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एक ऐसा गांव, जहां 40 साल से थाने तक नहीं पहुंची कोई शिकायत

Khambhra village. इस गांव में कभी विवाद नहीं होता है। पर जो विवाद होते हैं उनका निष्पादन ग्रामसभा में ही कर लिया जाता है।

By Edited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 11:27 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 03:57 PM (IST)
एक ऐसा गांव, जहां 40 साल से थाने तक नहीं पहुंची कोई शिकायत
एक ऐसा गांव, जहां 40 साल से थाने तक नहीं पहुंची कोई शिकायत

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह। बगोदर प्रखंड का खंभरा गांव। इसी गांव के थे वामपंथी नेता व 25 वर्ष तक बगोदर से विधायक रहे दिवंगत महेंद्र प्रसाद सिंह। गांव की खास बात ये है कि पिछले 40 साल से गांव का कोई भी व्यक्ति थाना या अदालत नहीं गया है। ऐसा नहीं है कि इस गांव में कभी विवाद नहीं होता है। पर, जो विवाद होते हैं उनका निष्पादन ग्रामसभा में ही कर लिया जाता है। ग्रामसभा गांव में बने अतिथि भवन में सैकड़ों ग्रामीणों की उपस्थिति में सुनवाई करती है और दोषी पाए गए व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक एवं शारीरिक दंड देती है।

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फैसले से कोई पक्ष असहमत होता है तो वह इससे बड़ी सर्वोच्च कमेटी में अपील कर सकता है। उसके प्रधान पूर्व विधायक विनोद सिंह हैं। सर्वोच्च कमेटी के फैसले को दोनों पक्ष स्वीकार करते हैं। इस कमेटी के फैसले के खिलाफ भी कोई व्यक्ति आज तक थाना नहीं गया है। यह ग्रामसभा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव वाली नहीं है। बल्कि गांव के लोग मतदान कर अपने ग्राम प्रधान को चुनते हैं। ग्राम प्रधान ही कृषि, जंगल, शिक्षा, वित्त जैसे मामलों के लिए प्रभारी की नियुक्ति ग्रामीणों की राय लेकर करता है। जो अपने विभाग से संबंधित मामलों को देखता है।

खंभरा के लोगों के पहल से प्रभावित बगल के गांव बनपुरा में भी यह व्यवस्था दस साल पूर्व हुई। वहां भी दस साल से कोई मामला थाना नहीं गया। खंभरा के ग्रामीण धीरेन ¨सह ने बताया कि इस व्यवस्था से पूरा गांव खुश है। थाना एवं अदालत के चक्कर में पैसा खर्च होने के साथ परेशानी बढ़ती है। अदालत पर भी मुकदमों का बोझ बढ़ता है।

ऐसे हुई शुरुआत
70 के दशक में झारखंड (तत्कालीन दक्षिण बिहार) के दूसरे गांवों की तरह खंभरा भी महाजनी प्रथा से परेशान था। एक महाजन तो मारपीट, चोरी जैसी घटनाओं में फंसे लोगों को सूद पर पैसा देता था। 1978 में बगल के गांव के तीन लोगों को चोरी के आरोप में महेंद्र सिंह एवं उनके युवा साथियों ने पकड़ा। तीनों को आर्थिक दंड देने के साथ-साथ उनकी काउंसिलिंग भी की। स्थिति यह हुई कि तीनों ने कभी चोरी न करने की शपथ ली। काउंसिलिंग का प्रभाव यह रहा कि बाद में तीनों सरकारी नौकरी पाने में सफल रहे। इसके बाद लोग जागरूक हुए और महाजन की महाजनी की हवा निकाल दी। अब तक यहां की ग्रामसभा ने एक हजार से अधिक मामलों में फैसले सुनाए हैं।

अनुसूचित जाति का युवक बना था पहला ग्राम प्रधान
खंभरा गांव में राजपूत, नाई, यादव, विश्वकर्मा एवं अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। एक हजार से अधिक की यहां आबादी है। इस घटना के बाद एकजुट हुए ग्रामीणों ने निर्णय लिया सब एक होकर रहेंगे। ग्राम सभा बनाएंगे, ताकि थाना अदालत का चक्कर न लगाना पड़े। अनुसूचित जाति के एक युवक जोधी रविदास को ग्राम प्रधान चुना गया। गांव के आपसी विवाद यहां ही सुलझाए जाने लगे। जो परंपरा आज तक जारी है। वर्तमान में यमुना सिंह ग्राम प्रधान हैं।

अनूठे गांव का बेमिसाल काम
बगोदर थाने के प्रभारी के रूप में लंबा समय गुजार चुके पृथ्वीसेन दास ने बताया कि बगोदर बेहद संवेदनशील इलाका है। हमेशा कहीं न कहीं विवाद एवं मारपीट होती है। लेकिन इसी इलाके का खंभरा अपवाद है। जहां का कोई भी व्यक्ति लंबे समय से अपनी शिकायत लेकर थाना नहीं आया। हर विवाद गांव के लोग पंचायत में बैठकर सुलझा लेते हैं। इस अनूठे गांव का काम वास्तव में बेमिसाल है।

''ग्रामसभा के माध्यम से हम विवादों को सुलझाते हैं। मकसद यही कि गांव वालों को थाना कचहरी न भटकना पड़े। कोर्ट पर भी मुकदमों का बोझ न बढ़े। उसका समय बेहद कीमती होता है। गांव के लोगों के मामले स्थानीय स्तर पर सुलझने से उनके पैसे की बचत होती है।''
-यमुना सिंह, ग्राम प्रधान, खंभरा ग्रामसभा, बगोदर।


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