रोजगार मिलता तो नहीं जाते परदेस
वक्त मंगलवार की सुबह 921 बजे की। गिरिडीह स्टेशन का प्लेटफार्म अपने गंतव्य को जाने वाले यात्रियों से खचाखच भरा हुआ है। पैसेंजर ट्रेन की प्रतीक्षा की जा रही है। कोई सफर करने को आया था तो कोई अपनों को ट्रेन तक छोड़ने व परदेश से आ रहे लोगों को रिसीव करने पहुंचे थे। ट्रेन आने का वक्त हो गया था जिस कारण टिकट की काउंटर पर लोगों की लंबी फेहरिस्त लगी थी। मुझे भी ट्रेन में सफर कर यात्रियों का चुनावी मिजाज भांपना था तो मैं भी वहीं टिकट के लिए लाइन में लग गया। करीब 927 बजे छुक
जासं, गिरिडीह: गिरिडीह-मधुपुर पैसेंजर ट्रेन पर सवार यात्रियों का मिजाज जानने की कोशिश प्रभात कुमार सिन्हा ने की। मंगलवार की सुबह 9:21 बजे गिरिडीह स्टेशन का प्लेटफॉर्म अपने गंतव्य को जाने वाले यात्रियों से खचाखच भरा हुआ है। पैसेंजर ट्रेन की प्रतीक्षा की जा रही है। कोई सफर करने को आया था तो कोई अपनों को ट्रेन तक छोड़ने व परदेश से आ रहे लोगों को रिसीव करने पहुंचे थे। ट्रेन आने का वक्त हो गया था जिस कारण टिकट काउंटर पर लोगों की लंबी फेहरिस्त लगी थी। मुझे भी ट्रेन में सफर कर यात्रियों का चुनावी मिजाज भांपना था तो मैं भी वहीं टिकट के लिए लाइन में लग गया। करीब 9:27 बजे छुक छुक.. करती मधुपुर की ओर से पैसेंजर ट्रेन आकर प्लेटफॉर्म पर रूकी। जैसे ही ट्रेन रुकी, वहां ट्रेन से उतरने व चढ़नेवालों के साथ-साथ परिजनों के बीच आपाधापी मच गई। टिकट काउंटर पर लगी लाइन भी तितर बितर हो गई। इसी भीड़ में घुस कर मैने भी जल्दी से टिकट कटवाने की जुगत लगाई। तभी एनाउंसमेंट हुआ कि यात्रीगण कृपया ध्यान दें, मधुपुर को जाने वाली पैसेंजर ट्रेन खुलनेवाली है। इस एनाउंसमेंट के बाद ट्रेन गंतव्य की ओर बढ़ने लगी। किसी प्रकार टिकट लेकर ट्रेन में दौड़कर सवार हो गया। एक सज्जन ने सिगल सीट पर थोड़ा साइड होते हुए बैठने का इशारा किया। मैंने उनका धन्यवाद किया और अपना परिचय देते हुए खबर संकलन को लेकर ट्रेन की सवारी करने की जानकारी दी। बोगी में जिन्हें जगह मिली थी वे सीट पर बैठे थे। वहीं जिन्हें जगह नहीं मिली वे लोहे की एंगल पकड़कर सीट का सहारा लेते हुए खड़े ही सवारी कर रहे थे। मैं जिस मकसद से ट्रेन की सवारी करने गया था उस काम को बिना वक्त जाया करते हुए शुरू कर दिया। आमने- सामने की सीट पर कुछ युवा बैठे थे। अपने बारे में बताने के बाद उनलोगों ने अपना नाम राहुल कुमार, शंभू यादव, रामेश्वर राम, सोहन मंडल व प्रेम कुमार बताया। कोई पीरटांड़ के रहने वाले थे तो कोई बेंगाबाद व गांवा प्रखंड के। अपने प्रदेश में रोजगार के अभाव में ये दूसरे परदेश को रोजगार की तलाश में जा रहे थे। युवाओं के चेहरे पर परिवार को छोड़ कर जाने की चिता साफ झलक रही थी लेकिन चेहरे पर मुस्कान थी। युवाओं ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर यहीं रोजगार की व्यवस्था सरकार की ओर से की जाती तो किसे परिवार छोड़ कर परदेस जाने का मन करेगा। परदेस में रहने के क्रम में अगर अपने परिजनों के साथ गांव में किसी प्रकार की कोई परेशानी होती है तो वहां से गांव आने में ही समय लग जाता है। यहां न तो बड़ी कंपनी की स्थापना की गई न ही रोजगार के अन्य साधन ही उपलब्ध कराए गए हैं। ऐसे में यहां बेकार रहने से अच्छा है अपने परिवार की भरण पोषण के लिए परदेस जाकर कमाया जा सके। गेट के पास खड़े एक युवक पर नजर पड़ी तो पूछने पर अपना नाम आशीष कुमार बताया जो कि बड़ा चौक के रहने वाले थे। वे अपने निजी काम से उत्तर प्रदेश जा रहे थे। कहा कि सरकारें आती व जाती रहेंगी लेकिन बेरोजगार युवा हमेशा छले जाते रहेंगे। विकास की बात हो और धरातल पर मूलभूत सुविधाएं बहाल हो तो प्रदेश