लोकसभा सीट से महागठबंधन का प्रत्याशी बनना आसान नहीं होगा। कारण, पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े को यदि आधार माना गया तो माले वहां झाविमो पर काफी भारी पड़ेगी। जबकि बाबूलाल यहां से भाजपा से सांसद बने थे। भाजपा से इस्तीफा देकर अकेले लड़े, तब भी जीते थे। झाविमो से भी वहां से चुनाव जीते हैं। लेकिन पिछला चुनाव वे यहां नहीं लड़े थे। प्रणव वर्मा को मैदान में उतारा था।
पिछले लोकसभा चुनाव में माले यहां भाजपा की निकटतम प्रतिद्वंद्वी थी जबकि झाविमो प्रत्याशी प्रणव वर्मा काफी पीछे रह गए थे। इस बार पार्टी चाहती है कि बाबूलाल मरांडी खुद यहां से चुनाव लड़ें। राजधनवार में हुए झाविमो के कोडरमा लोकसभा कार्यकर्ता सम्मेलन में स्पष्ट कर दिया गया था कि बाबूलाल यहां से अगला चुनाव लड़ेंगे। हालांकि बाबूलाल ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है। माले की यदि इंट्री होती है तो महागठबंधन नेतृत्व को कोडरमा सीट पर माले व झाविमो में से किसी एक के नाम पर फैसला लेना होगा। जब तक माले एकला चलो की नीति पर कायम थी, महागठबंधन में कोडरमा सीट पर स्वभाविक रूप से बाबूलाल मरांडी का दावा बनता था। लेकिन माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने एकला चलो की नीति में बदलाव लाते हुए महागठबंधन का दरवाजा खटखटा दिया। इसके लिए वे रांची में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन एवं पटना में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से भी मिले।
दीपंकर ने साफ संकेत दिया कि भाजपा को रोकने के लिए वे किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं। माले की पूरी विपक्षी एकता कोडरमा संसदीय सीट पर ही टिकी हुई है। लोकसभा चुनाव में कोडरमा ही माले की पूंजी है। अकेले लड़कर भी वह वहां भाजपा को चुनौती देने में सक्षम है। कोडरमा सीट यदि माले के लिए नहीं छोड़ा गया तो उसका महागठबंधन में बने रहना शायद ही संभव होगा। वामपंथ के नाम पर हजारीबाग के बजाय कोडरमा सीट छोड़ने का दबाव माले बनाएगी। सूत्रों के अनुसार कोडरमा छोड़कर किसी भी दूसरी लोस सीट पर माले बाबूलाल को समर्थन कर सकती है। निरसा के मासस विधायक अरूप चटर्जी ने बाबूलाल को महागठबंधन से धनबाद लोकसभा सीट से लड़ने का न्योता दिया है। माले यदि महागठबंधन से बाहर रही तो कोडरमा ऐसी सीट होगी जहां भाजपा को त्रिकोणात्मक संघर्ष का सामना करना होगा। वैसे भाजपा यही चाहती भी है। कारण, आमने-सामने की लड़ाई में भाजपा की मुश्किलें अधिक बढ़ेगी।
इस संबंध में माले के केंद्रीय कमेटी सदस्य व पूर्व विधायक विनोद सिंह ने दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए कहा कि कोडरमा में यदि भाजपा को हराना है तो विकल्प माले ही है। चाहे चुनाव का मैदान हो या सड़क की लड़ाई, हर जगह भाजपा के खिलाफ माले ही खड़ी नजर आएगी। जो भी पार्टी यहां भाजपा को हराना चाहती है, उसे माले को समर्थन देना होगा। कोडरमा लोकसभा अंतर्गत गिरिडीह जिले की चारों विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर जो वोटिंग हुई थी, उसमें माले भाजपा से भी आगे रही थी। सिर्फ कोडरमा एवं बरकट्टा विधानसभा क्षेत्र में पिछड़ने के कारण माले चुनाव नहीं जीत सकी थी। विपक्ष की प्राथमिकता भाजपा को हराना है।
कोडरमा में विपक्ष का प्रतिनिधित्व माले करेगी। सूबे की दूसरी सीटों पर माले विपक्ष से जो भी प्रत्याशी होगा, उसका समर्थन करेगी। वहीं झाविमो के केंद्रीय सचिव सुरेश साव का कहना है कि पिछले चुनाव का आंकड़ा नहीं बल्कि जमीनी हकीकत पर महागठबंधन सीटों का बंटवारा करेगा। कोडरमा में जमीनी हकीकत क्या है, यह खुद माले भी जानती है। कोडरमा सीट बाबूलाल मरांडी की है। माले राजधनवार एवं बगोदर को छोड़कर कहीं नहीं है। माले सीमित इलाकों में है और जहां है, वहां उसे सीट चाहिए। ऐसे में माले से महागठबंधन को क्या लाभ होगा? जबकि बाबूलाल मरांडी का आधार पूरे झारखंड में है। महागठबंधन को बाबूलाल का लाभ पूरे झारखंड में मिलेगा।