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मुस्लिम-यादव समीकरण से दीपंकर ने तोड़ा लालू का तिलिस्म

लालू प्रसाद यादव ने मुस्लिम-यादव समीकरण के बल पर ही संयुक्त बिहार से लेकर झारखंड तक अपनी सियासत का लोहा मनवाया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 12:31 AM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 12:31 AM (IST)
मुस्लिम-यादव समीकरण से दीपंकर ने तोड़ा लालू का तिलिस्म
मुस्लिम-यादव समीकरण से दीपंकर ने तोड़ा लालू का तिलिस्म

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह: लालू प्रसाद यादव ने मुस्लिम-यादव समीकरण के बल पर ही संयुक्त बिहार से लेकर झारखंड तक अपनी सियासत का लोहा मनवाया है। एमवाई समीकरण से ही झारखंड की कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में भी लालू का सिक्का खूब चला था। तत्कालीन दक्षिण बिहार की इस सीट पर लालू ने बिहार से मुमताज अंसारी को लाकर सांसद बना दिया था। यहां कांग्रेस की जीत-हार भी लालू की भूमिका पर तय होती रही है। लालू की इस तिलिस्म को धुर वामपंथी पार्टी भाकपा माले ने उनके ही मुस्लिम-यादव समीकरण से कोडरमा में पूरी तरह से तोड़ दिया। इतना ही नहीं कांग्रेस को भी यहां से पूरी तरह बेदखल कर दिया। साथ ही खुद को यहां भाजपा के विकल्प के रूप में स्थापित कर लिया। पार्टी महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य एवं महेंद्र प्रसाद सिंह की कुशल रणनीति का यह परिणाम रहा है। आज स्थिति यह है कांग्रेस एवं राजद इस सीट के लिए महागठबंधन में दावा करने तक की स्थिति में नहीं है।

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दोनों बड़ी पाíटयों ने महागठबंधन के तहत यह सीट झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी की झोली में डाल दिया। 1991 में लालू ने जनता दल से मुमताज अंसारी को उतारा। कोडरमा के लिए बिल्कुल नए मुमताज भाजपा के दिग्गज रीतलाल प्रसाद वर्मा एवं कांग्रेस के दिग्गज तिलकधारी प्रसाद सिंह को पछाड़कर संसद पहुंच गए। 96 में लालू ने अपने कोडरमा के विधायक रमेश प्रसाद यादव को जदयू से उतारा। रमेश ने जदयू का वोट प्रतिशत 16 फीसद से बढ़ाकर 17 फीसद कर दिया लेकिन चुनाव हार गए। कांग्रेस प्रत्याशी उमेशचंद्र अग्रवाल को मात्र छह फीसद वोट मिले। 98 में लालू ने राजद से आबिद हुसैन को उतारा। वे भी दूसरे नंबर पर रहे। आबिद भी कांग्रेसी दिग्गज तिलकधारी पर काफी भारी पड़े। वहीं 99 में जैसे ही तिलकधारी को लालू का साथ मिला वे दूसरी बार लोकसभा पहुंच गए। 2004 में जैसे ही लालू का साथ छुटा तिलकधारी फिर हार गए।

माले ने इस तरह तोड़ा लालू का तिलिस्म: बगोदर से लेकर पूरे कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में माले को स्थापित करने का पूरा श्रेय दिवंगत नेता महेंद्र प्रसाद सिंह को जाता है। कोडरमा विधानसभा क्षेत्र से लगातार चुनाव जीत रहे महेंद्र को पार्टी ने कोडरमा लोकसभा सीट से जब मैदान में उतारा, उस वक्त लालू का मुस्लिम-यादव समीकरण सर चढ़कर बोल रहा था। लगातार कई चुनाव लड़ने के बावजूद महेन्द सिंह मुख्य संघर्ष में नहीं आ सके हालांकि पार्टी को पूरे कोडरमा संसदीय क्षेत्र में जरूर फैला दिया। 99 में पार्टी ने अल्पसंख्यक प्रत्याशी नजमुल हसन को उतारा। यह दांव भी माले की नहीं चली। उन्हें मात्र एक फीसद वोट मिले। झारखंड बनने के बाद 2004 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में माले ने जेल में बंद अपने युवा नेता राजकुमार यादव को मैदान में उतारने का फैसला लिया। मुस्लिम-यादव समीकरण के बल पर पहली बार में ही माले के वोट फीसद को एक से बढ़कर 10 तक पहुंचा दिया। राजकुमार तीसरे नंबर पर रहे, जबकि निवर्तमान सांसद तिलकधारी चौथे नंबर पर चले गए। भाजपा से बाबूलाल मरांडी जीते थे। 2009 में भी बाबूलाल झाविमो से जीते, जबकि दूसरे नंबर पर राजकुमार रहे। 2014 के मोदी लहर में भाजपा के रवींद्र कुमार राय जीते जबकि माले के राजकुमार दूसरे नंबर पर रहे। झाविमो के प्रणव वर्मा तीसरे नंबर पर चले गए। इस संबंध में माले के राज्य कमेटी के सदस्य राजेश यादव का कहना है कि माले को सभी समाज का समर्थन हासिल है। अपने संघर्षो के बल पर ही माले लगातार आगे बढ़ रही है।

कोडरमा का सामाजिक आधार: कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में यादव, कुशवाहा, भूमिहार एवं मुस्लिम समाज की बड़ी आबादी है। बाबूलाल मरांडी की बात छोड़ दें तो कोडरमा लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति इन्हीं समाज के नेताओं के इर्द-गिर्द केंद्रित रही है।


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