एसपी की हत्या करनेवाले इस 25 लाख के इनामी नक्सली ने मुंबई में किया था वेटर का काम
पाकुड़ के पूर्व एसपी अमरजीत बलिहार की हत्या की पटकथा तैयार करनेवाले 25 लाख रुपये के इनामी नक्सली बलवीर महतो ने बुधवार को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया।
जागरण संवाददाता, गिरिडीह: पाकुड़ के पूर्व एसपी अमरजीत बलिहार की हत्या की पटकथा तैयार करनेवाले 25 लाख रुपये के इनामी नक्सली बलवीर महतो ने बुधवार को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया। इस दौरान उसने अपने अतीत से जुड़ी कई बातें बताईं।
बलवीर ने बताया कि आर्थिक स्थिति खराब रहने के कारण अक्सर घर में झगड़ा झंझट होता रहता था। इससे परेशान होकर रोजी-रोटी की तलाश में वर्ष 1999 में वह मुंबई चला गया। वहां एक होटल में वेटर का काम मिला, जिसमें रम गया और फटकार सहने के बावजूद करीब पांच वर्ष तक वहां काम किया। काम करने के क्रम में हुई मारपीट की घटना से काम के प्रति मोहभंग हुआ और वर्ष 2004 में वापस गांव लौट आया।
उसने कहा कि जब मुंबई से लौटा तो उस वक्त उसके बड़े भाई धीरेन महतो उर्फ धीरेन दा उर्फ गिरीश दा नक्सली संगठन से जुड़ कर संगठन में अपनी पैठ जमा चुके थे। इसी बीच तनाव में रहने के कारण वर्ष 2004 में सरिया थाना क्षेत्र के मुनरो निवासी बगोदर क्षेत्र के सक्रिय माओवादी तिलकधारी महतो के संपर्क में आया और उनकी बातों से प्रेरित होकर संगठन में शामिल हो गया। संगठन में शामिल होने के बाद शीर्ष नेतृत्व ने जमुई के झाझा चरकापाथर क्षेत्र में सहदेव सोरेन उर्फ अनुज के पास भेज दिया। वहां जाने के बाद एरिया कमांडर प्रकाश यादव के दस्ते में शामिल किया गया और संगठन के लिए काम करना प्रारंभ किया। एक साल तक दस्तेे में रहने के बाद वर्ष 2005 में एरिया कमेटी का मेंबर बना दिया गया। नक्सली घटना को अंजाम देने के क्रम में वर्ष 2006 में जमुई जिले के चंद्रमंडी थाना में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
जेल से वर्ष 2010 में जमानत पर छूटने के बाद पुन: वर्ष 2011 में संगठन में शामिल हो गया। संगठन में दोबारा शामिल होने पर सब जोनल कमेटी का मेंबर बना दिया गया।
बाबूचंद के बाद बलवीर ने किया आत्मसमर्पण: अभियान एसपी दीपक कुमार ने कहा कि सरकार की आत्मसमर्पण नीति के प्रभाव में आकर अब नक्सली आत्मसमर्पण करने लगे हैं। इसी कड़ी में इनामी नक्सली बलवीर ने आत्मसमर्पण किया है। इसके पूर्व भी निमियाघाट थाना क्षेत्र के बंदखारो गांव निवासी दुर्दांत नक्सली बाबूचंद मरांडी उर्फ सूरज ने 18 अगस्त 2018 को पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। कहा कि वैसे तो पारसनाथ की प्राकृतिक छटा निराली व अद्भुत है। वहां से शांति का पैगाम दिया जाता है लेकिन इस क्षेत्र को माओवादियों ने अशांत करने की कोशिश की है। माओवादियों के खिलाफ चल रहे छापामारी अभियान में माओवादियों को हमेशा मुंह की खानी पड़ी है। पारसनाथ माओवाद का जन्म स्थान रहा है, लेकिन अब नक्सली अपने उद्देश्यों से भटक गए हैं।
आत्मसमर्पण करने पर दी जाती है ये सुविधा: सरकार की आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर अत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सरकार कई सुविधा प्रदान करती है। इसके तहत चार डिसमिल जमीन, बच्चों को स्नातक तक की नि:शुल्क पढ़ाई की व्यवस्था, पुलिस में आने की इच्छा जताने पर नौकरी, व्यवसाय के लिए आर्थिक सहायता, कौशल विकास के तहत प्रशिक्षण, महिला सदस्य को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण, रिकार्ड अच्छा रहने पर जेपी केन्द्रीय कारा हजारीबाग के ओपेन जेल में शिफ्ट कराने के अलावे अन्य व्यवस्था सरकार के माध्यम से इस नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों व उनके परिवार को दिए जाने का प्रावधान है।
सुरक्षा के लिए दूसरे जगह भी दी जा सकती जमीन: डीआइजी
डीआइजी पंकज कंबोज ने कहा है कि सरेंडर करने वाले माओवादियों को सरकार सुरक्षा की दृष्टि से उसके मूल गांव से दूर दूसरे जगह पर भी घर बनाने के लिए चार डिसमिल जमीन दे सकती है। सरेंडर करने वाले नक्सलियों एवं उसके परिवार पर माओवादी खतरे के संबंध में उन्होंने यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि माओवादियों को हर हाल में सरेंडर करना होगा। यदि उन्हें सरेंडर करने से डर लगता है तो कानून के लंबे हाथों से भी डरना चाहिए। पुलिस उन्हें खोजकर निकालेगी।