माइका खदान पर गरमाई राजनीति
करीब दो दशक से अधिक समय से बंद माइका खदानों को चालू करने को लेकर राजनीति गरमा गई है। पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर माइका खदानों को चालू करने एवं ढिबरा चुनने का अधिकार ग्रामीणों को देने की मांग की है वहीं इसी मांग को लेकर गिरिडीह के झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू माइका व्यवसायियों एवं गिरिडीह जिला चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष निर्मल झुनझुनवाला को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिले हैं।
गिरिडीह : करीब दो दशक से अधिक समय से बंद माइका खदानों को चालू करने को लेकर राजनीति गरमा गई है। पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर माइका खदानों को चालू करने एवं ढिबरा चुनने का अधिकार ग्रामीणों को देने की मांग की है, वहीं इसी मांग को लेकर गिरिडीह के झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू माइका व्यवसायियों एवं गिरिडीह जिला चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष निर्मल झुनझुनवाला को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिले। दोनों ही घटनाक्रम एक ही दिन गुरुवार को घटी है।
झुनझुनवाला ने इस मौके पर मुख्यमंत्री को माइका खदानों को चालू कर प्रवासी मजदूरों को रोजगार से जोड़ने का सुझाव दिया है। बाबूलाल ने भी मुख्यमंत्री को यही सुझाव दिए हैं। यहां हम आपको यह याद दिला दें कि बाबूलाल ने राजधनवार विधानसभा के चुनाव में माइका व ढिबरा को वैधानिक कारोबार का दर्जा दिलाने का वादा किया था। ढिबरा चुनने का समर्थन वे पहले से करते आ रहे हैं। इसकी उन्होंने लड़ाई भी लड़ी थी। विधायक सुदिव्य कुमार सोनू के साथ मुख्यमंत्री से मिलने वालों में निर्मल झुनझुनवाला के अलावा राजेंद्र बगड़िया एवं प्रभाकर बगड़िया शामिल थे।
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माइका उद्योग के पुनर्जीवित करने को बाबूलाल और चैंबर के सुझाव
गिरिडीह और कोडरमा जिले से लाखों की संख्या में मजदूर देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर अपना जीविकोपार्जन करते हैं। कोरोना संक्रमण के बीच लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों की घर वापसी का सिलसिला जारी है। काफी संख्या में मजदूर वापस अपने घर लौट आएं हैं। जो परिस्थितियां दिख रही हैं, उसके हिसाब से अभी स्थिति सामान्य होने में महीनों लगेंगे।
प्रवासी मजदूर फिलहाल अपने कार्य स्थल पर लौटेंगे, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती है। ऐसे में इन लाखों मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी की चिता होना स्वाभाविक है। सरकार मनरेगा, पौधा रोपण आदि योजनाओं से रोजगार उपलब्ध करा रही है, लेकिन इतनी बड़ी आबादी की उम्मीदें व रोजी-रोटी केवल इन योजनाओं से पूरी हो पाएंगी, यह नामुमकिन है।
गिरिडीह और कोडरमा जिला केवल झारखंड ही नहीं बल्कि पूरी दुनियां में अबरख नगरी के रूप में विख्यात रहा है। इसकी गुणवत्ता भी अच्छी है। जहां जो संपदा होती है, स्वाभाविक रूप से लोगों की निर्भरता उस पर होती है। 1980 के पूर्व यहां सैकड़ों माइंस संचालित हुआ करती थीं। इससे लाखों लोगों को रोजगार प्राप्त होता था। अब कतिपय कारणों से जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़े इस व्यवसाय को पुनर्जीवित कर जिले में पुन: लाखों लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सकता है। इससे काफी राजस्व की भी प्राप्ति की जा सकती है।
कोरोना संकट से उत्पन्न हालात के बीच इसे पुनर्जीवित करना इस इलाके के लिए वरदान साबित हो सकता है। इस दिशा में सरकार की नीति को पारदर्शी बनाकर और इसमें व्याप्त विसंगतियों को सुधारने की जरूरत है। कहा कि खनिज संपदा के उत्खनन, प्रसंस्करण एवं उसके निर्यात को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2015 में 31 प्रकार के वृहद खनिजों को भारत सरकार ने लघु खनिज की श्रेणी में शामिल किया था, जिसमें एक माइका भी है। इससे संबंधित जो लंबित प्रक्रियाएं हैं, उस पर तत्काल सरकार को अधिसूचना जारी करनी चाहिए। बिहार माइका एक्ट को विलोपित कर झारखंड माइका एक्ट के रूप में नया एक्ट बनाने की आवश्यकता है।
माइका व्यवसायियों की अनुज्ञप्ति का नवीकरण नहीं होने से भी राजस्व की हानि हो रही है। विभाग की नीलामी की शर्तों, परिवहन में संरक्षण आदि में पारदर्शिता नहीं होने से व्यवसायियों को आए दिन प्रताड़ना व दोहन का सामना करना पड़ता है। 6 इंच से छोटे माइका/ढिबरा चुनने, भंडारण और उसके परिवहन पर वन विभाग व पुलिसिया कार्रवाई पर रोक लगाने की जरूरत है। वन विभाग या उससे बाहर ढिबरा चुनने वाले गरीबों को ढिबरा पिकर का नाम और काम देकर स्वनियोजन का अधिकार देने की जरूरत है। इन ढिबरा पिकर से तय दर पर ग्राम पंचायत ढीबरा खरीदे और उसे संबंधित विभाग की वेबसाइट पर अपलोड कर दे। समुचित मात्रा में ढिबरा एकत्रित होने के बाद विभाग द्वारा तय दर या नीलामी से माइका व्यवसायी को बेचकर ग्राम पंचायत को उसकी कीमत का भुगतान तत्काल सुनिश्चित करनी चाहिए। इसके आगे की भी माइका व्यवसायियों के उनके व्यवसायिक गंतव्य तक बिना व्यवधान के परिवहन की पारदर्शी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। रैयती और गैरमजरूआ जमीन पर तो खनन पट्टा/ अधिकार मिले ही। वैसी वन भूमि जो केवल नाम के वन रह गए हैं, उन्हें वनभूमि के दायरे से बाहर कर वहां भी खनन पट्टा देकर इस रोजगार को व्यापक बनाने की जरूरत है।
वन क्षेत्र से बाहर रैयत भूमि पर भूस्वामी से निबंधित एकरारनामा करने वाले व्यक्ति को 5 हेक्टेयर तक का लघु खनिज का आवेदन देने की अनुमति मिलनी चाहिए। एक तय अवधि में आवेदक को खनन का अधिकार मिले। लगभग 50 माइका के माइंस चालू होने से 50 हजार से अधिक कुशल, अकुशल और अर्धकुशल मजदूरों का नियोजन हो सकता है। शीट माइका एवं अन्य माइका के प्रसंस्करण से 2 लाख मजदूरों का नियोजन किया जा सकता है। इससे जुड़े व्यवसायियों को माइंस लीज आवंटन में प्राथमिकता देने की जरूरत है। झारखंड में निवेश कर यहां अपनी इकाई लगाने को तैयार व्यवसायी को बड़े भू भाग पर माइंस की स्वीकृति प्रदान करने की जरूरत है। इससे राज्य में जहां हजारों करोड़ रुपये के निवेश की संभावना होगी, वहीं इस संकट काल में प्रवासी मजदूरों को अपने राज्य, अपने घर में ही रोजगार मिलने का मार्ग प्रशस्त होगा।