सब्जी की खेती कर किसानों के लिए नजीर बने सुरेश मेहता Gadhawa News
Vegetable farming. सुरेश मेहता की सब्जी की खेती देख गांव के करीब डेढ़ दर्जन किसान सब्जी की खेती कर आत्मनिर्भर बन गए।
श्री बंशीधर नगर, रजनीश कुमार मंगलम। कहते हैं जिंदगी अपना रास्ता ढूंढती है। शायद इसीलिए कहा जाता है, कि उम्मीदों पर दुनिया कायम है। एक टूटती है तो दूसरी राह दिखने लगती है। चितविश्राम गांव के कुतहा टोला के सुरेश मेहता ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। यह कहना जरूरी है कि जिंदगी चलने का नाम है। रास्ते खुद बनाने होंगे और उस पर चलकर मिसाल कायम करना होगा। सुरेश मेहता सब्जी की खेती के साथ-साथ अनाज उपजा कर न सिर्फ अपना घर चलाते हैं, बल्कि गरीबी उन्मूलन का एक उदाहरण भी पेश किया है। सुरेश की सब्जी की खेती देख गांव के करीब डेढ़ दर्जन किसान सब्जी की खेती कर आत्मनिर्भर बन गए।
सुरेश कहते हैं कि बरसात में एक बीघा जमीन पर बैंगन, लौकी आदि तथा गर्मी में 10 कट्ठा जमीन पर खीरा की खेती कर प्रतिवर्ष तीन लाख रुपये से अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। कोई 10 वर्ष पूर्व की बात है एक बार वाराणसी में विकास सीट्स के फॉर्म हाउस घूमने का मौका मिला। वहां सब्जी की खेती देख अपने खेत में भी सब्जी की खेती करने की प्रेरणा मिली। सुरेश कहते हैं कि शहर में कुछ नहीं है, खेत खलिहान अपना है, जो मिलेगा यहीं मिलेगा। यह सोच शहर की नौकरी छोड़ गांव चला आया। यहां आकर हमने बंजर व ऊसर जमीन को गोबर डालकर उपजाऊ बनाया। जमीन को उपजाऊ बना कर उस पर सब्जी की खेती प्रारंभ की।
कभी उगता था सिर्फ काशी घास
सुरेश बताते हैं कि शहर छोड़ गांव आया तो देखा कि पथरीली व बंजर जमीन पर सिर्फ काशी घास उगी हुई है। काशी घास को जड़ से समाप्त करने की सोची और इस कार्य में लग गया। कुछ ही दिनों में काशी घास को जड़ से समाप्त कर बंजर व ऊसर जमीन को उपजाऊ बनाया। इस कार्य में काफी परिश्रम करना पड़ा। पर मेहनत से पीछे नहीं भागा। इसका नतीजा है कि आज बगैर किसी सरकारी सहायता का मैं आत्मनिर्भर बन अपने पैरों पर खड़ा हूं। जंगल के किनारे यहां पीने के लिए भी पानी नहीं मिलता था। फसलों की सिंचाई के लिए एक कुआं खोदा। पर उसमें पर्याप्त पानी नहीं मिला। पानी नहीं मिलने पर दो बोर कराया, जिसमें सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिला।
सब्जी के साथ-साथ धान, गेहूं भी उपजाते हैं सुरेश
सुरेश बताते हैं कि सब्जी के साथ-साथ चार बीघा भूमि में धान, सात बीघा में गेहूं, एक बीघा में अरहर, चना, सरसों, तिल आदि की भी खेती करता हूं। खाने से अधिक जो अनाज होता है, उसे बेचता भी हूं। धान, गेहूं, अरहर, चना, तिल, सरसों आदि फसल की उपज भी ठीक-ठाक है। इससे भी बेहतर आमदनी होती है।
दूसरे किसानों के लिए नजीर बने सुरेश
सुरेश कहते हैं कि जमीन को उपजाऊ बना जब आधुनिक विधि से सब्जी की खेती करना प्रारंभ किया तो गांव वाले आकर देखते थे और जानकारी भी लेते थे। देखते-देखते गांव के अन्य लोग भी अपनी भूमि उपजाऊ बनाकर उसमें सब्जी की खेती करनी प्रारंभ की और आज करीब डेढ़ दर्जन से अधिक किसान सब्जी की खेती कर आत्मनिर्भर बन चुके हैं। आसपास के अन्य गांव के भी किसान सुरेश की सब्जी की खेती देखने आते हैं।
जानें, कब लगाते हैं; कौन सब्जी
सुरेश बताते हैं कि बैंगन मई में, लौकी व खीरा जून में लगाते हैं। बैंगन फल देना प्रारंभ कर दिया है। अभी तक तीन बार बैंगन बाजार में 40 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से थोक में बेचा हूं। बैगन दिसंबर तक फल देगा और सारा खर्च काटकर इससे दो लाख रुपये आमदनी होगी। लौकी व खीरा अक्टूबर तक फल देगी। लौकी से करीब 40 हजार व खीरा से 60 हजार रुपये खर्च काट कर मुनाफा मिलेगा। गरमा खीरा से भी 50 से 60 हजार रुपये आमदनी हो जाती है। सब्जी तोड़ने आदि के कार्यों में स्वयं व पत्नी के साथ साथ मजदूर भी लगाते हैं।