यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बंद कराई थी बलि प्रथा
- वर्ष 1801 में डुमरी में शुरू हुई थी दुर्गापूजा जमींदार परिवार ने की थी शुरुआत संवाद
- वर्ष 1801 में डुमरी में शुरू हुई थी दुर्गापूजा, जमींदार परिवार ने की थी शुरुआत संवाद सहयोगी, निमियाघाट (गिरिडीह) : डुमरी थाना के निकट स्थित प्रखंड के सबसे पुराने सार्वजनिक दुर्गा मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है। डुमरी के जमींदार परिवार ने इसकी शुरुआत वर्ष 1801 में की थी। जब मंदिर बना था, उस समय आसपास 30-40 किमी तक दुर्गा जी का कोई मंदिर नहीं था। उस समय बगोदर, तोपचांची, पीरटांड़, नावाडीह प्रखंड में दुर्गापूजा नहीं होती थी। इसलिए इन प्रखंड से लोग यहां दुर्गापूजा का मेला देखने बैलगाड़ियों से आते थे। शुरुआती दौर में मंदिर में भैंसा और बकरे की बलि देने की परंपरा थी। स्वतंत्रता आंदोलन के समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आगमन डुमरी में हुआ था। अपने प्रवास के दौरान उन्होंने स्थानीय ग्रामीणों को समझा-बुझाकर बलि प्रथा को बंद कराकर वैष्णवी पूजा की शुरुआत कराई। तब से आज तक मंदिर में वैष्णवी पूजा होती आ रही है। वर्ष 1999 से मंदिर में कलश स्थापना से नौ दिनों तक अखंड दीप प्रज्ज्वलित करने की परंपरा शुरू की गई है। मुस्लिम थानेदार ने बनवाया था पक्का मंदिर
अंग्रेजों के शासनकाल में ही डुमरी थाना में निसार हुसैन दारोगा के रूप में तैनात हुए थे। उन्होंने खपरैल की छत देखी। इसके बाद ग्रामीणों के सहयोग से चूना व सुर्खी से पक्का मंडप का निर्माण कराकर सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल पेश की। यह मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ-साथ मनोकामना सिद्धि के रूप मे विख्यात है। प्रतिमा की सजावट में सोने का टीका अंगूठी, नथिया पहनाकर मां का पूजन किया जाता है। रोज शाम को भजन में शामिल होने व दीपक जलाने के लिए महिलाएं मंडप पहुंच रही हैं। पूजा समिति के अध्यक्ष जय प्रकाश साहू ने कहा कि पूजा की परंपरा नहीं रुकेगी। पूजा पूरे धार्मिक रीति रिवाज से पूजा की जाएगी। इस बार मां दुर्गा में भीड़ जमा नहीं होगी। पूजा स्थल पर भीड़ नियंत्रण की जिम्मेदारी समितियों को दी गई है।