होकर रोजगार से दूर, माटी से जुड़े मजदूर
जिस खेत में कई सालों से हल नहीं चला था उसमें अब प्रवासी श्रमिक फसल उपजाने के लिए हल जोत रहे हैं। दूसरे प्रदेश व अन्य शहरों से लौटे श्रमिकों को अब अपने परिवार का जीवन यापन करने के लिए चिता होने लगी है।
सकलदेव पंडित, बिरनी (गिरिडीह) : जिस खेत में कई सालों से हल नहीं चला था उसमें अब प्रवासी श्रमिक फसल उपजाने के लिए हल जोत रहे हैं। दूसरे प्रदेश व अन्य शहरों से लौटे श्रमिकों को अब अपने परिवार का जीवन यापन करने के लिए चिता होने लगी है। कोरोना वायरस से बचने के लिए वे अपने अपने घर वापस लौट भी रहे हैं। वे जीवन-यापन के लिए खेती में लगे हैं। जब से परदेशी प्रवासी श्रमिक हुए थे तब से खेत भी परती रहनी शुरू हो गई थी। इस महामारी ने उन्हें खेती करने की सबक दे दी है। वे अब परती खेत को उपजाऊ बनाकर उसमें फसल लगा रहे हैं। सिमराढाब पंचायत के श्रमिक रोहन नक्षत्र पड़ते ही अपने अपने खेतों में काम में लग गए हैं। दैनिक जागरण की टीम शनिवार सुबह करीब सात बजे इसका जायजा लेने वहां पहुंची। इस पंचायत में करीब छह हजार की आबादी है। अधिकतर लोग प्रवासी श्रमिक ही हैं। ककुरिया में प्रवासी मजदूर लालो बैठा अपने परती खेत में फसल लगाने के लिए हल चलाकर उसकी जुताई कर रहा था। कहा कि दूसरे प्रदेश में रहते थे तो घर की खेती नहीं हो पाती थी। कोरोना ने उन्हें खेती करने की फिर से याद दिला दी है। वे बाहर रहकर अपने परिवार, रिश्तेदार तथा खेती को भूल ही गए थे। जो दिक्कत इस संकट में उन्हें झेलनी पड़ी वैसा कभी नहीं हुआ था। अच्छी फसल उपजाकर वे अपने परिवार की गाड़ी आराम से खींच सकते हैं।
सिमराढाब की मुखिया मुनावती बैठा ने कहा कि इस पंचायत के अधिकतर ग्रामीण प्रवासी मजदूर हैं जो रोजी-रोटी के लिए दूसरे प्रदेशों में रहते थे। इस पंचायत के कुछ प्रवासी मजदूरों के अपने कुछ न कुछ खेत हैं। कोरोना से बचने के लिए पंचायत के तकरीबन सभी प्रवासी अपने घर लौट आए हैं। वे लोग क्वारंटाइन में 14 दिनों तक रहने के बाद अपने घर चले गए हैं। जीविकोपार्जन के लिए प्रवासी मजदूर खेती करने में जुट गए हैं। कहा कि इसके अलावा मनरेगा एक्ट के तहत उन्हें रोजगार दिया जा रहा है। जिस गांव के प्रवासी मजदूर मनरेगा एक्ट के तहत काम मांगेंगे उन्हें काम अवश्य मिलेगा। मनरेगा एक्ट से रोजगार उपलब्ध करा उन मजदूरों के पेट की ज्वाला बुझाई जा सकती है।