के साथ-साथ यहां के लोगों का भविष्य ही सुधर जाएगा। संसाधनों से परिपूर्ण इस प्रदेश में सकारात्मक सोंच के साथ काम करने की जरूरत है तभी यह समृद्धशाली राज्य बन सकेगा। स्थानीय विधायक ने अपने कार्यकाल में विकास का काम तो किए हैं लेकिन और काम करने की जरूरत थी। चिकित्सा व शिक्षा के क्षेत्र में कुछ खास नहीं किया गया है इसे बेहतर करने पर जोर देना चाहिए था। तभी एक सीट पर अकेले बैठे एक व्यक्ति पर नजर पड़ी जो बार-बार मुझे ही देख रहे थे। उनके पास गया और राम सलाम किया तो वे अपना नाम पचंबा निवासी एजे खान बताए। कहा कि सरकार ने पांच साल बेहतर काम किया है। हर क्षेत्र में काम करने की कोशिश की गई है जिसका परिणाम भी दिखने लगा है। सड़कें चकाचक हो गई है वहीं स्वास्थ्य व्यवस्था को भी ठीक किया गया है। युवाओं को सरकारी नौकरी देने में भी सरकार ने अच्छा काम किया है। काबिल नौजवानों को सरकारी नौकरी मिली है। मंदिर-मस्जिद के नाम पर राजनीति की रोटी सेंकने वाले चंद लोग आपस में उलझा कर रख दिया था लेकिन सब जागरूक हो गए हैं। हमें अब सिर्फ विकास, रोजगार व अन्य सुविधा चाहिए। बगल में बैठे एक सज्जन ने अपना नाम सरफराज बताया। वे बीच में ही बोल पड़े कि बहुत हो गई मंदिर-मस्जिद की राजनीति। अब हमें विकास की बात करने वाले की जरूरत है। सड़कों पर होने वाली हादसों में गंभीर रूप से जख्मियों को बेहतर चिकित्सा सुविधा देने के लिए जिले में ट्रामा सेंटर की स्थापना कराने में आने वाले विधायकों को पहल करने की जरूरत है। आगे एक कोने की सीट पर एक व्यक्ति बहुत देर से निहार रहे थे। उनके पास गया और नाम पूछा तो मो गुलाब बताया। कहा कि सरकार तो ठीक तरीके से काम की है। पुन: मौका मिला चाहिए। विकास हुआ है लेकिन अभी और जरूरत है ताकि शहर से लेकर गांव कस्बा तक विकास का किरण दिखे। विकास की बात करने वाले को ही चुना जाए तो बेहतर होगा। बुजुर्गों को वृद्धा पेंशन के अलावे जरूरतमंदों को पेंशन की सुविधा दिलाने में सरकार को पहल करने की जरूरत है। गांवों की सड़कों का हाल अभी भी खस्ता है इसे बेहतर करने की जरूरत है। वहीं एक महिला अपने कुछ बच्चों के साथ बैठी थी और सब की बातों को सुनकर मुस्कुरा रही थी। उनसे जब नाम पूछा तो शहनाज खातून बताया। वे मायके से मधुपुर स्थित ससुराल जा रही थी। सरकार के कामों से वे खुश नहीं थी। कहने लगी कि विकास की बात करने वाली सरकार सिर्फ ढिढोरा पीटती है। महिलाओं को किसी प्रकार का कोई सम्मान नहीं दिया गया। यहां तक कि घर-घर शौचालय की बात करने का नारा दिया जाता है लेकिन आज तक सरकारी स्तर से बननेवाले शौचालय का निर्माण भी मेरे ससुराल क्षेत्र में नहीं कराया गया। विकास का पैमाना गांव होना चाहिए। वहीं आगे की सीट में अपने अन्य लोगों के साथ बैठे एक व्यक्ति के पास गया तो अपना नाम मो जहांगीर बताया। वे काम के सिलसिले में बाहर जा रहे थे। कहा कि आवास योजना का अब तक लाभ नहीं मिला, लेकिन गैस मिला है और शौचालय भी बनाया गया है। सरकार ने कुछ बेहतर किया है तो कहीं कुछ कमी रह गई है। एक मौका और मिलना चाहिए। इसी बीच इन सबसे बात करते हुए मैं अपने गंतव्य तक पहुंच चुका था। दूसरे गेट के पास बदडीहा के गिरधारी साव, जमुआ के रघुनाथ महतो, शीतलपुर के अनूप कुमार के अलावे अन्य खड़े थे जो अलग-अलग जगह जा रहे थे। बातों ही बातों में कहा कि सरकार ने बेहतर काम किया है। दुबारा सरकार को वापस आना चाहिए ताकि विकास की जो गाड़ी चली है, उसे और रफ्तार देते हुए पूरे राज्य का विकास हो सके। सड़कें चकाचक बनी है लेकिन स्वास्थ्य व रोजगार के क्षेत्र में और काम करने की जरूरत है। इसी बीच ट्रेन रुकती है और लोगों का राम सलाम करते हुए मैं अपने गंतव्य पर उतर गया।