गिरिडीह में हर रोज घट रहा जलस्तर, बढ़ रही परेशानी
शहर से सटे झिझरी मोहल्ला में निवास करने वाले सैकड़ों लोग सालों भर जल संकट से जूझते हैं। नगर निगम की ओर से की जाने वाली जलापूर्ति इस मोहल्ले तक आते-आते दम तोड़ देती है। यह किसी एक मोहल्ला की कहानी नहीं है बल्कि प्राय सभी मोहल्लों की यही स्थिति है।
जागरण संवाददाता, गिरिडीह: शहर से सटे झिझरी मोहल्ला में निवास करने वाले सैकड़ों लोग सालों भर जल संकट से जूझते हैं। नगर निगम की ओर से की जाने वाली जलापूर्ति इस मोहल्ले तक आते-आते दम तोड़ देती है। यह किसी एक मोहल्ला की कहानी नहीं है, बल्कि प्राय: सभी मोहल्लों की यही स्थिति है। शास्त्री नगर, बरहमसिया, अलकापुरी, कृष्णा नगर, भंडारीडीह आदि मोहल्लों के लोग जल संकट से हलकान रहते हैं। जल स्तर के नीचे जाने के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है, जो वर्ष दर वर्ष बढ़ती जा रही है।
नगर निगम पर है शहर की प्यास बुझाने की जिम्मेवारी :
बता दें कि शहर की करीब पांच लाख की आबादी की प्यास बुझाने की जिम्मेवारी नगर निगम की है। जलापूर्ति के साधन खंडोली डैम और सीसीएल के चानक हैं। डैम और चानकों से ही शहर में जलापूर्ति की जाती है, लेकिन कई मोहल्लों में सही से जलापूर्ति नहीं हो पाती है। करीब आधी आबादी को पर्याप्त जल नहीं मिल पाता है। ननि को जलकर देने के बाद भी लोगों के पानी की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है।
डैम की घटी भंडारण की क्षमता, नीचे जा रहा चानकों का जलस्तर : बता दें कि निर्माण के बाद से अब तक खंडोली डैम की एक बार भी सफाई नहीं कराई गई है। डैम में गाद, कचरा आदि भर जाने के कारण इसके जल भंडारण की क्षमता घटती जा रही है। इसी तरह सीसीएल के चानकों का जल स्तर भी लगातार घट रहा है। इसका असर जलापूर्ति पर पड़ना स्वाभाविक है। हालांकि नगर निगम सभी वार्डों में पर्याप्त जलापूर्ति करने का दावा तो करता है, लेकिन यह दावा तब खोखला साबित हो जाता है, जब लोगों को पानी के लिए भटकते और परेशान होते देखा जाता है।
और गहराएगा जल संकट : जानकारों का मानना है कि जल संकट यहीं थमने वाला नहीं है। यदि हम नहीं चेते तो यह संकट और गहराएगा, जिससे स्थिति भयावह हो जाएगी। सेवानिवृत्त शिक्षक सह किसान राजवंश सिंह बताते हैं कि 15-20 साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। तब पानी का कहीं कोई संकट नहीं था, लेकिन अब हर जगह पानी के लिए हाहाकार मचने लगा है। उसरी नदी में पहले गर्मी में भी पर्याप्त पानी रहता है, लेकिन अब गर्मी शुरू होने से पहले ही रेत के मैदान में तब्दील हो जाती है। नदी-नालों पर जहां-तहां चेकडैमों का निर्माण करने के कारण नदियों का जलस्त्रोत कम हो रहा है। आज शहर से तालाब गायब हो गए हैं। इसके कारण भी जल संकट गहरा रहा है। उसरी नदी के संरक्षण के लिए अभियान चला रहे नागरिक विकास मंच के संयोजक विनय सिंह ने कहा कि नदियों से अंधाधुंध बालू का उठाव होने के कारण इनके अस्तित्व पर ग्रहण लगने लगा है। बालू की मात्रा लगातार घटते जाने के कारण नदियों में जल का ठहराव नहीं हो पा रहा है। बालू के उठाव पर रोक लगाते हुए नदी के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए गंभीरता पूर्वक काम करने की आवश्यकता है।
लक्ष्मी नारायण महथा ने कहा कि हाल के वर्षों में शहर काफी तेजी से ओद्यौगिकरण हुआ है। काफी कल-कारखाने स्थापित किए गए हैं। इससे भू-जल का काफी दोहन हो रहा है, जिस कारण जल स्तर नीचे जा रहा है। नदी, नाले, पोखर सभी प्रदूषित भी हो रहे हैं। नदियों के सूखने का यह भी एक कारण है। इसके अलावा जल संरक्षण के उपाय नहीं किए जा रहे हैं। बारिश के पानी का संचयन नहीं हो पा रहा है। घरों में पानी की खपत तो बढ़ी है, लेकिन इसे बचाने के उपाय नहीं किए जा रहे हैं। जब तक जल संरक्षण की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होगी, तब तक जल संकट का निदान भी संभव नहीं है। मैनेजर प्रसाद सिंह ने कहा कि पहले पानी की इतनी किल्लत नहीं होती थी। कुआं खुदवाने या बोरिग कराने पर हर जगह आसानी से पानी निकल जाता था, लेकिन अब हर जगह पानी का लेयर नहीं मिलता है, जहां मिलता भी है वहां सैकड़ों फीट बोरिग करनी पड़ती है, जबकि पूर्व के वर्षों में 20-30 फीट बोरिग कराने से ही पानी निकल जाता था। लोग पानी की महत्ता नहीं समझ रहे हैं। यदि भूजल का दोहन इसी तरह होते रहा तो आने वाले 5-10 साल में स्थिति और भयावह हो जाएगी।
- हर जगह जल स्तर घट गया है, जिसका असर जलापूर्ति पर पड़ रहा है। फिर भी शहर वासियों को नियमित और पर्याप्त जलापूर्ति करने का पूरा प्रयास किया जाता है, ताकि लोगों को जलसंकट न झेलना पड़े। पानी की बर्बादी को रोकना भी जरूरी है। नगर निगम की ओर से पूर्व में भी शहर वासियों से पानी बचाने की अपील की जा चुकी है।
गणेश कुमार, नगर आयुक्त, गिरिडीह।