रेल लाइन-रिग रोड बने तो पर्यटन को लगेंगे पंख
पूरे विश्व में तबाही मचाने वाले कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन का व्यापक असर अब दिखने लगा है। इससे न केवल हजारों-लाखों लोगों की नौकरी छीन गई और वे एक झटके में रोड पर आ गए बल्कि देश और राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी इसका बुरा असर पड़ा है। अपना गिरिडीह जिला भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जिले के हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। दर्जनों फैक्ट्रियों कल-कारखानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में ताले लटक गए हैं।
गिरिडीह : पूरे विश्व में तबाही मचाने वाले कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन का व्यापक असर अब दिखने लगा है। इससे न केवल हजारों-लाखों लोगों की नौकरी छिन गई और वे एक झटके में रोड पर आ गए, बल्कि देश और राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी इसका बुरा असर पड़ा है। अपना गिरिडीह जिला भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जिले के हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। दर्जनों फैक्ट्रियों, कल-कारखानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में ताले लटक गए हैं। कोरोना संकट का यह दौर कब थमेगा, कितने दिन, महीने और साल लगेंगे इस महामारी पर फतह हासिल करने में, यह कहा नहीं जा सकता है, लेकिन कोरोना खत्म होने की आस में हाथ पर हाथ धरे बैठे भी नहीं रहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लोकल टू वोकल का आह्वान देशवासियों से कर चुके हैं। गिरिडीह जिले में स्थानीय स्तर पर रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। कृषि से लेकर कुटीर और पर्यटन उद्योगों को बढ़ावा देकर न केवल चरमराती अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की जा सकती है, बल्कि वैश्विक महामारी के कारण उत्पन्न रोजी-रोजगार की समस्या का समाधान भी किया जा सकता है। उद्योग, पर्यटन और व्यवसाय जगत से जुड़ विशेषज्ञों के अनुसार विकट स्थिति तो है, लेकिन इससे घबराने के बजाए इसे अवसर और चुनौती के रूप में लेने की आवश्यकता है। आज हमारे पास अवसर है बाहर से श्रम शक्ति के रूप में आए युवाओं को समेटकर उन्हें अपने जिला में उपलब्ध संसाधनों का भरपूर उपयोग करते हुए रोजगार से जोड़ने की। पूरे विश्व को सत्य और अहिसा का संदेश देनेवाली भगवान पार्श्वनाथ की भूमि पारसनाथ और इसके आसपास के इलाकों में रोजगार के नए अवसर तलाशने की, ताकि अपने ही शहर और गांव में रहकर लोग जीविकोपार्जन कर सकें।
चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष निर्मल झुनझुनवाला बताते हैं कि पारसनाथ पर्यटन स्थल है। यहां से देश-विदेश के जैन तीर्थयात्रियों का लगाव रहा है। पूरे विश्व से यात्रियों और पर्यटकों का यहां आना होता है। ऐसे में यहां पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। पारसनाथ में हैलीपैड का निर्माण हुआ है इसे चालू करने की आवश्यकता है। गिरिडीह-पारसनाथ रेलवे लाइन को चालू करना भी आवश्यक है। इसके अलावा डुमरी से पारसनाथ रिग रोड बनाने का प्रस्ताव लंबित है। इस पर तेजी से काम होना चाहिए। यदि विकास के ये सभी काम होंगे तो सुरक्षा की भी कोई समस्या नहीं रहेगी। लोग बेखौफ होकर आवागमन कर सकेंगे। किसी भी क्षेत्र में पर्यटन स्थल को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के विकास कार्यों को करना जरूरी होता है, क्योंकि जब आवागमन के ही साधन नहीं रहेंगे तो लोग आएंगे कैसे।
चैंबर ऑफ कॉमर्स के महासचिव प्रमोद कुमार का कहना है कि रोजगार के लिए बड़े शहरों में गए युवाओं की वापस गांवों में हुई है। अब वे यहीं रोजगार करना चाहते हैं। उनके पास जमीन भी है। युवाओं के परदेस चल जाने के कारण मैन पावर की कमी हो गई थी, जिस कारण किसान सही से खेती नहीं कर पाते थे, लेकिन अब मैन पावर का अभाव नहीं रहा। ऐसे में देखा जाए तो गिरिडीह जिला में कृषि को रोजगार के रूप में अपनाया जा सकता है। कृषि उत्पादों की मांग भी काफी अधिक है। फसलों की जितनी पैदावार होगी, वह कम ही होगी। इसके अलावा गांवों में स्वरोजगार की भी काफी संभावनाएं हैं। बाहर से लौटे युवाओं में हूनर और अनुभव भी है। वे स्वरोजगार से जुड़कर न केवल अपनी बेरोजगारी दूर कर सकते हैं, बल्कि स्थानीय स्तर पर कई लोगों को रोजगार भी मुहैया करा सकते हैं।
