महामारी, बीमारी से जिदगी नहीं रुकती साहब..
चाहे जैसा भी संकट हो। महामारी हो या बीमारी लेकिन जिदगी तो नहीं रुकती है न साहब ! माना कि अभी बहुत बड़े संकट के दौर से हम सब गुजर रहे हैं पर पेट ये सब कहां समझता है।
फोटो : 1 जीआरडी 8, 9
गांव की गाथा
- दो माह बाद मजदूरों को मिल रहा रोजगार, अब हाथ में आएंगे चार पैसे, दूर होगी आर्थिक तंगी
- सदर प्रखंड की खावा पंचायत में कोरोना के दहषत के बीच सामान्य हो रहा जनजीवन
ज्ञान ज्योति, गिरिडीह
चाहे जैसा भी संकट हो। महामारी हो या बीमारी, लेकिन जिदगी तो नहीं रुकती है न साहब ! माना कि अभी बहुत बड़े संकट के दौर से हम सब गुजर रहे हैं, पर पेट ये सब कहां समझता है। पेट को शांत रखने के लिए भोजन चाहिए। भोजन के लिए काम करना जरूरी है। ये उद्गार हैं सदर प्रखंड अंतर्गत खावा पंचायत के उन मजदूरों का, जिन्हें करीब दो महीना बाद मनरेगा के तहत काम मिला है। मजदूरों के इस उद्गार में कोरोना को लेकर उनका भय छिपा है, तो जीवन को लेकर उनका उत्साह और आशावादी नजरिया भी है। इसी उत्साह के साथ मजदूरों ने कोरोना संकट के बीच मनरेगा योजनाओं में काम करना शुरू कर दिया है। इसी के साथ पंचायत में जनजीवन एक बार फिर सामान्य होने लगा है। जिदगी पटरी पर लौटने लगी है। दैनिक जागरण की टीम ने रविवार को पंचायत का जायजा लिया।
सुबह करीब 11 बजे खावा गांव में नदी के किनारे मनरेगा के तहत बने रहे कूप की खुदाई करने में मजदूरी जुटे हैं। करीब 30 फीट तक कूप की खुदाई हो चुकी है। 4 मजदूर ऊपर रहकर घिरनी के सहारे नीचे से मिट्टी व पत्थर उठा रहे थे, जबकि तीन मजदूर नीचे रहकर काम कर रहे थे। यहां काम कर रहे मजदूर एक साथ दो मोर्चों पर जंग लड़ते देखे गए। एक पेट के लिए तेज धूप में भी कड़ी मेहनत कर पसीना बहा रहे थे, तो कोरोना को लेकर सतर्क और सावधान भी थे, जिस कारण सभी शारीरिक दूरी का पालन करते नजर आए। हां, मास्क की कमी देखी गई, लेकिन इस कमी को दूर उनके पास मौजूद गमछा कर रहे थे। गमछा से ही सभी ने अपने-अपने मुंह ढंक रखे थे।
दूर होगी आर्थिक तंगी : कूप निर्माण में काम कर रहे शनिचर महतो व टेकलाल गोप ने कहा कि कोरोना और लॉकडाउन के कारण दो महीना बैठ गए। कोई काम नहीं मिला। हाथ में एक पैसा नहीं था। अब काम मिलने लगा है तो चंद पैसे हाथ में आएंगे और तंगी दूर होगी। काम नहीं मिलने के कारण काफी परेशानी हो रही थी, लेकिन उम्मीद है कि अब वैसी परेशानी से नहीं गुजरना पड़ेगा।
मनरेगा ही सहारा : रामू गोप ने कहा कि थोड़ी-बहुत जमीन है, जिस पर खेती करते हैं, लेकिन केवल खेती से गुजारा नहीं होता है। इसलिए मजदूरी करनी पड़ती है। इस कोरोना काल में सभी जगह काम धंधा बंद है। ऐसे में मनरेगा ही एकमात्र सहारा है। मनरेगा से इसी तरह काम मिलते रहेगा तो किसी तरह परिवार का भरण-पोषण कर लेंगे।
केवल चावल से नहीं चलता काम : विकास कुमार, बेनी गोप, बहादुर गोप, महेंद्र तुरी आदि ने कहा कि पीडीएस दुकान से चावल मिलता है, लेकिन केवल चावल से पेट भरने वाला नहीं है। दाल, सब्जी, तेल आदि के लिए पैसे की जरूरत पड़ती है। इसके लिए काम करना जरूरी है। दो महीना किसी तरह माड़-भात खाकर गुजार किया, लेकिन अब मनरेगा की बदौलत सब्जी, दाल नसीब होगी। परिवार की अन्य छोटी-छोटी जरूरतों को भी पूरा कर पाएंगे।
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मनरेगा के तहत कूप, डोभा, बागवानी, प्रधानमंत्री आवास, टीसीबी जैसी योजनाओं का चयन किया गया है। अभी तक 30 योजनाओं की स्वीकृति मिली है। पंचायत के सभी गांवों में मनरेगा का काम शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिल सके। मनरेगा योजनाओं के शुरू होने से मजदूरों को राहत मिलेगी।
मोहन मंडल, मुखिया, खावा पंचायत
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पंचायत का प्रोफाइल :
-उक्त पंचायत में कुल सात राजस्व गांव हैं, जिनमें रानीडीह, खावा, नावाडीह, मनियामाड़ी, जगमनरायडीह, सुंदरटांड़ और गिरधरचक हैं।
- पंचायत की आबादी : लगभग 8 हजार
- जॉबकार्डधारियों की संख्या : 1200
- वापस लौटे प्रवासी मजदूरों की संख्या : 300
- अभी दूसरे प्रदेशों फंसे पंचायत के लोगों की संख्या : 300
- पंचायत में मनरेगा के तहत ली गई कुल योजनाएं : 30