Move to Jagran APP

आज मनेगा भैया दूज व चित्रगुप्त पूजा, तैयारियां पूरी

दुमका/बासुकीनाथ : दुमका समेत जरमुंडी व अन्य ग्रामीण क्षेत्र में काíतक मास के शुक्ल पक्ष द्वितीया शुक्रवार को भैया दूज एवं चित्रगुप्त पूजा धूमधाम से मनाया जाएगा।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Nov 2018 04:21 PM (IST)Updated: Thu, 08 Nov 2018 04:21 PM (IST)
आज मनेगा भैया दूज व चित्रगुप्त पूजा, तैयारियां पूरी
आज मनेगा भैया दूज व चित्रगुप्त पूजा, तैयारियां पूरी

दुमका/बासुकीनाथ : दुमका समेत जरमुंडी व अन्य ग्रामीण क्षेत्र में काíतक मास के शुक्ल पक्ष द्वितीया शुक्रवार को भैया दूज एवं चित्रगुप्त पूजा धूमधाम से मनाया जाएगा। इस को लेकर दुमका समेत प्रखंड क्षेत्रों में गजब का उत्साह एवं भक्ति का माहौल है। दुमका में दुमका-पाकुड़ मुख्य पथ पर चित्रगुप्त मंदिर में इसके लिए विशेष तैयारी की गई है।

loksabha election banner

ये भैया दूज व्रत का महत्व

बासुकीनाथ के पुरोहित पंडित सुबोधकांत झा ने बताया कि भैया दूज का त्योहार भाई-बहन के स्नेह, प्रेम, विश्वास को सुदृढ़ करता है। यह त्योहार दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है। ¨हदू धर्म में भाई-बहन के स्नेह स्वरुप यह त्योहार मनाया जाता है। भैया दूज में बहनें भाई की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। भैया दूज को भाई दूज या भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। कहीं-कहीं इस दिन बहनें भाइयों को तेल लगाकर गंगा-यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा-यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए। मान्यता है कि यदि बहनें अपने हाथ से भाई को भोजन कराएं तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहनें भाइयों को चावल जरूर खिलाती हैं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है। बहन अपनी हो या चचेरी अथवा ममेरी कोई भी हो सकती है। इस दिन यमराज तथा यमुना के पूजन का भी विशेष महत्व है।

भैया दूज की कथा

पंडित सुबोधकांत झा कहते है कि भगवान सूर्य नारायण कि पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे। लेकिन जब काíतक शुक्ल द्वितीया का दिन आया तो यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरनेवाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करनेवाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोस कर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।

यमुना ने कहा भाई आप प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्र व आभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परंपरा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसी लिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन भी किया जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.