पहले पैदल चलना था मुश्किल, अब गाड़ियां भरती हैं फर्राटे
शाम के करीब पांच बज रहे हैं। इस वक्त हम खड़े हैं पीरटांड़ प्रखंड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर जहां से घोरबाद गांव शुरू होता है।
दीपक मिश्रा/ सिकंदर सिंह, पीरटांड़: शाम के करीब पांच बज रहे हैं। इस वक्त हम खड़े हैं पीरटांड़ प्रखंड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर, जहां से घोरबाद गांव शुरू होता है। गिरिडीह-डुमरी मुख्य मार्ग होते हुए यहां तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क बन चुकी है। इस इलाके में कभी पैदल चलना भी दुष्कर था, पर अब गाड़ियां फर्राटे भरती हैं। शाम में भी गांव की दिनचर्या पूरी तरह सक्रिय है। सामने एक होटलनुमा दुकान में चहलकदमी दिखी। समीप के मैदान में कुछ बच्चे खेल रहे हैं तो कुछ बीच सड़क पर दौड़ते नजर आ रहे हैं। हम गांव में अंदर बढ़ते हैं। बाइक सवार दो अजनबियों को देख ग्रामीणों के चेहरे पर प्रश्न का भाव साफ नजर आ रहा है। एक जगह रुककर लोगों से बातचीत में यह जानने की कोशिश की कि बीते पांच सालों में क्षेत्र में कोई सकारात्मक बदलाव हुआ या नहीं। अधिकतर लोगों का जवाब सकारात्मक लहजे में ही मिला। लोगों का कहना है कि सड़क, बिजली के साथ-साथ उज्जवला योजना, पीएम आवास जैसी योजनाओं का लाभ मिल रहा है तो आप कैसे कह सकते हैं कि विकास नहीं हुआ है। हां, अगर एक-दो लोगों को किसी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है तो उस सरकार को विफल नहीं कह सकते।
गांव में बिजली आ चुकी है। उज्जवला योजना के तहत कई परिवारों को गैस सिलिंडर व पीएम आवास योजना के तहत घर मिला है। आयुष्मान योजना के तहत गोल्डन कार्ड भी बना है। जीवलाल पंडित कहते हैं कि गांव में सिचाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। इसपर काम करने की जरूरत है। इस बार मतदान इसी समस्या को सुलझाने वाले के पक्ष में करेंगे। मनोज पंडित ने भी कहा कि सिचाई के साथ कहीं-कहीं पेयजल की भी समस्या है। गांव को वैसे जनप्रतिनिधि की आवश्यकता है, जो इन समस्याओं को दूर कर सके।