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दो नरसंहार से सीमांचल का आतंक बना था सिधो कोड़ा

झारखंड और बिहार के सीमावर्ती जिलों में नक्सली सिधो कोड़ा आतंक का पर्याय था। आम जन उसके नाम से ही दशहतजदा हो जाते थे। चिलखारी नरसंहार के बाद तो सिधो देश के टॉप नक्सलियों में शुमार हो गया था। इस नरसंहार में झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी समेत 20 ग्रामीणों की जान गई थी। सिधो पर सिर्फ झारखंड के गिरिडीह जिले में ही करीब 50 लोगों की हत्या में शामिल होने का सीधा आरोप है। यही कारण है कि झारखंड सरकार ने उसके सि

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 09:00 AM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 09:00 AM (IST)
दो नरसंहार से सीमांचल का आतंक बना था सिधो कोड़ा
दो नरसंहार से सीमांचल का आतंक बना था सिधो कोड़ा

गिरिडीह : झारखंड और बिहार के सीमावर्ती जिलों में नक्सली सिधो कोड़ा आतंक का पर्याय था। आम जन उसके नाम से ही दशहतजदा हो जाते थे। चिलखारी नरसंहार के बाद तो सिधो देश के टॉप नक्सलियों में शुमार हो गया था। इस नरसंहार में झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी समेत 20 ग्रामीणों की जान गई थी। सिधो पर सिर्फ झारखंड के गिरिडीह जिले में ही करीब 50 लोगों की हत्या में शामिल होने का सीधा आरोप है। यही कारण है कि झारखंड सरकार ने उसके सिर पर दस लाख का इनाम घोषित कर रखा था। शनिवार को बिहार के जमुई जिले में पुलिस हिरासत में सिधो की मौत के बाद आतंक के एक बड़े नाम का अंत हो गया है।

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चार जिलों में सिधो का कायम था साम्राज्य

सिधो कोड़ा का आतंक झारखंड और बिहार के सीमावर्ती जिलों में समान रूप से कायम था। बिहार के जमुई, नवादा और मुंगेर जिले के साथ ही सीमावर्ती झारखंड के गिरिडीह जिले के तिसरी, देवरी, गांवा एवं राजधनवार प्रखंड में तूती बोलती थी। वह बिहार में घटना को अंजाम देकर झारखंड में और झारखंड में घटना को अंजाम देकर बिहार में प्रवेश कर जाता था। इससे दोनों राज्यों की पुलिस परेशान थी।

पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे समेत 20 की हत्या में शामिल

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी नक्सलियों के खिलाफ अभियान चला रहे थे। इससे नक्सली खासे नाराज थे। नक्सलियों ने बाबूलाल मरांडी को सबक सिखाने के लिए सिधो कोड़ा को जिम्मेवारी सौंपी। इसके बाद 26 अक्टूबर 2007 को संथाली यात्रा के दौरान चिलखारी में बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी समेत 20 लोगों को गोलियों से भून दिया गया। नक्सली बाबूलाल के अनुज नुनूलाल को मारने आए थे। इस हमले में नुनूलाल बच गए थे। इस घटना के बाद तो सिधो आतंक का पर्याय बन गया। भेलवघाटी नरसंहार के बाद दर्ज कराई मजबूत उपस्थिति

बिहार की सीमा से लगे झारखंड के गिरिडीह जिले के भेलवाघाटी में 11 सितबर, 2005 को नक्सलियों ने 17 ग्रामीणों को गोलियों से भून डाला। बाबूलाल मरांडी के नक्सल विरोधी अभियान में शामिल होने पर नक्सलियों ग्रामीणों के खिलाफ कार्रवाई की। इस नरसंहार का नेतृत्व भी सिधो कोड़ा ने ही किया था।

डिप्टी कमांडेट हीरा झा की हत्या के बाद से निशाने पर था कोड़ा

धनबाद के रहनेवाले सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट हीरा झा 4 जुलाई, 2014 को नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए थे। सिधो कोड़ा के नेतृत्व में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के गश्ती दल पर हमला बोला था। इस मामले भी पुलिस और सीआरपीएफ को बड़ी बेसब्री से सिधो की तलाश थी।

सुबह गिरफ्तारी, रात में मौत

सिधो कोड़ा को बिहार के पटना एसटीएफ ने झारखंड के दुमका में स्थानीय पुलिस के सहयोग से गिरफ्तार किया था। इसके बाद जुमई जिले के जंगलों में सिधो को लेकर एसटीएफ सर्च अभियान चला रहा था। इसी दौरान सिधो के पेट और छाती में दर्द उठा। इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। इसी के साथ आतंक का एक बड़ा नाम सिधो कोड़ा का अंत हो गया।


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