कोल इंडिया चाहे तो बदल सकती खदानों की तस्वीर
लॉकडाउन के कारण गिरिडीह जिले के हजारों मजदूर घर लौट चुके हैं. उनको रोजगार की तलाश है। खदान खुल जाए तो काफी लोगों को रोजगार मिल सकता है।
गिरिडीह : लॉकडाउन के कारण गिरिडीह जिले के करीब 80 हजार प्रवासी मजदूर वापस अपने घरों में लौट गए हैं। इन मजदूरों को रोजगार से कैसे जोड़ा जाए, इसके लिए सरकार एवं जिला प्रशासन मंथन कर रहा है। सीसीएल की गिरिडीह एरिया मजदूरों को रोजगार देने में बड़ी भूमिका निभा सकती है। आज भी हजारों मजदूरों को रोजगार देने की क्षमता यहां की कोयला खदानों में है। बस जरूरत है कि कोल इंडिया प्रबंधन अपने इस एरिया पर विशेष नजरें इनायत करे।
गिरिडीह के कोयले से आज भी बिहार एवं हरियाणा का पावर प्लाट चल रहा है। आप कह सकते हैं कि गिरिडीह के कोयले से बिहार एवं हरियाणा में बिजली जल रही है। यहां के कोयले की पावर एवं स्टील प्लांट में मांग है। इस एरिया को घाटा से उबारने के लिए ठोस रणनीति बनाकर काम किया जाए तो यह एरिया न सिर्फ घाटे से उबर सकता है बल्कि देश की सबसे ज्वलंत समस्या प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिलाने में भी अपनी भूमिका निभा सकता है।
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कोल इंडिया प्रबंधन यदि विशेष रूप से सीसीएल की गिरिडीह एरिया पर फोकस करे तो यहां के कोयला खदानों के साथ-साथ इस इलाके की भी तस्वीर बदल सकती है। इस मुहिम में राज्य सरकार का भी सहयोग जरूरी है। आज भी गिरिडीह की कोयला खदानों में उच्च गुणवत्ता की कोयला का विशाल भंडार है। इसके लिए भूमिगत उत्खनन जरूरी है। ओपेनकास्ट से जो कोयला निकल रहा है, वह उच्च गुणवत्ता का नहीं है। भूमिगत उत्खनन से उच्च गुणवत्ता का कोयला निकलेगा। इससे एरिया एवं कंपनी की हालत सुधर जाएगी। लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
एनपी सिंह बुल्लू, इंटक नेता
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अधिकारियों की संवेदनहीनता एवं कोयला तस्करी के कारण सीसीएल की गिरिडीह इकाई दम तोड़ रही है। कंपनी उत्पादन करती है और सैकड़ों लोग उसे उठाकर ले जाते हैं। इससे कंपनी की कमर टूट गई है। कोल इंडिया प्रबंधन यहां अधिकारियों को दो महीने से लेकर अधिकतम दो साल के लिए भेजती है। इस कारण अधिकारियों को यहां की खदानों से भावनात्मक लगाव नहीं होता है। ऐसे में अधिकारी यहां सिर्फ समय काटने आते हैं। कोयला तस्करी के कारण ट्रक लोडिग नहीं हो पाता है। इस कारण करीब तीन हजार ट्रक लोडरों को काम नहीं मिल पाता है। यदि कोयला चोरी बंद हो जाए तो यहां का कोयला बिकेगा। इससे तीन हजार से अधिक ट्रक लोडरों को प्रति दिन रोजगार मिलेगा।
ओमीलाल आजाद, पूर्व विधायक व एटक नेता
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- यदि अपने जिले में नियमित रूप से रोजगार मिल जाए तो लौटकर मुंबई मजदूरी करने नहीं जाएंगे।
विनोद पंडित, डुमरी
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-परदेस नौकरी करने मजबूरी में गए गए थे। अपने जिले में यदि रोजगार मिल जाए तो वापस तेलांगना नहीं जाएंगे। खुबलाल महतो, बगोदर
- रोजगार के लिए सूरत जाना पड़ा था। अब यदि अपने घर में रोजगार मिल जाए तो लौटकर नहीं जाएंगे। प्रह्लाद वर्मा, नवडीहा
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-सरकार यदि अपने घर पर ही रोजगार दिला देगी तो लौटकर मुंबई नहीं जाएंगे।
डेगलाल महतो, डुमरी
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-सरकार यदि अपने जिले में ही रोजगार दिला दे तो दुबारा घर नहीं छोड़ना पड़ेगा।
बलदेव यादव, तिसरी