यहां डोली में बैठ अस्पताल जाती हैं गर्भवती महिलाएं
कोडरमा संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाला गांव सिरसिया जमुआ प्रखंड मुख्यालय से करीब 13 किमी. की दूरी पर स्थित है।
विवेकानंद सिंह, झारखंडधाम (गिरिडीह): कोडरमा संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाला गांव सिरसिया जमुआ प्रखंड मुख्यालय से करीब 13 किमी. की दूरी पर स्थित है। प्रखंड के अंतिम छोर में बसा यह गांव तीन ओर नदी और जंगल से घिरा है। गांव तक पहुंचने के लिए आज भी लोगों को मुख्य सड़क से चार किमी. पैदल चलना पड़ता है। कच्चे मार्ग से तथा नदी पार कर वाहनों का यहां आना-जाना होता है। सामान्य दिनों में तो किसी तरह लोग आवागमन कर लेते हैं, लेकिन बरसात में उनकी परेशानी बढ़ जाती है। करीब 400 की आबादी वाले इस गांव में केवल मंडल जाति के लोग ही निवास करते हैं।
दैनिक जागरण की टीम ने गांव का जायजा लिया। मुख्य सड़क के बाद उबड़-खाबड़ रास्ते से होकर गांव की ओर बढ़ा। गांव प्रवेश करते ही दुलो मंडल नामक व्यक्ति मिला। उन्होंने बताया कि गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है। लोगों के बीमार पड़ने पर जिला तथा प्रखंड मुख्यालय का सहारा लेना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं को बरसात में अस्पताल ले जाने में काफी दिक्कत होती है। नदी को पार करने के लिए डोली का सहारा लेना पड़ता है। थोड़ा आगे जाने पर प्रमोद मंडल मिले। उनसे जब गांव की जानकारी ली गई तो वह उत्तेजित हो गए। वहीं चार छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल के समय में जहां-तहां खेलते देखा। पूछने पर बताया कि ये बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र के हैं। केंद्र से वे नदारद हैं। सेविका जिला मुख्यालय में रहकर अपने बच्चों को पढ़ाती है। आंगनबाड़ी केंद्र में सिर्फ खानापूíत की जाती है। जन वितरण प्रणाली की दुकान का हाल जानने का प्रयास किया तो जानकारी मिली कि आवश्यकता से कम राशन व किरासन यहां उपलब्ध होता है। इसके बाद पेयजल की जानकारी ली तो पता चला कि गांव में इसकी बड़ी समस्या है। गांव में मात्र तीन-चार सरकारी चापाकल हैं। उसमें भी सिर्फ ठूंठ है। मात्र दो ही चापाकल कारगर हैं। शिक्षा के विषय में जानकारी लेनी चाही तो नारायण मंडल ने बताया कि गांव में एक उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय था, जिसे सरकार ने मर्ज कर दिया। आज यह विद्यालय जानवरों का अखाड़ा बना हुआ है। यहां के छात्र-छात्राओं को दूसरे गांव में जाकर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। कमल मंडल ने बताया कि गांव के लोग सिचाई की कमी काफी हद तक महसूस कर रहे हैं। एक धान के सिवाय कोई दूसरी खेती वे नहीं कर पाते हैं। सिचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। यहां बिजली की आंख मिचौली चलती रहती है। नियमित रूप से बिजली नहीं दी जाती है। गांव के कई बुजुर्गो को पेंशन नहीं मिल पा रही है। वह इसके लिए पंचायत प्रतिनिधियों से भी गुहार लगा चुके हैं। रैवत मंडल ने बताया कि शौचालय पानी के अभाव में शोभा की वस्तु बना हुआ है। लोग इस कारण उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। गांव में एक भी तालाब नहीं है।
दिनेश मंडल ने गांव के युवाओं की पीड़ा बताई। कहा कि वह पढ़ाई कर माइनिग की तैयारी कर रहा है, लेकिन समस्या है कि डीजीएमएस इस समाज को गलत नजरिए से देख रहा है। सही तो यह है कि उसके क्षेत्र का एक भी युवक ने साइबर अपराध जैसी घिनौनी हरकत नहीं की है। इस समाज के कुछ निर्दोष लोगों को अपराध की वजह से हर क्षेत्र में उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। प्रत्येक वर्ष पांच-दस युवक माइनिग की पढ़ाई कर नौकरी पाना चाह रहे हैं, लेकिन नौकरी मिल नहीं रही है। वह दूसरे प्रदेश में प्राइवेट नौकरी कर आजीविका चला रहे हैं। यहां के लोग मेहनत की बदौलत पूरी तरह सुखी हैं। अपने समाज के कुछ युवकों की करतूत पर झल्लाते हुए कहा कि समाज के कुछ शिक्षित युवक साइबर क्राइम कर लोगों को रूला रहे हैं। इस तरह के अपराधियों को कड़ी से कड़ी मिलनी चाहिए, ताकि ऐसा कोई नहीं कर सके।