केराडाबर में खाट ही बन जाती 108
वर्तमान सरकार भले ही विकास के लाख दावे करे परंतु सच्चाई कुछ और ही है। गांडेय प्रखंड में आज भी ऐसे गांव हैं जहां मरीजों के बीमार होने पर एंबुलेंस गांव में नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे में मरीजों को खाट पर लादकर गांव से बाहर किया जाता है। उसके बाद एंबुलेंस से उसे अस्पताल पहुंचाया जाता है। यह हाल गांडेय प्रखंड मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर दूर केराडाबर का है। इस गांव में आदिवासी व ओबीसी समाज के लोग रहते हैं। गांव में समस्याओं का अंबार है। ग्रामीण पीएम आवास पेंशन समेत मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। गांव में महज आठ से दस पीएम आवास बने हैं जबकि गांव के अधिकांश घर कच्चे व फूस के बने हैं। इस कारण
गांडेय (गिरिडीह) : झारखंड सरकार की तरफ से गांडेय प्रखंड में आज भी ऐसे गांव हैं जहां मरीजों के बीमार होने पर खाट पर मरीजों को ले जाने की मजबूरी है। ऐसा इसलिये क्योंकि एंबुलेंस गांव में पहुंच ही नहीं पाते। कह सकते हैं कि खाट ही 108 नंबर का एंबुलेंस बन जाती है। मरीजों को खाट पर लादकर गांव से बाहर किया जाता है। इसके बाद एंबुलेंस से उसे अस्पताल पहुंचाया जाता है। यह हाल गांडेय प्रखंड मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर दूर केराडाबर का है। इस गांव में आदिवासी समाज के लोग रहते हैं।
गांव में समस्याओं का अंबार है। ग्रामीण पीएम आवास, पेंशन समेत मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। गांव में महज आठ से दस पीएम आवास बने हैं जबकि गांव के अधिकतर घर कच्चे व फूस के बने हैं। इस कारण वर्तमान में भी कई परिवार कच्चे व जर्जर भवन में रहने का मजबूर हैं। दैनिक जागरण की टीम ने सोमवार को इस गांव में पहुंचकर लोगों से बातचीत की। गांव के एक खलिहान में पूरा परिवार धान झड़ाई के कार्य में लगा था। किसान शंकर राय ने बताया कि गांव में पहुंचने के लिए मुख्य सड़क से एक भी पक्की सड़क गांव तक नहीं पहुंची है। मुख्य सड़क से लगभग एक किलोमीटर कच्ची व जर्जर सड़क है। बारिश के पानी के बहाव के कारण कच्ची सड़क से मिट्टी का कटाव हो गया है। इस कारण अब गांव की गली तक में उबड़ खाबड़ रास्ता हो गया है व रास्ते में पत्थर निकल आए हैं। इस सड़क से धान के गाड़ियों को भी गांव तक लाने में परेशानी होती है।
ग्रामीण भीखन राय ने बताया कि उनका पंचायत और गांव ओडीएफ घोषित हो चुका है। इसके बावजूद उसके घर में शौचालय नहीं बना है। इस कारण पूरा परिवार खेत व गढ्डों में शौच करने जाता है।
ग्रामीण निर्मल सिंह ने बताया कि गांव की सड़क के गढ्ढे में तब्दील हो जाने के कारण भारी परेशानी उठानी पड़ती है। गांव में किसी के बीमार होने की स्थिति में एंबुलेंस गांव में नहीं पहुंच पाता है। इस कारण मरीज को खाट पर उठाकर गांव से बाहर निकाला जाता है। तब जाकर एंबुलेंस के सहारे उसे अस्पताल ले जाया जाता है। बारिश के मौसम में कच्ची गलियां कीचड़ में तब्दील हो जाती हैं। इस कारण आवागमन में भारी परेशानी उठानी पड़ती है। गांव में आगे बढ़ने पर पेड़ की छांव में बैठे वृद्ध डमर राय मिले। उन्होंने बताया कि उनकी उम्र करीब साठ वर्ष पार हो चुकी है परंतु उन्हें वृद्धापेंशन का लाभ नहीं मिल रहा है। पेंशन के लिए कई बार मुखिया को आवेदन दिया गया परंतु वह चालू नहीं हो पाया है। पेंशन चालू कराने के नाम पर कुछ पैसे बिचौलियों को भी दिए परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। पैसे के अभाव में उसे भारी फजीहत उठानी पड़ती है। गांव के कई बुजुर्गो को पेंशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है। गृहिणी सुखिया देवी ने बताया कि उसे उज्ज्वला के तहत गैस कनेक्शन का लाभ नहीं मिला है। गांव की कई परिवार को गैस का कनेक्शन नहीं मिला है। उन्हें लकड़ी व पत्ता चुनकर खाना बनाना पड़ता है।