नई तकनीक से खेती कर समृद्ध किसान बने लक्ष्मण
हीरोडीह कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं होते एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारोंÞ को सौ फीसद सच कर दिखलाया है जमूआ प्रखण्ड के अम्बाटांड़ के लक्ष्मण महतो ने।मेहनत मजदूरी कर परिवार का पालन करने वाले लक्ष्मण महतो की जिदगी में नया मोड़ तब आया जब वे 2010 में जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर द्विवेदी से मिले।उन्होंने लक्ष्मण को कृषि को ब्यवसाय के तौर पर अपनाने की नसीहत देते हुए कृषि विभाग की आत्मा के कार्यक्रमों से जोड़ा।आत्मा से विभिन्न प्रकार के
हीरोडीह (गिरिडीह) : कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों.. को सौ फीसद सच कर दिखाया है जमुआ प्रखंड के अंबाटांड़ के लक्ष्मण महतो ने। मेहनत-मजदूरी कर परिवार का पालन करने वाले लक्ष्मण की जिदगी में नया मोड़ तब आया जब वह 2010 में सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर द्विवेदी से मिले। उन्होंने लक्ष्मण को कृषि को व्यवसाय के तौर पर अपनाने की नसीहत देते हुए कृषि विभाग के आत्मा के कार्यक्रमों से जोड़ा। आत्मा से विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त कर लक्ष्मण ने नए तरीके से खेती जब शुरू की, तो कई गुना मुनाफा हुआ। उपज में उत्साहजनक वृद्धि हुई। फिर क्या था पूरा परिवार खेती में रम गया। लक्ष्मण की मेहनत देख कृषि, उद्यान, मत्स्य एवं भूमि संरक्षण विभाग ने समय-समय पर अपनी योजनाओं से इन्हें नवाजने का भी कार्य किया। वह धान, गेहूं, चना, मटर छिमी, हल्दी, ओल, मिर्चाई एवं सब्जियों की खेती खूब करते हैं।
विभागों से मिला यह लाभ :
भूमि संरक्षण से प्रखंड स्तरीय कृषि उपकरण बैंक, उद्यान विभाग से पोली हाउस, फूड प्रोसेसिग प्लांट, मिनी कोल्ड स्टोर, पैक हाऊस, कृषि विभाग से कृषि उपकरण, प्रशिक्षण एवं बीज व खाद, कृषि विज्ञान केंद्र बेंगाबाद से बीजग्राम, सहकारिता से कॉपरेटिव बैंक, मत्स्य से हेचरिज इन्हें दिए गए हैं। ये सब इनकी समृद्धि में चार चांद लगा रहे हैं।
13 अक्टूबर को वह इजरायल के लिए रवाना हुए। 20 अक्टूबर को इजरायल से वापस लौटे। सूबे के सीएम ने इजरायल से लौटे कृषकों का स्वागत किया। वह झारखंड सरकार द्वारा इजरायल जाने के लिए चयनित 24 कृषकों में से एक थे। इजरायल से लौटकर लक्ष्मण उत्साह से लबरेज हैं। उन्होंने कहा कि इजराइल में पठारी एवं बंजर भूमि है फिर भी फसलें लहलहाती हैं। कहा कि टपक विधि से कम पानी से सिचाई की तकनीक इजरायल में विकसित है। वहां भोजन में 25 फीसद कच्चे पक्के फल ही होते हैं। वहां उन्होंने खेती के कई अचूक और बेजोड़ नुस्खे सीखे हैं जिसे वह जिले के किसानों को शेयर करना चाहते हैं, ताकि वे भी आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकें।