यहां दम तोड़ रही पंचायती राज व्यवस्था
गांडेय प्रखंड मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर स्थित है झरघट्टा पंचायत का डहुआटांड गांव। लगभग 300 आबादी वाला यह गांव दो टोलों में बसा है। दोनों टोले मिलाकर लगभग पचास लोग दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी समेत अन्य कार्य करते हैं। लॉक डाउन के कारण कुछ लोग गांव में बेरोजगार बैठे हैं तो कुछ दूसरे राज्यों में फंसे हैं।
संवाद सहयोगी, गांडेय (गिरिडीह) : गांडेय प्रखंड मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर स्थित है झरघट्टा पंचायत का डहुआटांड़ गांव। लगभग 300 आबादी वाला यह गांव दो टोलों में बंटा है। दोनों टोलों से मिलाकर लगभग 50 लोग दूसरे राज्यों में मजदूरी समेत अन्य कार्य करते थे। लॉकडाउन के कारण कुछ लोग गांव में बेरोजगार बैठे हैं तो कुछ दूसरे राज्यों में फंसे हैं। इस गांव में समस्याओं का अंबार लगा है। पंचायती राज व्यवस्था भी इस गांव तक पहुंचते ही दम तोड़ देती है। ग्रामीण समस्याओं के साथ जीने की आदत डाल चुके हैं। इस गांव का जायजा लेने दैनिक जागरण की टीम बुधवार को पहुंची। सुबह के दस बजे हैं।
गिरिडीह-जामताड़ा मुख्य मार्ग पर गांडेय से 7 किलोमीटर दूर आदिम जाति मोड़ है। वहां से डहुआटांड़ जाने के लिए पक्की सड़क कटती है। सड़क पर मुड़ते ही बड़े-बड़े बोल्डर व सड़क के बीचोंबीच बने बड़े-बड़े गड्ढे गाड़ियों के पहिए की रफ्तार रोक देते हैं। जैसे-तैसे डहुआटांड़ गांव पहुंचे। गांव में प्रवेश करते ही बरगद व आम के पेड़ों की छाया के बीच बने चबूतरा पर शारीरिक दूरी बनाते हुए कुछ लोग बैठे मिलते हैं। वे लोग कोरोना महामारी के बढ़ते प्रसार एवं बेरोजगारी के आलम पर चर्चा कर रहे थे।
गांव में विकास कार्यों के बारे में पूछने पर ग्रामीण महेश राय, सतीश राय, देवानंद कुमार आदि ने बताया कि गांव में विकास के नाम पर कुछ भी नहीं हो रहा है। गांव की सबसे अहम समस्या मुख्य सड़क की है जो काफी जर्जर हो चुकी है। इससे आवागमन में भारी परेशानी होती है। एम्बुलेंस भी गांव पहुंचने से कतराती है। बताया कि मुखिया मद से दो वर्ष पूर्व गांव में एक मात्र चबूतरा मरम्मत का कार्य हुआ था, लेकिन उसमें भी आज तक ग्रामीणों को राशि नहीं मिली है। मुखिया ने अपने आवास से चबूतरा मरम्मत से संबंधित दस्तावेजों के गुम होने का हवाला देकर भुगतान नहीं किया है। मुखिया के ही मद से गांव में सात स्ट्रीट लाइट लगाइ गई थी, लेकिन एक माह के भीतर ही अधिकांश लाइट खराब होकर बेकार पड़ी है। गांव में नीचे की ओर जाने पर आंगनबाड़ी के पास दो युवक बैठे थे। उन्होंने बताया कि वे दूसरे राज्यों में काम करते थे। होली में घर आए थे। अचानक लॉकडाउन लग जाने के कारण घर में बेरोजगार बैठे हैं। रोजगार नहीं रहने के कारण उन्हें आर्थिक तंगी झेलनी पड़ रही है। गांव में बेरोजगारी सबसे अहम मुद्दा है। लॉकडाउन के कारण गांव के दर्जनों लोग बेरोजगारी झेल रहे हैं।
गांव से कुछ दूरी पर इसी गांव का एक टोला कशियासेर बसा है। इस टोले में कोल्ह जाति के लोग रहते हैं। गांव में प्रवेश करते ही ऐसा लगता है मानो विकास ने यहां अभी कदम रखना शुरू ही किया हो। गांव की गलियां कच्ची व उबड़ खाबड़ है। गांव की कुछ महिलाएं दूर कुआं से पानी ढोकर ला रही थीं। पूछने पर अपना नाम शांति देवी, सोमरी देवी व सुनीता देवी बताया। गांव में चापाकल के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि ऊपर टोला में एक चापाकल है जो बीते छह माह से खराब पड़ा है। वहीं नीचे टोला में विद्यालय का एक अन्य चापाकल है वह भी दो माह से खराब पड़ा है। इस कारण एक कुआं का पानी पीते हैं। उस कुआं में अक्सर पानी खराब हो जाता है, इसलिए उसे छान कर पीना पड़ता है। चापाकल मरम्मत को लेकर कई बार मुखिया से शिकायत की गई, लेकिन वह महज मरम्मत का झूठा आश्वासन देते हैं। कुछ दूर आगे नीचे टोला पहुंचे। यहां ग्रामीण गीता देवी, गुंजरी देवी समेत तीन महिलाएं पेड़ की छांव में बैठी थीं। गांव में विकास के बारे में पूछने पर कहा कि यहां रोजगार का कोई साधन नहीं है। लॉकडाउन के कारण अधिकांश ग्रामीण बेरोजगार होकर घर में बैठे हैं। सरकारी राशन से गुजारा हो रहा है लेकिन दाल व सब्जी के लिए पसीने छूटते हैं।