सुमन सिन्हा ने कहा कि पारसनाथ के आसपास के क्षेत्र में पौधरोपण कर लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकता है। अभी इसका समय भी चल रहा है। यहां बंद पड़े कुटीर उद्योग को चालू कर इसे बढ़ावा दिया जा सकता है। मधुबन में पहले बांस से काफी सामान बनाए जाते थे। बांस निर्मित इन सामग्रियों को यदि बाजार उपलब्ध कराया जाए, तो काफी लोगों को रोजगार मिल सकता है। इस क्षेत्र के लोगों के पास पूंजी का अभाव है। उद्योग लगाने के लिए लोगों के पास अपनी पूंजी नहीं है। इसके लिए सरकार को मदद करनी चाहिए। संकट के इस दौर में कोरोना से बचाव के लिए हैंड सैनिटाइजर, साबुन, मास्क आदि की मांग बढ़ी है। आने वाले दिनों में भी इन चीजों की मांग रहेगी। युवाओं व महिलाओं को प्रशिक्षण तथा पूंजी उपलब्ध कराकर स्थानीय स्तर पर इन सामग्रियों का निर्माण कराया जा सकता है। इससे लोगों को तत्काल रोजगार मिल सकता है।
सामाजिक कार्यकर्ता सरोजित कुमार का कहना है कि वर्तमान परिस्थिति में युवाओं का रूझान एक बार फिर कृषि की ओर होगा। बाहर से लौटे युवाओं के लिए कृषि रोजगार का एक अच्छा माध्यम बन सकती है। इसके लिए अवसर के साथ-साथ गांवों में पर्याप्त जमीन भी मौजूद है। ऐसे जरूरत है युवाओं को प्रोत्साहित कर उन्हें कृषि कार्य से जोड़ने की। बात यदि मधुबन के इलाके की करें तो उस क्षेत्र में भी रोजगार की काफी संभावना है। उस क्षेत्र में कृषि के साथ-साथ वनोत्पाद से संबंधित उद्योग को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। पूरा पीरटांड़ जंगली इलाका है। उस क्षेत्र में काफी वन संपदा हैं।
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झारखंड खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य होने के बाद भी हम लोगों को मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में जाकर दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ती है। यह बहुत ही शर्म की बात है। अगर झारखंड सरकार यहीं पर कल-कारखाना या रोजगार के साधन मुहैया कराए तो मजदूरों का पलायन रुक सकता है और हम भी कभी अन्य प्रदेश रोजगार की तलाश में नहीं जाएंगे।
दिलीप मंडल, प्रवासी मजदूर
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झारखंड सरकार अगर व्यवसायियों को प्रोत्साहित कर कल-कारखाना लगवाने में सहयोग करे तो इस क्षेत्र में भी कभी रोजगार की कमी नहीं रहेगी। सरकार या जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर नहीं जाने के कारण इस क्षेत्र से काफी संख्या में लोग महानगरों में रोजगार की तलाश में जाते हैं। सरकार इस ओर ध्यान दें तो झारखंड भी अन्य महानगरों की तरह दूसरे राज्यों के लाखों लोगों को रोजगार दे सकता है।
कोलेश्वर मंडल, प्रवासी मजदूर
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झारखंड में खनिज संपदा का असीम भंडार होने के बाद भी आज इसका उपयोग भारत के दूसरे राज्य के लोग करते हैं। अगर राज्य सरकार इस दिशा में गंभीर होकर ठोस निर्णय लेती है और झारखंड से निकले खनिजों से जुड़े कल कारखाने लगाए जाते हैं, हजारों लोग अपने झारखंड में ही रोजगार पा सकेंगे।
मनोज मंडल, प्रवासी मजदूर
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झारखंड के कई ऐसे हुनरमंद युवा हैं जो बड़े-बड़े महानगरों में अपनी मेहनत व कला के माध्यम से इन शहरों का नाम रोशन कर रहे हैं अगर झारखंड सरकार ऐसे हुनरमंद लोगों की पहचान कर झारखंड में ही उन्हें रोजगार एवं उचित प्लेटफॉर्म मुहैया कराए तो जो मजदूर अन्य महानगरों की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं वे झारखंड को भी खूबसूरत एवं विकसित बनाकर इसे अन्य महानगरों की तुलना में खड़ा कर सकते हैं।
छोटू मंडल, प्रवासी मजदूर