गिरिडीह की धरती से गायब हो गए हैं कई खेल
गिरिडीह कभी खेलकूद के लिए मशहूर रहे गिरिडीह जिले की धरती से आज कई खेल गायब हो
गिरिडीह : कभी खेलकूद के लिए मशहूर रहे गिरिडीह जिले की धरती से आज कई खेल गायब हो चुके हैं। खेल संगठनों की उदासीनता, खिलाड़ियों की समस्या और क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता ने कई खेलों का अस्तित्व मिटा दिया है। कभी गिरिडीह में हॉकी, कुश्ती, खो-खो, कबड्डी, भारोतोलन, स्नूकर, विलियर्ड्स, कराटे, ताइक्वांडो आदि खेलों के राज्य स्तरीय खिलाड़ी हुआ करते थे। वर्तमान में उक्त खेलों के साधारण खिलाड़ी को भी ढूंढ पाना मुश्किल है। हर खेल के गायब होने की अलग-अलग दास्तां है। आश्चर्य की बात तो यह है कि भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी की स्थिति गिरिडीह में शून्य है। 15 वर्ष पूर्व यहां हॉकी का खेल होता था। यहां के कई खिलाड़ी दूसरे जिलों में जाकर खेलते हुए अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। आज यहां ढूंढने से भी इसके खिलाड़ी नहीं मिलते। गिरिडीह में कुश्ती का भी अच्छा चलन था। शहर और देहात दोनों जगहों पर यह लोकप्रिय था। 20 वर्ष पूर्व सवेरा चित्र मंदिर परिसर में कुश्ती दंगल का आयोजन किया गया था जिसे देखने के लिए हजारों की भीड़ यहां जमा हुई थी। शायद वह गिरिडीह का आखिरी दंगल था। खोखो तो अब केवल स्कूल में ही बच गया है। आम खिलाड़ियों को कभी इसे खेलते नहीं देखा जाता है। कबड्डी जो कभी गांव का सबसे लोकप्रिय खेल था। अब गांव में ही इसकी उपेक्षा होने लगी तो शहर में इसे कौन पूछेगा? कबड्डी भी अब स्कूलों तक ही सीमित होकर रह गया है। मार्शल आर्ट कराटे का पदार्पण गिरिडीह में 1985 में हुआ था। लगभग 10 वर्षो तक यह चरम पर रहा। सरकार का खेल और खिलाड़ियों के प्रति उदासीन रवैये के कारण 1995 में यह क्रमश: लोकप्रियता के शिखर से लुढ़कता चला गया और वर्तमान में यहां इसका केवल संघ और पुराने खिलाड़ी ही शेष रह गए हैं। यदा कदा इस खेल की प्रतियोगिता यहां होती है। गिरिडीह में उक्त खेलों में से कई तो बिलकुल गायब हो गए या फिर कुछ खेल अंतिम सांस ले रहे हैं। दूसरी ओर कुछ खेल ऐसे हैं जिसके खिलाड़ी तो हैं पर संघ नहीं। क्रिकेट की लोकप्रियता और सरकार की उदासीनता इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है।
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गिरिडीह में फुटबॉल की काफी टीम थी तथा एक से बढ़कर एक खिलाड़ी इसमें भाग लेते थे। मैं पहले अपनी संस्था की ओर से फुटबॉल की प्रतियोगिताएं आयोजित करता था। कई बार दूर-दूर के भी खिलाड़ियों ने इसमें हिस्सा लिया था। इसके बाद फुटबॉल की समिति ने इसमें रूचि दिखानी छोड़ दी। इसी वजह से इस खेल को जंग लग गई और अभी यह मृतप्राय: की स्थिति में है।
-नुरूल होदा, सचिव, प्रतिभा विकास क्लब, गिरिडीह।
-यहां इस खेल में काफी खिलाड़ी शामिल होते थे। मैं उस वक्त जमा दो उच्च विद्यालय गिरिडीह के छात्रावास में रहनेवाले छात्रों को प्रशिक्षण भी देता था। कई बार मैच का आयोजन किया गया था जिससे कई टीमों में काफी उत्साह देखा गया था। जिले की कमेटी की ओर से लीग मैच का आयोजन नहीं किए जाने से यह खेल अभी नहीं के बराबर खेला जा रहा है।
-अजय सुभाष तिर्की, फुटबॉल प्रशिक्षक, गिरिडीह स्टेडियम।
-पहले कराटे के प्रति लोगों में काफी उत्साह देखा जाता था। इसके बावजूद सरकार की ओर से किसी प्रकार का सहयोग नहीं दिए जाने के कारण इसके प्रति लोगों का रुझान काफी कम हो गया। इसके प्रशिक्षकों को किसी तरह का मानदेय सरकार की ओर से नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में वे अपनी ओर से खाली पेट रहकर कैसे छात्र छात्राओं को प्रशिक्षण दे पाते। यही वजह है कि आज कराटे सीखने की इच्छा रखनेवाले बच्चों को इसकी शिक्षा नहीं दी जा रही है।
-करण कुमार, जिला प्रभारी, सोतोकान कराटे फेडरेशन।