संकट में कोडरमा से आक्सीजन लेते रहे बाबूलाल
गिरिडीह पूर्व मुख्यमंत्री व झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी को राजनैतिक पहचान एवं प्रसिद्धि भले ही दुमका से मिली हो लेकिन वे जब-जब राजनैतिक चक्रव्यूह में फंसे हैं तो उन्हें वहां से सुरक्षित बाहर निकालने का काम उनकी गृह लोकसभा क्षेत्र कोडरमा की जनता ने ही किया है। वे कोडरमा लोकसभा क्षेत्र से कभी चुनाव नहीं हारे हैं। बाबूलाल इस वक्त अपने राजनैतिक कैरियर के सबसे चुनौतीपूर्ण समय से निपटने के लिए एक बार फिर अपने गृह लोकसभा क्षेत्र कोडरमा में जनता के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं।
गिरिडीह : पूर्व मुख्यमंत्री व झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी को राजनैतिक पहचान एवं प्रसिद्धि भले ही दुमका से मिली हो, लेकिन वे जब-जब राजनैतिक चक्रव्यूह में फंसे हैं, तो उन्हें वहां से सुरक्षित बाहर निकालने का काम उनकी गृह लोकसभा क्षेत्र कोडरमा की जनता ने ही किया है। वे कोडरमा लोकसभा क्षेत्र से कभी चुनाव नहीं हारे हैं।
बाबूलाल इस वक्त अपने राजनैतिक कैरियर के सबसे चुनौतीपूर्ण समय से निपटने के लिए एक बार फिर अपने गृह लोकसभा क्षेत्र कोडरमा में जनता के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं। बाबूलाल को पूरा भरोसा है कि जनता का आशीर्वाद हर बात की तरह उन्हें ही मिलेगा। 1991 में लड़ा था पहला लोकसभा चुनाव :
कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के राजधनवार विधानसभा क्षेत्र का कोदाइबांक उनका पैतृक गांव है। यह गांव गिरिडीह जिले के तिसरी प्रखंड में पड़ता है। शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति में कूदे बाबूलाल पहली बार लोकसभा चुनाव 1991 में भाजपा की टिकट पर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित दुमका से लड़े। सामने झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन जैसा बड़ा नेता था। यह चुनाव हारने के बाद वे दुबारा वहीं से 96 में शिबू के खिलाफ ही उतरे। इस चुनाव में भी वे हार गए। शिबू को दुमका से हराना आसान नहीं था। लेकिन तीसरी बार जब 98 में उतरे तो उन्होंने शिबू को मात दे दिया। पुरस्कार स्वरूप उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री पद मिला। एक साल बाद हुए चुनाव में उन्होंने दुमका में शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन को भी उन्होंने हरा दिया। 2000 में बने झारखंड के पहले मुख्यमंत्री :
2000 में झारखंड बनने के बाद वे सूबे के पहले मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2003 में उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद भाजपा नेतृत्व से उनका मतभेद बढ़ता गया। 2004 का जब लोकसभा चुनाव का वक्त आया, तो उन्होंने दुमका के बजाय पहली बार अपने घर कोडरमा से चुनाव लड़ने का मन बनाया। राज्यसभा की अवधि समाप्त होने के कारण इस बार शिबू सोरेन दुमका में खुद मैदान में उतरने वाले थे। राजनीति के जानकार बताते हैं कि तबतक बाबूलाल का भी ग्राफ दुमका में शिबू सोरेन की तुलना में गिरने लगा था। कांग्रेस से गठबंधन के कारण शिबू सोरेन और मजबूत हो चुके थे। ऐसे में बाबूलाल पहली बार अपने घर की सीट कोडरमा से भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे।
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2004 में झारखंड से जितने वाले इकलौते भाजपा सांसद थे बाबूलाल :
2004 में पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति थी। इस परिस्थिति में भी कोडरमा की जनता ने बाबूलाल को एक लाख 54 हजार से अधिक वोटों के अंतर से जिताकर लोकसभा भेजा था। झारखंड से जीतने वाले भाजपा के वे एकलौता सांसद थे। इतना ही नहीं, सामान्य सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचने वाले वे झारखंड के पहले आदिवासी नेता बने। पार्टी से मतभेद बढ़ने के बाद बाबूलाल ने 2006 में भाजपा के साथ-साथ लोकसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए उप चुनाव में बाबूलाल निर्दलीय मैदान में उतरे। उनके सामने भाजपा ने दिवंगत नेता रीतलाल प्रसाद वर्मा के पुत्र प्रणव वर्मा को मैदान में उतारा। प्रदेश की भाजपा सरकार ने बाबूलाल को हराने में अपनी सारी ताकत लगा दी। लेकिन संकट की इस घड़ी में बाबूलाल के साथ कोडरमा की जनता खड़ी रही और वे निर्दलीय भी जीत गए। 2009 के चुनाव में बाबूलाल अपनी पार्टी झाविमो बनाकर मैदान में उतरे। 2004 में दुमका में हारे :
2014 में बाबूलाल वापस दुमका लौट गए। वहां न सिर्फ चुनाव हारे बल्कि तीसरे नंबर पर चले गए। इधर बाबूलाल ने जिस प्रणव वर्मा को कोडरमा में अपने स्थान पर उतारा था, वे भी तीसरे नंबर पर चले गए। इस बार बाबूलाल वापस अपने घर लौट आए हैं। उनके लौटने से यह सीट हाईप्रोफाइल हो गई है। इस बार लड़ाई यहां आमने-सामने की नहीं है बल्कि त्रिकोणीय है। भाजपा एवं माले जैसी दो मजबूत जनाधार वाली पार्टी से इस बार उनका मुकाबला है।
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2004 कोडरमा लोकसभा चुनाव का परिणाम
-बाबूलाल मरांडी भाजपा-366656-27 फीसद
-चंपा वर्मा झामुमो-211712-15 फीसद
-राजकुमार यादव माले-150942-10 फीसद
2009 लोकसभा चुनाव का परिणाम
-बाबूलाल मरांडी झाविमो-199462-14 फीसद
-राजकुमार यादव माले-150942-10 फीसद
-लक्ष्मण स्वर्णकार भाजपा-115145-8 फीसद