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एसपी बलिहार हत्याकांड में दो नक्सलियों को फांसी की सजा

इस हत्या के लिए आप दोनों का समाज में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए सजा-ए-मौत सुनाई जाती है..। यह कहना था अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश चतुर्थ तौफीकुल हसन का।

By Sachin MishraEdited By: Published: Wed, 26 Sep 2018 03:50 PM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2018 07:53 PM (IST)
एसपी बलिहार हत्याकांड में दो नक्सलियों को फांसी की सजा
एसपी बलिहार हत्याकांड में दो नक्सलियों को फांसी की सजा

जागरण संवाददाता, दुमका। पाकुड़ एसपी अमरजीत बलिहार अपने निजी काम से दुमका नहीं आए थे बल्कि विभागीय आवश्यक बैठक में भाग लेने पहुंचे थे। प्रवीर दा और सनातन बास्की को इस बात की जानकारी थी कि एसपी बैठक में भाग लेने के बाद काठीकुंड के रास्ते ही वापस लौटेंगे। सोची समझी साजिश के तहत ऐसे स्थान का चयन किया गया, जहां एसपी की गाड़ी को धीमी होना था। डायवर्सन खराब होने के कारण जैसे ही एसपी की गाड़ी रुकी, आप दोनों ने करीब 30 साथियों के साथ तीन तरफ से घेर लिया। अंगरक्षक कुछ समझ पाते, तब तक तीन तरफ से फायरिंग कर उनके साथ पांच अन्य जवानों को मार डाला। इस जघन्य हत्या के लिए आप दोनों का समाज में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए सजा-ए-मौत सुनाई जाती है..। यह कहना था अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश चतुर्थ तौफीकुल हसन का।

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उन्होंने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि नक्सलियों को एसपी पाकुड़ या डीआइजी आवास के कुछ कर्मियों से पल-पल की जानकारी मिल रही थी। दोनों ने पूरी साजिश रची और उसे अंजाम भी दिया। जब पुलिस के बड़े अधिकारी के साथ इस तरह की घटना हो सकती है तो आम जनता के बारे में कल्पना तक नहीं की जा सकती है। पुलिस के एक बड़े अधिकारी की जघन्य हत्या करने वाले अगर जीवित रहे तो समाज के दूसरे लोग अपने को सुरक्षित महसूस कैसे मान सकते हैं।

हत्या के बाद करीब जाकर मारी थी गोली
अदालत ने कहा कि नक्सलियों ने एसपी अमरजीत सहित दो जवानों मनोज हेम्ब्रम व चंदन थापा की हत्या के बाद भी पास जाकर गोली मारी थी। इतना ही नहीं शव को क्षतिग्रस्त किया गया था। हत्या करने के बाद नक्सली हथियार लूटकर फरार हो गए। 2013 में यह घटना तब हुई थी, जब एसपी अपनी टीम के साथ दुमका से पाकुड़ लौट रहे थे।

मौत की सजा सुनने के बाद प्रवीर के चेहरे से उतरा रंग
नक्सलियों को विभिन्न धाराओं में कोर्ट से पहले दो वर्ष से लेकर उम्र कैद तक की सजा सुनाई गई। प्रवीर पहले से ही आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, इसलिए उसके चेहरे पर सजा सुनने के बाद किसी तरह की शिकन नहीं नजर आई। परन्तु जैसे ही अदालत ने उसे हत्या, हथियार लूट व साजिश रचने के आरोप में मौत की सजा सुनायी, उसके चेहरे का रंग उतर गया। न्यायालय से बाहर निकलते ही पुलिस ने उसे सुरक्षा में ले लिया और कुछ बोलने का मौका तक नहीं दिया।

प्रवीर दा की पत्‍‌नी ने कहा, हाई कोर्ट जाएंगे
फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद कोर्ट परिसर में केवल प्रवीर दा की पत्नी नमिता राय ही मौजूद थी, जबकि सनातन के घर से कोई नजर नहीं आया। नमिता परिसर में खड़ी होकर फैसला आने का इंतजार करती रहीं। उसका कहना था कि उसे अदालत के फैसले पर विश्वास था कि पति को आजीवन कारावास की सजा होगी। लेकिन यहां तो उसे मौत की सजा सुना दी गई। अदालत पर अब विश्वास नहीं रहा। अब उच्च न्यायालय जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है।

32 गवाहों ने दिया बयान
केस में पुलिस ने 32 गवाहों का बयान दर्ज कराया। अदालत ने गवाह के बयान और साक्ष्य के आधार पर प्रवीर व सनातन को सजा सुनाई।

अदालत ने साक्ष्य के आधार पर उनके मुवक्किल को फांसी की सजा सुनाई है। अब आगे अपील की जाएगी। एसपी की हत्या में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी पुलिस अबतक नहीं कर सकी।
-केएन गोस्वामी, सनातन बास्की के अधिवक्ता।
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अदालत ने इसे जघन्य हत्याकांड की श्रेणी में रखते हुए फांसी की सजा सुनाई है। इस तरह की घटना बहुत कम होती है। अदालत ने इसे जघन्य हत्या मानते हुए सजा सुनायी है। जबकि जो पांच नक्सली बरी हो गए थे, उनके खिलाफ सीधा सबूत नहीं मिला था। इसमें पुलिस की कोई उदासीनता प्रकाश में नहीं आई।
-सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा, सहायक लोक अभियोजक।


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