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नीति में बदलाव से वानिकी को मिलेगा बढ़ावा

पेड़-पौधों की घटती संख्या को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण और वनों की सुरक्षा के लिए सरकार कई तरह के कार्यक्रम चला रही है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 11:56 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 11:56 PM (IST)
नीति में बदलाव से वानिकी को मिलेगा बढ़ावा
नीति में बदलाव से वानिकी को मिलेगा बढ़ावा

जागरण संवाददाता, गिरिडीह : पेड़-पौधों की घटती संख्या को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण और वनों की सुरक्षा के लिए सरकार कई तरह के कार्यक्रम चला रही है। वानिकी भी उन्हीं में से एक है। इसके तहत हर वर्ष पौधरोपण अभियान चलाया जाता है। वन विभाग के साथ कई सामाजिक और पर्यावरण पर काम करने वाले संगठन भी पौधरोपण कर वानिकी को बढ़ावा देने में हाथ बंटाते हैं, लेकिन यह अब तक जन-जन का अभियान नहीं बन पाया है। आम जनों का जुड़ाव ऐसे अभियान और पौधरोपण जैसे कार्यक्रम से नहीं हो पाया है। यही वजह है कि पौधरोपण से लेकर पेड़-पौधों और जंगलों की सुरक्षा में आमलोग की सहभागिता नहीं हो पा रही है, जबकि धरा को हरा-भरा बनाए रखने में सभी की भागीदारी आवश्यक है।

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हालांकि पौधरोपण और पर्यावरण संरक्षण में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सरकार वर्षों से प्रयासरत भी है। इसके बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहा है, आखिर ऐसा क्यों? दैनिक जागरण ने अपने अभियान की इस कड़ी में ऐसे ही सवालों का जवाब जानने का प्रयास किया है। इसके तहत वनस्पतिशास्त्री व पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों की राय ली गई है।

------------------- फलदार पौधे लगाने की जरूरत :

गिरिडीह कॉलेज के वनस्पति विज्ञान के प्रो. सुबल सिंह बताते हैं कि वानिकी को लेकर नीति में कुछ बदलाव करने की जरूरत है। अभी काफी संख्या में यूकोलिप्ट्स, अकेशिया जैसे पौधे लगाए जाते हैं, जबकि आवश्यकता है अधिक से अधिक फलदार पौधे लगाने की। फलदार पौधे लगाने के साथ-साथ लोगों को यह प्रलोभन भी देने की जरूरत है कि इनसे होने वाले फल आपके लिए होगा। आप इसका उपयोग खाने या बेचने में कर सकते हैं। ऐसा होने से लोग पौधरोपण और पेड़-पौधों की रक्षा करने के प्रति आकर्षित होंगे। इस तरह वानिकी में आम लोगों की भागीदारी बढ़ेगी और इसे बढ़ावा मिलेगा।

------------------- विविधता में आई है कमी :

सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण के जानकार कृष्णकांत जंगल एक परिवेश है, जिसमें कई विविधताओं का होना आवश्यक है, लेकिन अब वैसी विविधताएं नहीं रही हैं। 40-50 साल पहले लोग खाने-पीने की अधिकांश चीजें जुटा लेते थे, जिस कारण उनका जंगल से अधिक लगाव नहीं रहता था, जबकि अब अधिकांश जंगलों में लोगों को ऐसी चीजें नहीं मिलने लगी हैं। जंगल से भोजन और आजीविका दोनों घटे हैं। सरकार और विभाग की नीति अभी केवल अधिक से अधिक पेड़ लगाने की है। कौन से पौधे लगाए जाएं जिनसे लोगों को सभी तरह के लाभ मिले, इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

------------------- प्रचार-प्रसार की है कमी

पर्यावरण प्रेमी शिव शंकर गोप का कहना है कि वानिकी को लेकर प्रचार-प्रसार का अभाव रहता है। निचले स्तर पर इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता है, जिस कारण लोगों को जानकारी नहीं मिल पाती है और लोग इससे नहीं जुड़ पाते हैं। यही वजह है कि लोग सामाजिक वानिकी का लाभ भी नहीं ले पा रहे हैं। व्यापक प्रचार-प्रसार कर लोगों को इसके प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है।


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