केंद्रीय टीम गांडेय में टीबी रोग पर कर रही रिसर्च
गांडेय (गिरिडीह) केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने का लक्ष्य रखा है। इसे
गांडेय (गिरिडीह) : केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने का लक्ष्य रखा है। इसे लेकर सरकार ने कमर कस ली है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की टीम पूरे भारत में इस पर रिसर्च कर रही है। झारखंड में 17 क्लस्टर बनाकर कुल 11 जिले में कार्य किया जा रहा है। उनमें गिरिडीह जिले के गांडेय प्रखंड का भी चयन किया गया है। प्रखंड के मंडरडीह में बीते तीन दिनों से आईसीएमआर दिल्ली से आई केंद्रीय टीम कैंप कर रही है। केंद्रीय टीम चंपापुर पंचायत सचिवालय में एक सप्ताह तक कैंप कर मंडरडीह एवं आसपास के गांवों के 800 लोगों पर टीबी के विभिन्न लक्षणों को लेकर रिसर्च कर रही है। बीते तीन दिनों में मंडरडीह के तीन सौ लोगों की स्वास्थ्य जांच की जा चुकी है। केंद्रीय रिसर्च अभियान प्रभारी सह प्रोजेक्ट के टेक्निकल अधिकारी डॉ. अनुशील आनंद ने बताया कि वर्ष 2011 के सर्वे के आधार पर आइसीएमआर की ओर से गिरिडीह जिले में केवल गांडेय के मंडरडीह का चयन किया गया था। मंडरडीह में 15 वर्ष से अधिक के सभी लोगों की स्वास्थ्य जांच की जा रही है। उनमें टीबी रहने या टीबी होने की संभावना पर रिसर्च किया जा रहा है।
-इन विधियों पर हो रहा है रिसर्च : डॉ. आनंद ने बताया कि आइसीएमआर के गांवों का चयन करने के बाद बीते दिसंबर माह में ही टीम ने मंडरडीह पहुंचकर मैपिग व हाउस लिस्टिग कर प्री सर्वे का कार्य किया था। उसके बाद ग्रामीणों को जानकारी देकर कैंप का समय निर्धारित किया गया। इसके बाद चिह्नित क्षेत्र के घर-घर जाकर 15 वर्ष से अधिक आयु वर्ग का स्वास्थ्य कार्ड बनाया गया। कार्ड नंबर के आधार पर ग्रामीणों को कैंप में बुलाया जाता है। कैंप में सबसे पहले लोगों से सहमति फॉर्म भराया जाता है। उसके बाद उनकी ऊंचाई, वजन, बीपी, शुगर, हीमोग्लोबिन आदि की जांच की जाती है। उसके बाद एक्सपर्ट की टीम टीबी के लक्षण से संबंधित इंटरव्यू लेते हैं। उसके बाद संबंधित व्यक्ति का एक्सरे किया जाता है। एक्सरे की रिपोर्ट ऑनलाइन मेडिकल अधिकारी एवं एक्सपर्ट के पास जाती है। जांच रिपोर्ट में टीबी के लक्षण मिलने पर उसके बलगम का सैंपल लिया जाता है। बलगम की सीवी नेट मशीन में जांच की जाती है। बेहतर जांच के लिए उसका सैंपल रांची के इटकी स्थित आइआरएल सेंटर भेजा जाएगा।
टीबी के बदलते स्वरूप की खोज कर उसकी दवाई की जाएगी विकसित : अभियान प्रभारी ने बताया कि रिसर्च में टीबी के पुराने व बदलते स्वरूप पर रिसर्च किया जाएगा। कैंप से भेजे गए बलगम का सैंपल का पुन: रांची के इटकी में सीवी नेट मशीन व माइक्रोस्कोपिक से जांच की जाएगी। साथ ही लिक्विड कल्चर की भी जांच होगी। लिक्विड कल्चर की रिपोर्ट 40 से 45 दिनों बाद आती है। वहां भी रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर उस सैंपल को विशेष अध्ययन के लिए चेन्नई रिसर्च सेंटर भेजा जाएगा। वहां नए सिरे से उस पर रिसर्च किया जाएगा। उस रिसर्च में टीबी के बदलते स्वरूप की जांच की जाएगी। जांच से ही पता चलेगा कि पहले से बनी दवाई उसकी रोकथाम में कारगर है या नहीं। रोकथाम नहीं होने पर नई दवा बनाने पर कार्य किया जाएगा।
-23 लोगों की केंद्रीय टीम कर रही रिसर्च : बता दें कि मंडरडीह में लोगों पर रिसर्च करने के लिए 23 लोगों की केंद्रीय टीम आई है। उनमें अभियान प्रभारी के अलावे डॉ. स्वागता लक्ष्मी, लैब टेक्नीशियन विकास कुमार सिन्हा, जयराम मेहता, राहुल कुमार, पूजा कुमारी, एक्सरे टेक्नीशियन अब्दुल कलाम, प्रतिमा कुमारी, एफआइ ग्रुप में डॉ. सुधांशु मुंडा, डाटा इंट्री ऑपरेटर नीलेश कुमार, स्वास्थ्य सलाहकार आलोक कुमार, अमन कुमार गुप्ता, प्रतिमा कुमारी, रोशन राज, अगनु महतो, सूरज महतो, के प्रकाश, एमटीएस अजय केरकेट्टा व ज्योति आनंद शामिल हैं। वहीं मेडिकल अधिकारी में गांडेय सीएचसी के डॉ. परमेश्वर महतो व वरुण कुमार सिंह शामिल हैं।