महासमर : निगम की सुविधा नहीं, गांव का अधिकार भी छीना
धनबाद शहर से सटे भूली बस्ती की पांच हजार की आबादी इसलिए परेशान है कि निगम में आने के
धनबाद : शहर से सटे भूली बस्ती की पांच हजार की आबादी इसलिए परेशान है कि निगम में आने के बाद सुविधाएं नहीं मिल रही और गांव का अधिकार छिन गया है। इस कारण आमदनी के अवसर समाप्त हुए और लोग दिहाड़ी मजदूरी करने को विवश हैं। इसके बावजूद भी लोग सरकार से खुश हैं कि भारत ने पाकिस्तान पर दो-दो बार स्ट्राइक कर अपनी क्षमता को साबित कर दिया है।
भूली बस्ती के अधिकतर लोगों के पास काफी जमीन है, लेकिन खेती नहीं हो रही। सात टोला में बंटे इस बस्ती में कुम्हार, आदिवासी समेत सभी जातियों के लोग हैं। 15 से 20 फीसद लोगों के पास अपना रोजगार या सरकारी नौकरी है, जबकि 80 फीसद लोग खेती अथवा दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं। ऐसे में लोगों के पास अपनी काफी समस्याएं हैं। चौपाल में शामिल अधिकांश लोगों का एक ही बात पर जोर रहा है कि भूली बस्ती को नगर निगम क्षेत्र से बाहर किया जाए। लोगों ने बताया कि निगम क्षेत्र में जाने के बाद से कोई सुविधा गांव को उपलब्ध नहीं है। ना तो सफाई कर्मचारी आते हैं, ना ही पानी, सड़क की व्यवस्था की गई है। विभिन्न टैक्सों के नाम पर गांव का पैसा उठाकर शहर में खर्च किया जा रहा है। बिजली दर में बढ़ोतरी हो गई है। जमीन का टैक्स अधिक लग रहा है। खेती चौपट हो गई है। लोग कहते हैं कि बस्ती को निगम से बाहर करने के लिए धनबाद से रांची तक दौड़ लगाई। मुख्यमंत्री को अपनी वेदना बतायी, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं।
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बस्ती को निगम में शामिल करने के बाद से यहां की खेती को काफी क्षति हुई है। पंचायत में रहने पर जो सुविधाएं प्रखंड कार्यालय से मिलती थीं, वो अब बंद हो गई। बीज अथवा खाद पर मिलने वाली छूट का लाभ नहीं ले पाते हैं। बिजली और पानी महंगा हो गया है। मकान और जमीन का होल्डिंग टैक्स जमा करना पड़ रहा है। इतने सारे टैक्स देने पड़ रहे हैं कि लोगों की कमर टूट गई है। गांव के 70 फीसद लोग इतना टैक्स देने में सक्षम नहीं हैं। सीएनटी एक्ट के कारण भी लोगों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। किसान समृद्धि योजना के तहत बस्ती के किसी भी व्यक्ति को कोई लाभ नहीं मिला। इससे तो अच्छा पंचायत में ही लोग रहते। कम से कम उन्हें सारी सुविधाएं तो बहाल होती।
- संजय पंडित
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धनबाद जिला में भाजपा के पांच विधायक, सांसद, जिला परिषद अध्यक्ष और नगर निगम के मेयर हैं। इतने लोगों के रहने के बावजूद भी उनकी बस्ती को देखने के लिए कोई नहीं आता। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। गांव में आज भी 80 फीसद मकान खपरैल के हैं। यह कैसा नगर है। समझ से परे है। केवल वोट और आश्वासन की राजनीति से कुछ नहीं चल सकता।
- मन्नू प्रसाद
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मोदी सरकार के आने का एक फायदा हुआ है। पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब मिला है। पहले सर्जिकल स्ट्राइक और फिर एयर स्ट्राइक ने आतंकवादियों की कमर तोड़ दी है। विदेशों में भी भारत का बहुत नाम हुआ, लेकिन अब नेताओं को जमीनी हकीकत से वाकिफ होकर काम करना चाहिए।
- किशुन पंडित
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बस्ती का निगम में आना ही इसके बुरे दिनों की शुरुआत है। बस्ती के सभी सात टोला में कहीं भी नाली की व्यवस्था नहीं है। कूड़ादान तक नहीं लगा है। शौचालय तो बन गए हैं, पानी की व्यवस्था नहीं है। निगम की ओर से एक भी काम बस्ती में नहीं किया गया। फिर इसे निगम क्षेत्र में रखने का कोई फायदा नहीं।
- निमाई रवानी
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सबसे बड़ी दिक्कत रोजगार को लेकर हुई है। बीते पांच सालों में रोजगार नहीं मिल रहा है। गांव के युवा इंजीनियरिग करने के छह हजार मासिक की नौकरी कर रहे हैं। दिहाड़ी मजदूरी की भी दिक्कत हो गई है। गांव के युवा रोज सुबह पांच बजे से चौक पर इस उम्मीद से खड़े होते हैं कि कोई आएगा और उन्हें एक दिन के लिए काम देकर जाएगा।
- दीपक कुमार
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भूली बस्ती के लोगों की जमीन पर भूली टाउनशिप बसाया गया। जिनकी जमीन गई वो आज भी मुआवजा और नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। सांसद और विधायक को अपनी पीड़ा बताने के बाद भी किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे में अब लोग किसके पास जाएं।
- गोपाल महतो
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खेती चौपट होने के बाद घर में रोज कमाने और खाने वाली स्थिति आ गई है। महिलाओं के लिए भी निगम की ओर से कोई व्यवस्था नहीं दी गई। ना तो किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा रहा है और ना ही कोई और सुविधाएं ही दी जा रही हैं।
- निमिया देवी
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लोगों से विकास, विकास सुनते-सुनते उम्र बीत गई है। बिजली आई सड़क भी बनी, लेकिन कितनी देर बिजली मिलती है। सड़क का फायदा तो मिला, लेकिन ग्रामीणों तभी उसका उपयोग कर पाएंगे जब वे सक्षम हों। वोट तो देना है। अब चाहे जिसको भी दें।
- बसनी देवी
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किसी भी क्षेत्र के विकास का आंकलन शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पानी, बिजली, सड़क आदि से किया जाता है, लेकिन ये चीजें जब हैं ही नहीं तो विकास का केवल नारा लगाकर लोगों को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। आप देश दुनिया की जितनी भी बातें कर लें। रहना तो अपने घर में ही है।
- सूरज कुमार
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